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Saturday, May 21, 2011

कंधे पर चढ़ सूरज ने देखा इतिहास को बनते हुये

हरिराम पाण्डेय
20 मई 2011
ज्येष्ठï कृष्ण पक्ष तृतीया सम्वत् 2068 तद्नुसार 20 मई 2011 को राजभवन के हरियाली सेे आच्छादित लॉन में दोपहर 1 बजकर 1 मिनट पर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह शपथ ग्रहण समारोह कई मायनों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है। ममता जी ने 34 वर्ष लम्बे वामपंथी शासन से लगभग दो दशक तक जंग कर उसे पराजित किया। शपथ ग्रहण के बाद जेठ की इस भरी दोपहरी में वे राजभवन से राइटर्स बिल्डिंग (सचिवालय) तक पैदल आयीं साथ में था भारी जनसमूह। हम लोगों में बहुतों ने देखा और सुना होगा कि 1993 में राइटर्स बिल्डिंग से इसी ममता बनर्जी को केश पकड़ कर बेहद अपमान के साथ सरकार ने पुलिस के हाथों बाहर किया था और उसी दिन उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वे जब तक वाममोर्चा को भू लुण्ठित नहीं कर देंगी तब तक इस राइटर्स में प्रवेश नहीं करेंगी। आज वह प्रतिज्ञा पूरी हुई। विशाल जनसमूह और बूट चटकाते पुलिस वालों की सलामियों के बीच ममता जी लगभग पौने पांच बजे राइटर्स बिल्डिंग में दाखिल हुईं। यह करीब- करीब वही समय था जब अबसे 18 साल पहले उनका केश पकड़ कर उन्हें बाहर निकाला गया था। एक अजीब भावुक माहौल था जब सफेद चादर से माथे का पसीना पोंछती वे उस सुर्ख इमारत के कालें रंग पुते दरवाजों से अंदर प्रवेश हुईं और वहां तैनात संतरी ने शस्त्र सलामी दी। चेहरे पर एक अजीब दर्प था। ममता जी ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक आचरण के एक नये अध्याय की शुरुआत की है। यहां यह गौर करने वाली बात है दुनिया के बहुत कम राजनीतिज्ञ समय की दो धाराओं पर एक साथ तैरते हैं। वामपंथी दलों के मोर्चे से तृणमूल कांग्रेस की ओर यह राजनीति का सफर हुआ और यह सफर एक ऐसे समय में हुआ जब आर्थिक गतिविधियों की दिशाएं अविश्वसनीय हैं और राज्य की जनता में तरक्की की भारी तड़प है। जनता ने अपना मुकद्दर एक ऐसे हाथ में सौंपा है जिसकी क्षमता और दूरदर्शिता से लोग परिचित नहीं हैं। दरअसल इस परिवर्तन की कथा ममता जी की विजय कथा के साथ- साथ पश्चिम बंगाल की जनता की भी विजय-कथा है। इस नये परिच्छेद का नायक बंगाल है। शपथ ग्रहण के बाद जब वे राइटर्स की ओर चलीं तो रास्ते में पत्रकारों ने उनसे दो ही बुनियादी सवाल किये पहला राज्य में सुरक्षा के माहौल का तथा दूसरा अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का। यानी राज्य में इन दो स्थितियों का भयंकर अभाव देखा जा रहा है। इन प्रश्नों के उन्होंने क्या उत्तर दिये यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि न वह अवसर ऐसा था और ना स्थैतिक मनोविज्ञान वैसा था। लेकिन उनके संघर्ष की गाथा, उनकी चारित्रिक दृढ़ता और उनके आत्म विश्वास को देखकर सहज ही यकीन किया जा सकता है कि आने वाले दिनों में वे राज्य के कल्याण के लिये कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।

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