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Wednesday, May 25, 2011

ये लापरवाहियां क्यों?


हरिराम पाण्डेय
22.05.2011
होम मिनिस्ट्री और सीबीआई की लापरवाही का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। इस लापरवाही के कारण आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ायी कमजोर पड़ सकती है। पहले तो पाकिस्तान भारत के दावे को गलत कहता था, हो सकता है अब पूरी दुनिया भारत के किसी भी दावे को गंभीरता से ही ना ले। सरकार के इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत के बाद हुई फजीहत के बाद सीबीआई ने कुछ एक्शन लिया है। उसने अपनी वेबसाइट्स से मोस्ट वांटेड की लिस्ट हटा ली है। साथ ही उनके खिलाफ जारी रेड कॉर्नर नोटिस को भी हटा दिया है। साथ ही सीबीआई टीम का कहना है कि वह पूरी लिस्ट की जांच दोबारा से करेगी। हालांकि, सरकार का कहना है अभी पाकिस्तान से मोस्ट वांटेड की लिस्ट नहीं मंगायी जाएगी। पूरी जांच के बाद यह निर्णय लिया जाएगा। एक के बाद एक मोस्ट वांटेड देश में ही मिल रहे हैं। वजहुल कमर खान के ठाणे में होने की बात सामने आयी ही थी कि गुरुवार को पता चला कि एक और मोस्ट वांटेड मुंबई के आर्थर रोड जेल में बंद है। आनन-फानन में सीबीआई ने अपनी गलती मानी ली। दूसरे खुलासे के बाद एक सीबीआई इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया, जबकि 2 सीनियर अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया गया। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, सीबीआई वालों ने कहा है कि उन्होंने जब भगोड़े अपराधियों की सूची होम मिनिस्ट्री को भेजी थी, तो वे खान का नाम हटाना भूल गये थे। इस बीच, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भी अपनी सफाई दी है। एनआईए ने एक बयान में कहा है कि 50 अपराधियों की सूची में उसने 10 भगोड़ों के नाम दिए थे। एनआईए की जांच के मुताबिक ये सभी भारत में नहीं हैं। माना जा रहा है कि ये सभी पाकिस्तान में छिपे हैं। सी बी आई और एन आई ए के बयानों में एक बात कॉमन है कि शीर्ष पदों पर बैठे लोगों में किसी किस्म की जिम्मेवारी का भाव नहीं है। सारा ठीकरा मातहतों के सिर फूटता है। हर मामले में किसी ना किसी को बलि का बकरा बना दिया जाता है और उसे छुट्टïी पर भेज दिया जाता है। बाकी लोग अगली घटना तक तनाव मुक्त होकर कुर्सियां तोड़ते रहते हैं। जिन्हें दंडित किया जाना चाहिये वे गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं और अधिक से अधिक लाभ पाने का प्रयास करते रहते हैं। मोस्ट वांटेड सूची से लेकर कॉमन वेल्थ घोटाले तक किसी भी मामले को देखें, सब में किसी ना किसी जूनियर को दंडित किया गया है जबकि कई मामलों में बड़े अफसर भी दोषी होंगे। क्योंकि लगभग सभी निर्णायक समितियों में बड़े अफसरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं। या यों कहें कि बिना उनकी मंजूरी अथवा दस्तखत के कोई भी काम नहीं हो सकता। वह चाहे बिल पास करना हो या ठेका अथवा कोई सूची ही बनाना क्यों ना हो सबमें शीर्ष अफसरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है्र। लेकिन किसी में भी किसी बड़े अफसर को दंडित होते देखा- सुना नहीं गया है। जब तक शीर्ष पदों पर बैठे अफसर दंडित नहीं होंगे तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा।

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