महिला दिवस पर नारी विमर्श
आज स्त्री विमर्श एक फैशन बन गया है। हालांकि स्त्री के मुद्दों पर चिंता की अभिव्यक्ति के लिए आन्दोलन भी हो रहे हैं। परन्तु यह कोई नई बात नहीं है। नारी अस्मिता और उससे जुड़े तमाम सवालों का हल दो सौ से भी अधिक वर्षों से ढूंढ़ा जा रहा है तथापि समस्याएं यथावत हैं। आश्चर्यजनक तो यह है कि स्त्रीवादियों के आन्दोलन की जो लहर पहले पहल अठारहवीं शताब्दी के मध्य में उठी थी, अब तक अपनी मंजिल नहीं पा सकी है। यद्यपि स्त्री की एक नयी छवि अवश्य उभर रही है। सदियों से बंधनों में जकड़ी स्त्री अब स्वावलंबी और सबला बनने हेतु सचेष्ट है। अतएव विश्व के अधिकतर देशों में सकल घरेलू उत्पाद में उनकी सक्रिय भागीदारी बढ़ रही है। वस्तुत: महिलाओं के संदर्भ में रोजगार, शिक्षा और कानून को लेकर समानता की मांग बेमानी नहीं है। क्योंकि वे हर जगह भेदभाव से पीड़ित हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) क़े दस्तावेज मानव विकास रपट से ज्ञात होता है कि समूचे विश्व में महिलाएं शोषण का शिकार हैं। पुरुष प्रधान समाज में उसकी उन्नति के मार्ग में हर कदम पर अवरोध दिखाई देते हैं। यह भी कटु सत्य है कि संसार में दो तिहाई कठिन परिश्रम वाले कार्य महिलाएं ही करती हैं परन्तु इसके बदले उन्हें बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है। उन्हें पुरुषों की आय के दसवें भाग के बराबर मिल पाता है और सम्पत्ति तो बमुश्किल सौ में से एक महिला के नाम पर होती है। दरअसल स्त्री अपने परिवार के लिए अथक परिश्रम करती है पर उसके श्रम को कोई सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है। भारत में तो कर्तव्य और प्रेम की ओट में उसके श्रम की अनदेखी कर दी जाती है। आज नारी का अस्तित्व खतरे में है। यदि हम भारत की बात करें, तो यहां परिवार की व्यवस्था के लिए एक सौभाग्यवती ब्याहता की मांग होती है। नारी मुक्ति आन्दोलन स्त्री की स्वतंत्रता पर बल देता है, जबकि असल मुद्दा यह है कि उसे इंसान के रूप में मान्यता दी जाए। तब उसे पुरुष के समान अधिकारों की मांग अलग से करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। देश और समाज के प्रति उसकी भूमिका और उत्तरदायित्व इंसान के रूप में ही सुनिश्चत हो जाएंगे। मगर दु:ख की बात यह है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति सरकार के समस्त प्रयासों के बावजूद दयनीय होती जा रही है। नारी को कुदरत की सबसे अनमोल आकृतियों में से एक कहा गया है। कहते हैं भगवान ने औरत बनाई और औरत पर इस सृष्टि को बनाने और बनाए रखने का भार भी सौंप दिया। तब से लेकर अब तक नारी ने इस बागडोर को बड़े ही अच्छे ढंग से संभाला भी है और आगे भी वह संभालती रहेगी। नारी के कई रूप हैं। नारी जननी है। मार्गदर्शिका है, बेटी है, बहन है, प्रेमिका है, पत्नी है और सबसे बढ़कर एक बहुत अच्छी दोस्त भी है। हमारे देश में आजकल हर रोज ही कोई ना कोई दिवस मनाया जाता है। वैसे तो भारत को त्योहारों का ही देश कहा जाता है पर वह सप्ताह या माह के अंतराल बाद ही आते हैं। कैलेंडर में देखें तो नये साल से शुरू होकर वैलेंटाइन डे, होली से क्रिसमस तक हर रोज कोई न कोई खास दिन होता है। आज महिला दिवस है। पूरा विश्व इस दिन महिलाओं को सम्मान देता है, लेकिन भारत में तो नारी की पूजा ही होती है। लेकिन क्या सिर्फ आज के ही दिन महिला सम्मान की बातें करने से महिला सम्मान की सुरक्षा हो जाती है या ये सिर्फ एक खानापूर्ति ही है? जरूरत इस बात की है कि महिलाएं खुद अपने अस्तित्व को पहचानें। इस देश में नारी को श्रद्धा, देवी, अबला जैसे संबोधनों से संबोधित करने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। नारी के साथ इस प्रकार के संबोधन या विशेषण जोड़कर या तो उसे देवी मानकर पूजा जाता है या फिर अबला मानकर उसे सिर्फ विलास की वस्तु मानी जाती रही है। लेकिन इस बात को भुला दिया जाता है नारी का एक रूप शक्ति का भी है, जिसका स्मरण औपचारिकतावश कभी-कभी ही किया जाता रहा है। नारी मातृ सत्ता का नाम है जो हमें जन्म देकर पालती- पोसती और इस योग्य बनाती है कि हम जीवन में कुछ महत्वपूर्ण कार्य कर सकें। फिर आज तो महिलाएं पुरुषों के समान अधिकार सक्षम होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा और कार्यक्षमता का पंचम लहरा चुकी हैं। उसने आज समाज को साबित कर दिया है कि वे भी किसी से किसी मामले में कम नहीं हैं। फिर भी ना जाने कितने ही भेदभाव आज भी किए जा रहे हैं, अब उन्हें केवल एक दिन का सम्मान पाकर खुश नहीं होना,उन्हें हर दिन, हर पल और हर कदम पर सम्मान चाहिए और अपना हक भी। तो आज इस महिला दिवस पर हम संकल्प करते हैं कि हम महिलाओं के प्रति इस भेद को मिटाकर रहेंगे।
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