हरिराम पाण्डेय
5 सितम्बर 2011
हम अपने आदर्शों को भूल न जायं, उन्हें बार-बार याद करके अपने जीवन में उतार सकें, इसी बात को ध्यान में रख विशिष्ट प्रेरकों के जन्म दिवसों को मनाने की शृंखला में ही शिक्षक दिवस को भी मनाया जाता है। किन्तु वर्तमान में हम किसी भी उत्सव को वास्तविक रूप में मना नहीं पाते। प्रत्येक दिवस को मनाते समय हम औपचारिकताओं की पूर्ति मात्र ही कर रहे होते हैं। उत्सव केवल एक आडम्बर बनकर रह जाता है। उसके पीछे छिपा हुआ उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। जिस प्रेरणा या विचार के कारण हम उस दिवस को मनाते हैं, उस प्रेरणा या विचार को तो हम समारोह के पास फटकने ही नहीं देते। इसी बात को ध्यान में रखकर हम देखें शिक्षक दिवस को वास्तव में हम क्या करते हैं।
बताने की आवश्यकता नहीं कि शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। शिक्षक दिवस देश के सभी स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में मनाया जाता है। बड़े ही उत्तम-उत्तम भाषण दिये जाते हैं। वरिष्ठ छात्र-छात्राएं इस दिन अपने से कनिष्ठ छात्र-छात्राओं को पढ़ाते हैं और इस तरह शिक्षक बंधु एक दिन के लिए कुछ अवकाश पा जाते हैं। छात्र-छात्राएं आपस में चन्दा करके कुछ गिफ्ट अपने शिक्षकों को देकर निजात पा जाते हैं। अधिकांश पत्र-पत्रिकाएं विशेष आलेख प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार राधाकृष्णन को याद कर लिया जाता है। उनके विचारों, आदर्शों व आचरणों पर चर्चा करने की फुर्सत किसे है? अपनाने की तो बात ही क्या है? एक शिक्षक होते हुए श्री राधाकृष्णन राष्ट्रपति के उच्चतम पद पर पहुंचे इससे शिक्षक अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं, ऐसा कहना भी शायद उचित न हो।
किन्तु वास्तव में शिक्षक अपने कर्तव्यों को भी स्मरण कर पाते हैं? छात्र अपने शिक्षकों के प्रति वास्तव में श्रद्धा की भावना क्षण-भर को भी रख पाते हैं? श्रद्धा की तो बात ही छोड़ो उनके प्रति सामान्य सम्मान का भाव रखकर उन्हें अपमानित न करने का संकल्प ले पाते हैं? यदि नहीं, तो आज विचार करने की आवश्यकता है कि इसके पीछे क्या कारण हैं? शिक्षक दिवस का उपयोग शिक्षक अपना पुनरावलोकन करके इसे यथार्थ में उपयोगी बना सकते हैं।
शिक्षक अपने छात्रों से सदैव अपेक्षा रखते हैं कि वे 'गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णू गुरुर्देवो महेश्वर:Ó के आदर्श का पालन करते हुए हमको ईश्वर के समान समझें। हम छात्रों को पढ़ाते हैं-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने,गोविन्द दियो बताय।।
शिक्षक अपने छात्रों से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं रखते हैं किन्तु कभी अपने आप पर विचार नहीं करते। शिक्षक छात्रों को पाठ पढ़ाते हैं-श्रद्धावान लभते ज्ञानम्, किन्तु हम यह क्यों नहीं सोचते कि केवल शिक्षक के रूप में नियुक्ति से ही वे श्रद्धा के पात्र कैसे हो जाते हैं? क्या शिक्षक के रूप में, उनके जो कर्तव्य हैं उन पर उन्होंने कभी विचार किया है? केवल अधिकारों के प्रति जागरूक होना तथा कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों की बात आने पर बगलें झांकना शिक्षक के लिये उपयुक्त है। जब शिक्षा मन्दिरों का जैसे-तैसे धन खींचने के लिए प्रयोग किया जा रहा हो, गरीब छात्र के लिए शिक्षा प्राप्त करना दूभर हो रहा हो, सत्य, अहिंसा, सामाजिक कार्यो, छात्र कल्याण से शिक्षकों का दूर-दूर का भी वास्ता न रह गया हो, ऐसे समय में छात्रों से इतनी अपेक्षा क्यों? अखबारों में खबरें प्रकाशित होती रहती हैं किस तरह शिक्षण में लगे लोग इस व्यवसाय की गरिमा को धूमिल कर रहे हैं। छात्र/छात्राओं का आर्थिक, मानसिक व शारीरिक शोषण किया जाता है। ऐसी स्थिति में अध्यापक को अध्यापक कहने में शर्म आती है। ऐसी स्थिति में हमें शिक्षक के रूप में सम्मान पाने की अपेक्षा क्यों करनी चाहिए? आज शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को आत्मावलोकन की आवश्यकता है। उन्हें विचार करने की आवश्यकता है शिक्षण कर्म नौकरी नहीं है, एक सेवाकार्य है। समाज निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य केवल आजीविका का साधन या धनी बनने का हथकण्डा मात्र नहीं हो सकता।
Wednesday, September 7, 2011
शिक्षक आज पुनरावलोकन करें
Posted by pandeyhariram at 10:57 AM
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