हमारे इस देश में यानी ‘इंडिया दैट इज कॉल्ड भारत’ में दरअसल दो देश हैं। एक तो वह जो आई पी एल के चौके छक्के पर सीटियां बजाता है या सोने चांदी की दुकानों में घूमता है, वह दरअसल इंडिया है। …और एक दूसरा और देश है जिसे हम सकुचाते हुये भारत कहते हैं। क्रिकेट की जो टीम खेलती है वह टीम इंडिया है और सूख्गे से आत्म हत्या करने वाला एक किसान भारतीय है। उनकी ख बर अखबार टीवी में नहीं आती क्योंकि किसानाहे की किसानो की खुदकुशी भी कोई खबर है। उसमें तो इतना भी साहस नही है जो बकौल इकबाल
जिस खेत से दहकां को रोजी ना हो मयस्सर
उस खेत के हर खोसा ए गंदुम को जला डालो
दिक्कत तो यह है कि इंडिया के लोग भारत को नहीं जानते। इसे देखना तो दूर उन्होंने इसे महसूस तक नहीं कियाह है। सरकार इस भारत के लिये योजनाएं बनाती है। इस साल का बजट भी इसी भारत के विकास के लिये तैयार किया गया। पर हुआ क्या? इसके पहले भी सरकारें योजनाएं बनातीं रहीं है। कई कार्यक्रम बने और चलाये गये पर हुआ क्या?
तुम्हारी फाइलों में गांवों का मौसम गुलाबी है
पर ये आंकड़े झूठे और दावे किताबी हैं
सचमुच ये आंकड़े झूठे हैं। आप भारत का दौरा करें, जी हां इंडिया का दौरा नहीं भारत का दौरा करें। यहां एक सरकारी योजना या कहें चंद प्रमुख सरकारी योजनाओं को देखें। पहली योजना है मुफ्त शिक्षा की। बेशक यह बेहतरीन है। इससे किसी को इंकार नहीं है। पर सच क्या है? कोई भी गरीब आदमी वहां अपने बच्चों को क्यों नहीं भेजता? उससे पूछें तो जवाब मिलेगा सरकारी स्कूलों में जवाबदेही का अभाव है। पाठ्यक्रम तो ठीक है पर उसे पूरा करना या उसे बच्चों को पूरी तर वाकिफ कराने की जिम्मेदारी किसी पर नहीं है, किसी को उसके प्रति जवाब देह नहीं बनाया जा सकता है। बच्चों के मां बाप से पूछें तो वे बतायेंगे कि बच्चे अगर पढ़ने जायेंगे तो खर्च कहां से आयेगा। कभी सरकार ने देश की उस आबादी में इसकी जरूरत पैदा की है जैसे नोकिया या सैमसंग ने मोबाइल फोन की जरूरत पैदा की है। कभी सोचा है आपने कि ये मोबाइल फोन हर जेब तक कैसे पहुंच गये? शहर के किसी भी स्लम में जाइये, वहां बच्चे काम करते दिखेंगे, बच्चे बारूद और बन बनाने वालों के चंगुल में दिखेंगे, बच्चे जघन्य अपराध करते मिल जायेंगे पर पढ़ते हुये नहीं मिलेंगे। गरीबतम घर में टीवी है उसमें 100 रुपये महीने का डी टी एच कनेक्शन है पर 80 रुपये माहवार फीस देकर स्कूल भेजने के लिये मां बाप तैयार नहीं हैं। कारण क्या है? कारण है कि सरकार ने लोगों में मुफ्त मनोरंजन की आदत नहीं डाली है पर मुफ्त शिक्षा की आदत डाल दी है। यह ‘भारत को अनपढ़ बनाये रखने की साजिश है।’ दरअसल लोकतांत्रिक सरकार हमारे देश में एक नवीन अवधारणा है। हम अरसे से या कहें प्राचीन काल से एक सामुदायिक जीवन जीने के आदी रहे हैं। हमने दुख सुख , हंसी खुशी बांटना सीखा है। सरकार बनी तो यह कहा गया कि वह जनता की हिफाजत करेगी और झगड़े मिटायेगी। पर जैसे जैसे उसकी ताकत बढ़ती गयी हमारी आजादी तथा स्वनिर्भरता घटती गयी। जब सब कुछ उसे हाथ में आ गया तो वह लोक कल्याण की जगह वोट पाने और सत्ता में जगह पाने के बारे में सोचने लगी। बकौल केदार नाथ सिंह
तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में
यह अलग अलग दिखता है हर दर्पण में
पिछले कुछ वर्षों से गरीबी के प्रति जागरुकता बढ़ी है और सभी देश गरीबी मिटाने के लिये कुछ ना कुछ करने लगे हैं। हमारंे देश में भी ऐसी हवा चली है। सरकार तथा एन जी ओ ने कदम उठाया है। पर हुआ क्या? हम ये नहीं कहेंगे कि इनमें सबका इरादा गलत थ या है। लेकिन अगर आप कोई काम खास कर समाज सेवा का काम करते हैं तो उसके दूरगामी नतीजों पर भी सोचना होगा। समाज और उसकी मनोदशा पर भही सोचना होगा वरना सब नाकाम हो जायेगा। ‘भारत ’ का हर आदमी पहले कमाना चाहता है। चाहे वह छोटी दुकान हो या ई रिक्शा हो टैक्सी चालन। हर आदमी ये महसूस करता है कि जब में दो पैसे हों तो वह अपने परिवार को ठीक से चला पायेगा और उसके बच्चे गुंडों तथा अपराधियों से महफूज रहेंगे। देश में गरीबी तभी दूर हो सकती है जब विकास में गरीबों का सक्रिय योगदान हो। सरकार को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिये जिससे गरीबों में आर्थिक सक्रियता बढ़े ना कि बड़े बड़े उद्यम लगा कर इंडिया वालों को और अमीर बनाते जाएं। गरीब लाचार आहैर बेरोजगार केवल भाषण सुनता रहे नेताओं के।
साथियों, रात आयी अब मैं जाता हूं
जब आंख लगे तो सुनना धीरे धीरे
किस तरह रात भर बजती हैं जंजीरें।
अग्हर सरकार योजनाएं नहीं बनाती जिससे गरीबों को आर्थिक विकास में सक्रिय भागीदारी का मौका ना मिले तो सारी की सारी योजनाएं और अच्छे इरादे नरक पंथ की ओर बढ़ते दिखेंगे। योजनाओं की जो हरियाली दिखायी जा रही है वह सब एक झांसा है।
वह क्या है हरा हरा सा जिसके आगे
उलझ गये हैं जीने के सारे धागे
ये शहर जिसमें रहतीं हैं इच्छाएं
कुत्ते, भुनगे आदमी ,गिलहरी ,गाएं।
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