हरिराम पाण्डेय
भारतीय तेल कम्पनियों ने पेट्रोल के दाम में अब तक की अपनी सबसे बड़ी वृद्धि की है। इसकी कीमत में प्रति लीटर पांच रुपये का इजाफा कर दिया गया है। पेट्रोल के दाम में यह वृद्धि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों के एक दिन बाद हुई है। इस वृद्धि की विपक्षी पार्टियों ने निंदा की है। अधिकारियों के मुताबिक सरकार द्वारा संचालित तीन तेल कम्पनियां घरेलू ईंधनों को सब्सिडी के तहत बेचे जाने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए कीमत में वृद्धि कर रही हैं। पिछले वर्ष से यह आठवीं वृद्धि है।
पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों में की गयी इस वृद्धि का सबसे खराब पहलू है कि इसके खिलाफ आम जनता अभी तक गोलबंद होकर प्रतिवाद करती नजर नहीं आ रही है। क्या वजह है कि महंगाई के खिलाफ जनता के प्रतिवाद आम जीवन से गायब हैं? इस मूल्य वृद्धि को सरकार हाशिए पर डालने में सफल क्यों है? अन्य महत्वपूर्ण राष्टï्रीय समस्याओं पर भी आम लोगों में जिस तरह की तेज प्रतिक्रिया होनी चाहिए वह दिखायी क्यों नहीं देती? आखिरकार महंगाई को वर्चुअल बनाने में केन्द्र सरकार कैसे सफल रही है? इत्यादि सवालों के हमें समाधान खोजने चाहिए।
सन 1994-95 के बाद जबसे साइबर संस्कृति का विस्तार हुआ राजनीतिक संवाद आम जीवन से चुपचाप गायब हो गया और उसकी जगह टेलीविजन केन्द्रित राजनीतिक विमर्श आ गया। टीवी विमर्श ने जनता को गूंगा और बहरा बनाया है। इसने हमें राजनीति का दर्शक बना दिया भागीदार नहीं। हमारे राजनीतिक दलों को इस स्थिति को बदलने की कोशिश करनी चाहिए।आज हम यथार्थ से प्रभावित तो होते हैं लेकिन उसे स्पर्श नहीं कर सकते, बदल नहीं सकते। अपदस्थ नहीं कर सकते। अब मंहगाई महज सूचना बनकर आती है। नये मीडिया वातावरण में अब प्रत्येक वस्तु,विचार, राजनीति, धर्म, दर्शन, नेता आदि सब को सूचना या खबर में बदल दिया गया है। यही वजह है कि चीजें हम सुनते हैं और सक्रिय नहीं होते। जब हर चीज खबर या सूचना होगी तो वह जितनी जल्दी आएगी उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाएगी। लाइव टेलीकास्ट में पेट्रोलियम पदार्थों में वृद्धि की खबर आयी और साथ ही साथ हवा हो गयी। सूचना का इस तरह आना और जाना इस बात का संकेत भी है कि सूचना का सामाजिक रिश्ता नहीं होता। सूचना का सामाजिक बंधनरहित यही वह रूप है जो सरकार को बल पहुंचा रहा है। मंहगाई के बढऩे के बाबजूद सियासी दलों पर कोई राजनीतिक असर नहीं हो रहा। हर चीज के खबर या सूचना में तब्दील हो जाने और सूचना के रूपान्तरित न हो पाने के कारण ही आम जनता की आलोचनात्मक प्रवृत्ति का भी क्षय हुआ है। एक खास किस्म की पस्ती, उदासी, अनमनस्कता, बेबफाई, अविश्वास,संशय आदि में इजाफा हुआ है। सूचना या खबर अब हर चीज को हजम करती जा रही है । उसमें भूल, स्कैण्डल, विवाद, पंगे आदि प्रत्येक चीज समाती चली जा रही हैं। उसमें सभी किस्म की असहमतियां और कचरा भी समाता जा रहा है और फिर री-साइकिल होकर सामने आ रहा है। इससे अस्थिरता, हिंसा, कामुकता, सामाजिक तनाव, विखंडन, भूलें आदि बढ़ रही हैं। इस प्रक्रिया में हम ऑब्जेक्टलेस हो गये हैं। हमारे अंदर नकारात्मक शौक बढ़ते जा रहे हैं। इनडिफरेंस बढ़ा है। यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां पर हमें ठंडे दिमाग से इस समूचे चक्रव्यूह को तोडऩे के बारे में सोचना चाहिए।
Tuesday, May 17, 2011
पेट्रोल मूल्य वृद्धि: विरोध का वह स्वरूप कहां गया
Posted by pandeyhariram at 10:28 AM
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