CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, April 29, 2016

बड़े धोखे हैं इस राह में

इन दिनों सोशल मीडिया बड़ी तेजी बढ़ रहा माध्यम हैग्लोबल कंसल्टेंसी ग्रुप केपीएमजी का अनुमान है कि 2017 तक भारत का मीडिया व मनोरंजन उद्योग 1,661 अरब रुपये का हो जाएगा। बीते साल टीवी सेक्टर में 12.5 फीसदी, प्रिंट में 7.3 फीसदी और फिल्म उद्योग में 21 फीसदी की तेजी देखी गई। विकास के लिहाज से सिनेमा सबसे बड़ा उद्योग बना हुआ है। दूसरे नंबर पर टीवी सेक्टर और तीसरे पर प्रिंट है।

आए दिन खुल रहे स्थानीय चैनलों की वजह से भी टीवी क्षेत्र में तेजी आई है। 2008 की विश्वव्यापी मंदी ने भारत में टीवी चैनलों पर असर डाला था। विज्ञापन कम होने की वजह से उन्हें आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद तेजी में ठहराव नहीं आया। केपीएमजी की रिपोर्ट कहती है, 2012 में आर्थिक सुस्ती ने उद्योग पर कड़ी मार की, खास तौर पर विज्ञापन से होने वाली आय के मामले में। लेकिन सकारात्मक बदलावों के कई संकेत इस साल दिखने लगे हैं। यही नहीं , बीते तीन-चार साल से सोशल नेटवर्किंग साइट्स भी पारंपरिक मीडिया को चुनौती दे रही हैं।  मीडिया जिन मुद्दों तक नहीं जा पा रहा है या जिन विषयों से बचता है उन पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चर्चा हो रही है। ऐसी चर्चाएं एक तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ओर इशारा करती हैं तो दूसरी तरफ यह चेतावनी भी देती है कि पारंपरिक स्रोत से विश्वसनीय जानकारी न मिलने पर टूटी फूटी सूचनाएं किस ढंग से बाहर आतीहैं। मुमकिन है कि कई बार मुख्य धारा का मीडिया यानी जिम्मेदार टीवी चैनल या वेबसाइट या अखबार इत्यादि आपको पूरा सच नहीं बता पाएं, या देर से बताएं, या पहले कुछ बताया हो और बाद में कुछ और बताने लगें। लेकिन फिर भी ये बेहतर होगा कि आप जिम्मेदार मीडिया पर ही यकीन करें। क्योंकि सोशल मीडिया पर यकीन करके आप न सिर्फ अफवाहों के चंगुल में फंसते हैं, उसे हवा देते हैं और समाज को अराजकता के दलदल में ढकेलने का माध्यम बनते हैं। अभी चुनाव के इस दौर में लड्डू खिलाने का एक फोटो या किसी शेख के सामने झुकने का मोदी का फोटो नकली बनाकर पाले सोशल मीडिया में ही चला, बाद में वह मुख्य धारा की मीडिया में आ गया। इससे जो कानूनी लड़ाई शुरू हुई वह तो हुई ही उसको लेकर एक भावात्मक आहवेग भ​ जन्म ले लिया। यही नहीं इसके पहले म्यांमार की तस्वीर पूर्वोत्तर भारत के नाम से दिखा कर गंभी साम्प्रदायिक तनाव पैदा करन का प्रयास किया गया था।  सोशल मीडिया ने आज विश्वसनीयता का अपूर्व संकट खड़ा किया है। इसकी ज्यादातर खबरें गलत और दुर्भावनापूर्ण होती हैं। सोशल मीडिया पर मुट्ठीभर गैरजिम्मेदार लोग सक्रिय हैं। लेकिन ये लोग पलक झपकते ही करोड़ों लोगों को अपना हथियार बना लेते हैं। मौजूदा दौर में सोशल मीडिया ने आम आदमी को परमाणु या रासायनिक हथियारों से भी कहीं ज्यादा विध्वंसक अस्त्र थमा दिया है। अगर नकारात्मक रर्वये से सोंचें तो यह कहना सही होगा,

‘खेंचो ना कमान और ना तलवार निकालो

जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकलो।’

ये इंसान के ज्ञात इतिहास में अपूर्व है। संचार क्रान्ति का ये अद्भुत लेकिन भयावह रूप है। भारत में ये बीमारी तो दो-चार साल ही पुरानी है। विकसित देश तो इसका दंश दशक भर से भुगत रहे हैं। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आज़ादी को ‘अभिव्यक्ति की अराजकता’ में बदल दिया है। ये अराजकता आज जिसकी ताजपोशी करेगी, कल उसी का तख्ता पलट भी करेगी। सोशल मीडिया हमें अराजकता की प्रतिस्पर्धा में ढकेल चुका है। अब जो ज्यादा अराजक होगा, वही सरताज बनेगा। ये अराजकता किसी कानून से काबू में नहीं आएगी। ये समाज को और मूल्य विहीन करेगी। सनकी प्रवृत्तियों को बढ़ाएगी। अनुशासन और शर्म-ओ-हया को किताबी बना देगी। इंसान के लिए ये बारूद से भी कहीं ज्यादा विध्वंसक होगा।

 

 

 

  

 

 

 

 

 

0 comments: