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हरिराम पाण्डेय
ममता जी का मुख्य मंत्री बनना निश्चित है वैसे विधायक दल के नेता चुने जाने की उनकी औपचारिकता भी पूरी हो गयी और शपथ ग्रहण की रस्म अदायगी होनी है। ममता जी ने चुनाव के पहले जिन उम्मीदों को बंगाल की जनता के भीतर जगाया है उससे लगता है कि बंगाल 21वीं सदी में राष्ट्र की मुख्य धारा का हिस्सा हो सकता है। यह एक नया बंगाल होगा जो अपनी अकर्मण्यता की बदनामी, खंडित तथा विविध ग्रामीण पृष्ठभूमि के बावजूद विकास और बदलाव का व्यापक केंद्र बनेगा। जी हां, बंगाल के लोगों ने अपने मन की बात कह दी है। उन्होंने विकास की निरंतरता का वायदा करने वाली सरकार को चुना है और फिर से सदियों पुरानी कम्युनिस्ट अवधारणा के जरिये विकास की बात करने वालों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब माकपा को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा और आत्मचिंतन करना होगा कि कौन सी सोच उनके राजनीतिक भविष्य के लिए खतरनाक बन गयी। लेकिन इस भारी जीत के बाद, ममता जी के सामने चुनौतियां और बढ़ गयी हैं। लोगों ने विकास के प्रति विश्वास जताया है और अगले 5 वर्षों में उनकी उम्मीदें और बढ़ेंगी। लोग चाहेंगे कि चुनाव प्रचार के दौरान जो वायदे किए गए सरकार उसे पूरा करे।
जवाबदेही और उत्तरदायित्व ही बंगाली जनता का पैमाना होगा जिसकी कसौटी पर पर वे सरकार को जांचेंगे और अपना अगला फैसला सुनाएंगें। अगले 5 साल तक ममता जी किसी भी प्रकार की उदासीनता के लिए केंद्र को दोषी नहीं ठहरा सकेंगी , क्योंकि केंद्र में भी वह हैं।
ममता जी और उनके सहयोगियों को साबित कर दिखाना होगा कि वे बंगाल में निवेश ला सकते हैं, उद्योगों की स्थापना करवा सकते हैं, बंगाल में रोजगार के अवसर मुहैया कराना होगा। उन्हें कानून व्यवस्था को बनाए रखना होगा। आपराधिक तत्वों पर नकेल कसनी होंगी। ईमानदार कर्मचारियों को अहमियत देनी होगी।
अभी तक किसी भी नेता ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि विकास की रूपरेखा क्या होगी जिस पर ममता जी सरकार काम करेगी। नयी सरकार विविधताओं और संकीर्णताओं से भरे बंगाल में विकास के वायदे कैसे पूरी करेगी। सामाजिक एकता के लिए सरकार का क्या एजेंडा होगा। ममता जी की सरकार विकास के काम में ठेकेदारों और उनके मित्रों को मुनाफाखोरी से कैसे रोकेगी? साथ ही साथ सरकार नौकरशाहों के सामंती रवैयै को कैसे बदल पाएगी जो गरीबों तक सरकारी योजनाएं पहुंचने ही नहीं देते। तो सरकार इस तरह की दैनिक मुश्किलों से रूबरू होगी।
पत्रकार और राजनीतिक पर्यवेक्षक आने वाले दिनों में कई सवाल उठाएंगे। ममता सरकार अगर अपने वायदे में विफल रही तो आने वाले दिनों में उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ेगा। मगर परिवर्तन के लिए डाला गया वोट अगले पांच साल में इस बात का आश्वासन है कि बंगाल भूख, गरीबी, कुशासन और भ्रष्टाचार के चंगुल में फिर से नहीं फंसेगा। अब उम्मीद है कि बंगाल के इस बदलाव में न्यूटन के बल का तीसरा नियम नहीं लागू होगा।
क्योंकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लेफ्ट की हार का कारण अक्षम प्रशासन नहीं रहा है। कुछ गलतियां जरूर हुई होंगी, लेकिन रणनीतिक मामलों में भी लेफ्ट ने कई गलतियां की हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के पहले लेफ्ट पार्टियों ने यूपीए का साथ नहीं छोड़ा होता तो आज स्थितियां कुछ और होतीं। यूपीए के साथ रहने की स्थिति में तृणमूल और कांग्रेस मिलकर चुनाव नहीं लड़ पाते। दोनों अगर अलग-अलग चुनाव लड़ते तो लेफ्ट की जीत तय थी। इस बार वोटों का यह आंकड़ा उलट गया। लेफ्ट को करीब 41 प्रतिशत वोट मिले, वहीं 8 प्रतिशत बढ़त के साथ तृणमूल, कांग्रेस गठबंधन को 49 प्रतिशत वोट मिले। इन 8 प्रतिशत वोटों ने सीधी लड़ाई में तृणमूल गठबंधन की तकदीर बदल दी। पिछले चुनाव में दोनों पार्टियों को जहां 54 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार 225 सीटें मिल गयीं। वहीं करीब 8 प्रतिशत के फर्क से लेफ्ट पार्टियों के सीटों की संख्या 233 से घटकर 63 पर आ गयीं। इसमें जो सबसे ध्यान देने वाली बात है, वह यह है कि लेफ्ट पार्टियों के वोट शेयर में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं। यानी ये पार्टियां खत्म नहीं हुई हैं। इसलिये ममता लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना होगा वरना मुश्किलें आ सकतीं हैं।
Sunday, May 15, 2011
ममता जी! अब चुनौतियों से होगी रस्साकशी!!
Posted by pandeyhariram at 4:54 AM
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