प्रधानमंत्री जी लगातार मन की बात कह
रहे हैं और देश की हालत तेजी से बिगड़ती जा रही है। पूंजी निवेश का बंदोबस्त किया जा
रहा है और उस निवेश के बाद होने वाले विवाद को निपटाने के लिये अदालतों के पास समय
नहीं है। रविवार को सुप्रम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ठाकुर एक सभा में
अदालतों और न्याय करने की उनकी क्षमता का जिक्र करते हुये रो पड़े। जिस देश की अदालत
इतनी लाचार हो क्या उस देश में कभी पूंजी युक्त व्यापार हो सकता है या किसी किस्म के
व्यापार के फलने फूलने की उम्मीद है। देश का पैसा विदेशों में जा रहा है। विजय माल्या
तो दिख गये तो बवंडर खड़ा हो गया। अगर से ठीक
से जांच की जाए तो इसमें भी एक बड़ा घोटाला सामने आ सकता है कि बहुत सारी कंपनियों
ने होटल और रिजॉर्ट खरीदने के लिए पैसे भेजे, लेकिन पैसा किसी और जगह पर लगा दिया।
यही किस्सा बैंकों से हजारों-लाखों करोड़ रुपये लोन लेने वाली कंपनियों ने भी किया
है। भारतीय बैंकों में जो लोन घोटाला हुआ है, उसकी भी पड़ताल की जाए तो यह पता लगाया
जा सकता है कि हर भारी-भरकम लोन लेने वाले समूहों ने विदेशों में अपना अच्छा-बड़ा आसियाना
बना रखा है, जिसका उनके उद्योगों से कोई खास लेना-देना नहीं है। सरकार करे तो क्या
करे। अदालत का पचड़ा है वह सुलझता ही नहीं। एक छोटा मामला वर्षों झूलता रहता है। दूसरी
ओर विकास ना होने से बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है।
जो डलहौजी न कर पाया वह ये हुक्काम कर देंगे
कमीशन दो तो हिंदुस्तान नीलाम कर देंगे
लेबर ब्यूरो के जारी ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 की
जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान देश भर में महज 1.34 लाख लोगों को नई नौकरियां मिली।
2009 के बाद किसी एक तिमाही का यह सबसे कमजोर प्रदर्शन है। इससे भी बुरी बात यह है
कि पिछले साल के पहले नौ महीनो में ‘लेबर इंटेंसिव इंडस्ट्री’ (वे उद्योग जहां
ज्यादा मजदूरों की जरूरत होती है) ने गत छह साल का सबसे कमजोर प्रदर्शन किया। उक्त
अवधि में महज 1.55 लाख नई नौकरियां आईं, जबकि 2013 और 2014 में इसी समय के दौरान
तीन-तीन लाख लोगों को रोजगार मिला था। अप्रैल 2015 से जनवरी 2016 के बीच औद्योगिक
उत्पादन सूचकांक केवल 2.7 प्रतिशत बढ़ा, जबकि सर्विस सेक्टर में 9.2 प्रतिशत की
गति से इजाफा हुआ। आईआईपी में कोयला, तेल, गैस, इस्पात जैसे आठ प्रमुख क्षेत्रों
का योगदान 38 प्रतिशत है और इस दौरान उनकी विकास दर महज दो प्रतिशत दर्ज की गई।
मंदी के दौर में तो पुरानी नौकरियों पर भी छंटनी का हथौड़ा चलता है। नौकरियों पर
लगे ग्रहण का दूसरा बड़ा कारण देश में लगातार दो साल से पड़ रहा सूखा है।
ये बंदेमातरम
का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाजार
में चीजों का दाम दुगना कर देंगे
डिपार्टमेंट
ऑफ इंडस्ट्रियल पालिसी एंड प्रोमोशन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में एफडीआई में 19 प्रतिशत की गिरावट आयी थी, जबकि 2015
में छह फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2015 में इन्फ्रास्ट्रक्चर में तो एक साल
पहले की अपेक्षा कमी ही दर्ज हुई है। मोदी सरकार के प्रथम बीस माह के दौरान एफडीआई
की रकम 85 अरब डालर रही, जो मनमोहन सिंह के शासन से 26 अरब डालर अधिक है। अच्छी
बात यह है कि विदेश जाने वाली पूंजी में 37 फीसदी गिरावट दर्ज हुई है। आज शिक्षित
बेरोजगारों के अलावा बड़ी संख्या में किसान-मजदूर भी खेती छोड़कर अन्य क्षेत्रों
में काम खोज रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग में खेतिहर मजदूरों को खपाया जा सकता है। आज
जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी महज 15 प्रतिशत है। 25 बरस पहले भी
अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान इतना ही था। भले ही भारत की गिनती
दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यस्थाओं में की जाती है, किन्तु हमारे यहां विकास दर में
प्रति अंक वृद्धि पर सबसे कम नौकरियां मिलती हैं। खेती चौपट हो गयी, नौकरियां मिल
नहीं रहीं हैं , बड़े लोग बैंक से कर्ज लोकर पैसा विदेश ले जा रहे हैं लिहाजा बैंक
छोटे लोगों को धन देने में ना नुकुर कर रहे हैं। यही नहीं महंगाई रोजाना बढ़ रही
है और उसी तेजी से सरकार के वायदे झूठे साबित हो रहे हैं।
रोटी कितनी
महंगी है ये वो औरत बतायेगी
जिसने जिस्म
गिरवी रख के ये कीमत चुकाई है
अमीर जो इस
130 करोड़ की आबादी में मुट्ठी भर भी नहीं हैं वे तेजी से अमीर हो रहे हैं और गरीब
उससे भी ज्यादा तेजी से गरीबी होते जा रहे हैं। किसानों और गरीब तबके में खुदकुशी
की घटनाएं बढ़ रहीं हैं।
जो बदल सकती
है इस पुलिया के मौसम का मिजाज
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की
हताशा देखिये
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