ये तो होना ही था
विवेकानन्द फ्लाई ओवर का गिरना उसी समय तय हो गया था जब 2007 में इसका डिजाइन बना था। इसकी डिजाइन पर काम करने वाले 6 इंजीनियरों में से एक ने तो स्पष्ट तौर पर लिखित दिया था कि यह पुल टिक नहीं पायेगा । यही नहीं, कोलकाता के जमीन के भीतर की भार वहन क्षमता का लीनियर एवं लोगरिदमिक विश्लेषण करने अौर पुल में लगाये गये लोहे के इलास्टीसिटी कोएफिशिएंट के गुणकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि इसकी परिकल्पना अौर डिजाइन की निर्मिति में भयानक लापरवाही बरती गयी है।
पुल के निर्माण में सरकार के विभिन्न महकमों और भ्रष्टाचार की सनसनीखेज कथाअों से अलग यह इंजीनियरिंग की आपराधिक लापरवाही का एक ऐसा कुचक्र है जो अभी अौर कई जानें लेगा। दरअसल जिस दिन मेट्रो रेल की योजना बनी थी उसी दिन इस तरह की दुर्घटनाओं का होना तय हो गया था। कोलकाता मेट्रो की लोकलुभावन परियोजना के भीषण प्रचार के मध्य इंजीनियरों ने कोलकाता की मिट्टी की बनावट और भविष्य में उसमे होने वाले परिवर्तन के दुष्परिणामों को नजरअंदाज कर दिया या उन्हें नजरअंदाज करने पर मजबूर किया गया। यही नहीं, सरकारी अांकड़ों के मुताबिक दिन के 11बजे से शाम के पांच बजे के बीच इस इलाके में लगभग एक लाख अतिरिक्त लोग अाते हैं। इसके अलावा अौसतन डेढ से दो हजार अतरिक्त वाहन। इसका सीधा गणित है कि पुल जिस जमीन पर टिका है उसपर हजारों टन का अतिरिक्त बोझ। यह बोझ आवागमन से होने वाले वाइब्रेशन से उत्पन्न मूमेन्टम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है , फलतः दबावकारी बल कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे में जमीन के भीतर ढलाई के काम में प्रयुक्त सीमेंट, बोल्डर और छड़ें दबाव को नहीं झेल पातीं हैं। नतीजा होता है तल की मिट्टी तेजी से खिसकती है और उसके ऊपर बना स्ट्रक्चर बैठ जाता है।अगर वह खंभों पर टिका हो तो मिट्टी के साथ ही खंभे भी नीचे आते हैं और चूंकि खंभों का असमान होता है इसलिए जमीन से खंभों का कोणीय संतुलन बदल जाता है लिहाजा लोड फैक्टर केन्द्रीभूत हो जाता है। नतीजतन टूट जाता है। विवेकानन्द रोड के फ्लाई ओवर के गिरने का संभावित कारण यही हो सकता है।
इसका फैसला 2007 में ही होना चाहिए था। एक बार काम शुरू हो जाने के बाद उसे रोकने या बंद कराने गंभीर सियासी नतीजे हो सकते थे। ममता जी की सरकार ने लोकप्रियता के लोभ में सुरक्षा तत्वों को जान बूझ कर अनदेखा किया है। इस बहती गंगा हाथ धोना किसको बुरा लगेगा, करप्शन के तत्व तो ऐसे ही घुस आएंगे।
यह केवल अकेला नहीं है। जवाहर लाल नेहरू रोड वाला फ्लाईओवर भी गिर जाय तो हैरत नहीं होगी ।
यहां सवाल है कि जिनके पास अावाज है वे चुप क्यों हैं?
Thursday, April 7, 2016
ये तो होना ही था
Posted by pandeyhariram at 12:22 AM
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