मंगलवार यानी 1 मार्च 2016 को सुबह संसद की बैठक शुरू होते ही हंगामा हो गया। हंगामा इतना बढ़ा कि राज्यसभा और लोकसभा को दो बार स्थगित करना पड़ा। विपक्ष के सदस्य हमें न्याय चाहिए के नारे लगा रहे थे। विपक्ष कठेरिया को बर्खास्त करने की मांग कर रहा है। कांग्रेस ने रामशंकर कठेरिया के बयान को लेकर दोनों सदनों में काम रोको प्रस्ताव दिया। विपक्षी सदस्य कठेरिया के एक भाषण पर उत्तेजित थे। कठेरिया ने एक भाषण में हिन्दुओं को अपनी ताकत दिखाने के लिए ललकारा। आगरा में एक वीएचपी नेता की हत्या के बाद श्रद्धांजलि सभा में शरीक होने पहुंचे कठेरिया यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि प्रशासन ये न समझे की मंत्री बनने से मेरे हाथ बंध गए हैं, वे भी कभी लाठी-डंडा लेकर चलते थे, हालांकि कठेरिया ने सफाई दी है कि उन्होंने कुछ भी भड़काऊ नहीं कहा। मैंने केवल इतना कहा कि हिन्दू समाज को अपना संरक्षण करना चाहिए। संगठित होना चाहिए। यही बोला है। बदला लेने या किसी समुदाय का नाम नहीं लिया। भाषण की पूरी सीडी है। हां, हत्यारों को फांसी हो ये जरूर कहा है। इस मामले पर कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ऐसी बातें कर करके ही समाज को फोड़ने का और बांटने का बीजेपी और आरएसएस का यह प्लान है। जब- जब चुनाव आते हैं, तब- तब वे चुनाव को ध्यान में रखकर ऐसा करते हैं। वहीं बीएसपी प्रमुख मायावती ने मांग की है कि ऐसे नेता को बर्खास्त कर देना चाहिए। उधर, जेडीयू के नेता अली अनवर ने कहा कि मंत्री का बयान देश के लिए खतरनाक है। ऐसे लोग देश की छवि खराब कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता पीएल पुनिया ने कहा कि कठेरिया ने सांप्रदायिक जहर उगला है। यह बयान अक्षम्य है। उन्हें मंत्रिमंडल में रहने का हक नहीं। एमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि एक मंत्री का इस तरह की बातें करना, जिससे दोनों संप्रदायों में और दूरियां बढ़ें ठीक नहीं है। एक मंत्री का काम होता है पूरे मुल्क को साथ लेकर चले। ये सरकार सबका साथ और सबके विकास की बात करती है। अंदर कुछ और बात करते हैं, बाहर कुछ और बात करते हैं। वहीं रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले में संसद में गलतबयानी कर स्मृति ईरानी विपक्ष के निशाने पर आ गई हैं। विपक्ष उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव ले आया। विपक्ष का आरोप है कि स्मृति ईरानी ने रोहित वेमुला मामले में संसद को गुमराह किया है। विपक्ष स्मृति ईरानी से माफी मांगने की मांग कर रहा है। सोमवार को जब वित्त मंत्री बजट भाषण पढ़ने के लिए खड़े हुए तो विपक्ष ने अपने विशेषाधिकार हनन नोटिस की स्थिति जानने के लिए हंगामा भी किया हालांकि स्पीकर ने अभी इस नोटिस पर कोई फैसला नहीं लिया है। संसद में रोज रोज हो रहे हंगामे को देख- सुन कर कुछ ऐसा नहीं लगता कि हम बेहद उत्तेजित नेताओं से घिर गये हैं। जो जिधर से आता है एकदम उत्तेजित और किसी ना किसी मुद्दे से अटा पड़ा। एक मुद्दा उठता है, उससे कुछ सवाल उठते हैं फिर जवाब में एक दूसरा मुद्दा आता है और फिर नए सवाल उठते हैं। जनता को भरमाने की नित नई नई कलाओं का प्रदर्शन हो रहा है।
बिखरते टूटते लम्हों को अपना हमसफर जाना
था इस राह में आखिर हमें खुद ही बिखर जाना
वक्ता की शैली जवाब है। तथ्यों को भाव भंगिमाओं से भरा जा रहा है। पिछले दस दिनों की बहसों का क्या हासिल हुआ? क्या कोई मुकम्मल जवाब मिला?ये बहसें हमारे सार्वजनिक जीवन के पतन की निशानी हैं। संस्थाओं का पतन न हुआ होता तो इतने सारे सवालों की जरूरत नहीं पड़ती।
मेरे जलते हुए घर की निशानी बस यही होगी
जहां इस शहर में तुम रोशनी देखो ठहर जाना
सबको सोचना चाहिए। इन बहसों से किसे क्या मिला। जो दल एक दूसरे को हराने के लिए ही बने हैं, उन्हें कुश्ती करने के दो- चार दिन मिल गए। क्या किसी को जवाब मिला? कभी मिलेगा? अर्थव्यवस्था की हालत खराब है। कोई इस मसले पर एक दूसरे को क्यों नहीं घेरता। बुनियादी सुविधाएं और जीवन स्तर में खास बेहतरी नहीं हुई है, इसे लेकर संघर्ष क्यों नहीं है। वो आवाज कहां गई जिसका काम था असहमतियों को नफरत में बदलने से रोकना। सब एक दूसरे से नफरत ही करेंगे तो बहस करना एक दिन सबसे बड़ी हिंसा हो जाएगी।
कैसे-कैसे मंजर सामने आने लगे हैं
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
इतिहास उठाकर देख लीजिए। जब कभी असल मुद्दों पर जनता का ध्यान जाना शुरू होता है, वैसे ही कोई भावुक मुद्दा अचानक बहस का विषय बन जाता है। नब्बे के दौर में आरक्षण और मंदिर-मस्जिद विवाद था तो आजकल देशभक्ति बनाम देशद्रोह।
पस-ए-जुल्मत कोई सूरज हमारा मुन्तजिर होगा
इसी एक वहम को हमने चिराग-ए-रहगुजर जाना
नेता चाहे दून स्कूल का पढ़ा हो या चाय बेचकर कढ़ा हो। सब में यह क्षमता होती है कि वह बड़े से बड़े पढ़े-लिखे वकील, टीचर, पत्रकार, मैनेजर और सरकारी आदमी को अपनी चॉइस के विषयों पर सोचने को मजबूर कर दे। जैसे कि आजकल नेताओं ने दुर्गा, महिषासुर, तिरंगा झंडा और देश विरोधी नारे जैसे मसले जनता को दिए हैं। नेताओं का हिप्नॉटिजम ऐसा है कि असल नुकसान और मुद्दे लोगों को दिखना ही बंद हो जाते हैं।
हवा के दोश (कंधे) पर बादल के टुकड़े की तरह हम हैं
किसी झोंके से पूछेंगे कि है हमको किधर जाना
0 comments:
Post a Comment