हरिराम पाण्डेय
7 सितम्बर 2011
तीस्ता जल समझौता भारत -बंगलादेश द्विपक्षीय समझौते की कार्य सूची से अलग कर दिया गया। यह श्रेय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को जाता है। वह भी इसलिये कि वे प्रधानमंत्री के साथ ढाका जा रही थीं और समझौते के मसौदे को देख कर उन्होंने नहीं जाने का एलान कर दिया। इस बाधा ने बंगाल की भावनाओं से विश्वासघात को रोक तो दिया पर जब दिल्ली दरबार में पोशीदा धूर्तता से और असंवेदनशीलता के साथ समझौते के मजमून बनते हों तब कब तक ऐसा किया जा सकता है। इन सब बातों को देखकर तो ऐसा लगता है कि संविधान में एक ऐसा संशोधन जरूरी है जिसके तहत भारत की सुरक्षा , क्षेत्रीय अखंडता, समरनीतिक मामले से जुड़े अंतरराष्टï्रीय समझौतों के मसौदों पर संसद की मंजूरी अनिवार्य होनी चाहिए।
सुश्री ममता बनर्जी की ढाका यात्रा के मुल्तवी होने के बारे में विदेश सचिव ने कल जो भी कहा उससे यह तो पता चलता है कि कांग्रेस और तृणमूल में बन नहीं रही है और तृणमूल की नेता केंद्र से बेहद खफा हैं और इससे विदेशों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेइज्जती थोड़ी कम हुर्ई। लेकिन विदेश सचिव ने यह नहीं बताया कि जिस मसले पर पहले से ही समझौता था उस पर और अधिक उदार होने की क्या जरूरत पड़ी थी? विदेश सचिव रंजन मथाई ने यह तो बता दिया कि हमारे देश के संघीय ढांचे के अंतर्गत कोई भी समझौता राज्यों के परामर्श के बिना न होता है और न होगा। यह सिद्धांत प्रस्तावित तीस्ता जल समझौते के लिये जितना सच है उतना ही उन सभी अंतरराष्टï्रीय समझौतों के लिये भी होना चाहिए जिससे राज्यों अथवा राष्टï्र के हितों को आघात लगता हो। लेकिन अतीत के वाकयात बताते हैं कि यह सिद्धांत अनुपालन के मामले में बहुत सही नहीं है, खास कर भारत के साथ अन्य अंतरराष्टï्रीय समझौतों में। खास कर तीस्ता जल आवंटन मामले में। सुश्री ममता बनर्जी को पहले जो मसौदा दिखाया गया था उसमें लिखा था कि बंगलादेश को तीस्ता के जल का 25000 क्यूसेक जल दिया जायेगा। बाद में उसे चुपचाप बढ़ा कर 33000 क्यूसेक कर दिया गया। इससे ममता जी को बड़ा अपमान बोध हुआ। क्योंकि राज्य के हितों की हिफाजत उनका पहला कत्र्तव्य है और वैसे भी राज्य के हित बेशक राष्टï्र के हित भी होते हैं। पश्चिम बंगाल के लगभग पांच जिलों में कृषि के लिये तीस्ता के जल पर निर्भरता है और इन्हें कम जल दिये जाने का अर्थ होगा उन जिलों में व्यापक संकट। इसके अलावा समझौते में इस तरह की धोखाधड़ी का अर्थ होगा बंगलादेश में मनमोहन सिंह की वाहवाही के लिये अपने देश की जनता के साथ दगाबाजी। इसके पहले भी कई बार अंतरराष्टï्रीय समझौतों के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसा किया है। वे समझौता होने के पहले तक बताते कम हैं और छुपाते ज्यादा हैं। जब समझौतों पर दस्तखत हो जाते हैं तो वे उसे देश को भेंट कर देते हैं और उसके नतीजों के लिये उनकी किस्मत पर छोड़ देते हैं। इस तरह की घटनाओं और क्रियाओं को रोका जाना चाहिये।
Wednesday, September 7, 2011
मीठे पानी पर तीखी सियासत
Posted by pandeyhariram at 11:16 AM
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