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Sunday, September 18, 2011

अशौच धनÓ ही देश की सबसे बड़ी समस्या : जगद्गुरु


हरिराम पाण्डेय
12 सितम्बर 2011
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की धारणा है कि आज हमारे राष्टï्र की सबसे बड़ी समस्या अशौच धन है और उसे प्राप्त करने का लोभ है। चातुर्मास्य के अवसर पर जगद्गुरु ने कोलकाता प्रवास के दौरान सन्मार्ग के सम्पादक हरिराम पाण्डेय से लम्बी बातचीत में अनेक विषयों और समस्याओं पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राजनीति में धर्म को शामिल किये जाने का विरोध गलत है। उनका कहना है कि जब राज नहीं थे और राजनीति नहीं थी तब धर्म था और उसके आश्रय में ही मानव जाती का विकास हुआ। उसके बाद राज बने, राजा बनें और राजनीति बनी। अतएव धर्म का होना एक अनुशासन पैदा करता है। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में धर्म की आधुनिक परिभाषा को स्वार्थपूर्ण और निहित उद्देश्य वाला बताया और कहा कि शास्त्रों , पुराणों और वेदों में जो परिभाषा वह ही सर्वश्रेष्ठï है। उन्होंने पुण्य को परिभाषित करते हुये कहा कि वह भी सत्कर्म जो मृत्यु पश्चात यश देता है और जिससे सद्भावना का विकास होता है वही पुण्य है। उन्होंने धर्मगुरुओं की सामाजिक और राष्टï्रीय भूमिका को रेखांकित करते हुये कहा कि राष्टï्र सर्वोपरि है और देश के धर्मपरायण लोगों के आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास , उनकी समृद्धि तथा यश के लिये किया गया कर्म ही प्रमुख भूमिका है। प्रस्तुत है जगद्गुरु से सन्मार्ग की वार्ता का संक्षिप्त अंश:
सन्मार्ग: पुण्य क्या है?
जगद्गुरु: जब मनुष्य कोई कर्म करता है तो उसका फल कुछ काल के बाद प्राप्त होता है। यदि उस फल से संस्कार प्राप्त होते हैं तो वह सत्कर्म है। साथ ही सत्कर्म से मृत्यु के पश्चात भी यश उपलब्ध होता है यही पुण्य है।
सन्मार्ग: आज की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
जगद्गुरु: आज की सबसे बड़ी समस्या है 'अर्थाशौच।Ó अर्थाशौच को स्पष्टï करते हुये जगद्गुरु ने कहा कि अपवित्र धन। वह धन जिसके श्रोत में शुचिता नहीं है। एक तरह से यह मानव समुदाय के सारे कष्टïों का मूल है।
सन्मार्ग: आप सनातन धर्म के सर्वोच्च गुरू हैं और करोड़ों लोग आपसे असीम श्रद्धा रखते हैं। आज अक्सर कहा जा रहा है धर्म छीज रहा है। आप जैसे गुरू के होते ऐसा क्यों होता है?
जगद्गुरु : हर युग में धर्मविरोधी धारायें रहीं हैं। आज भी, सनातन धर्मी मनुष्य धर्म परायण हैं और हम लोग उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं और लोग उस मार्ग का अनुगमन करते हैं।
सन्मार्ग : पश्चिमी देशों में और अपने देश के पश्चिमपंथियों में आजकल दक्षिणपंथी कट्टïरवाद की बहस चल रही है। यह प्रकारांतर से हिंदू धर्म पर प्रहार है। इस सम्बंध में आपके क्या विचार हैं?
जगद्गुरुï : सर्वप्रथम दक्षिणपंथी का जो कट्टïरवाद है वह हिंदूत्व से परे है। जो हिंदूधर्म को इससे जोड़ते हैं वे हिंदुत्व को खत्म करना चाहते हैं। ये हिंदुत्ववादी कभी हिंदु धर्म की मूल समस्याओं की बात नहीं करते। वे कभी हिंदू नेपाल को हिंदू राष्टï्र बनाये रखने के बारे में नहीं बोलते, गंगा को राष्टï्रीय नदी घोषित कराने की बात नहीं करते। शास्त्रोक्त मार्ग का अनुसरण करने वाला हिंदू है और वह हिंदू कभी कट्टïरपंथी हो ही नहीं सकता।
सन्मार्ग: क्या राजनीति में धर्म का उपयोग होना चाहिये?
जगद्गुरु : व्यक्ति और समाज धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करे इसी के लिये तो राजनीति है। आदि काल में जब राज नहीं थे, राजा नहीं थे, दंड नहीं थ और दांडिक भी नहीं थे तब धर्म के अनुसार ही मनुष्य अपना जीवन व्यतीत करता था। राजनीति का अर्थ है राजा की नीति। यदि राजा धर्म से नियंत्रित रहेगा तो राजनीति स्वयं धर्म से नियंत्रित हो जायेगी। धर्म तो छत्रों का भी छत्र है। लेकिन आज तो 'मत्स्य न्यायÓ है। यानी बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। इसी लिये धर्म को राजनीति से पृथक करने का स्वार्थपूर्ण अभियान चल पड़ा है ताकि उनकी राह में यह रोड़ा ना बने।
सन्मार्ग: हमारे धर्मगुरु अक्सर राष्टï्रीय समस्याओं और वैश्विक समस्याओं पर नहीं बोलते हैं जबकि उन्हें धर्म पर बाजारवाद और राजनीति के प्रहार से हिंदू धर्मावलम्बियों की रक्षा के लिये आप जैसे लोगों की ओर से मार्गदर्शन जरूरी है। इस सम्बंध में आप के क्या विचार हैं?
जगद्गुरु : धर्म गुरुओं का कत्र्तव्य है मानवमात्र की रक्षा। इसके लिये मैने अपने स्तर से अतीत में अनेक प्रयास किये हैं। जैसे, गंगा को राष्टï्रीय नदी घोषित करवाने का आंदोलन , गोहत्या बंद करवाने सम्बंधी आंदोलन इत्यादि के लिये मैने बहुत प्रयास किये। इस उम्र में भी प्रयासरत हूं। ये सारी बातें जनोन्मुखी हैं और इन्हें धर्म का बाना पहना कर दुष्प्रचारित किया जाता है। आज अन्न की समस्या है, प्रदूषण की समस्या है और गो हत्या विरोध का अर्थ है गोवंश की रक्षा। इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होता है यह बताने की जरूरत नहीं है। यही बात गंगा के साथ भी है यह नदी नहीं हमारी संस्कृति है और राष्टï्र की आजीविका की वाहक है। उन्होंने बाबा रामदेव की चर्चा करते हुये कहा कि जिस तरह से राष्टï्रीय समस्याओं को उन्होंने उठाया वह उचित नहीं है। वे विदेशों में जमा काला धन देश में लाने की बात करते हैं और उसे सरकारी सम्पत्ति घोषित करने की मांग करते हैं और साथ ही आरोप लगाते हैं कि सरकार भ्रष्टï है। वे क्या कह रहे वही स्पष्टï नहीं है। वे देश की समृद्धि की बात करते हैं तो समृद्धि काले धन को जब्त कर लेने से नहीं होगी बल्कि देश के लोगों में कठोर परिश्रम अनुशासन और ईमानदारी से होगी और इसके लिये केवल धर्म ही प्रेरित कर सकता है। उन्होंने कहा कि जो वंचित हैं उन्हें साधन मुहय्या कराना जरूरी है। जगद्गुरु ने झारखंड स्थित अपने आश्रम के चतुर्दिक 550 परिवारों का उदाहरण देते हुये बताया कि उनके दोनो समय के भोजन के राशन का आश्रम बंदोबस्त करता है न कि सरकारी व्यवस्था।
सन्मार्ग: ईसाई धर्म के सर्वोच्च गुरू पोप की बात विश्व का समस्त ईसाई समुदाय और हमारे हिंदु धर्मावलम्बी भी न केवल ध्यान से सुनते हैं बल्कि अमल भी करते दिखते हैं। लेकिन हमारे धर्मगुरुओं की बात पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, क्या करण है?
जगद्गुरु: पोप की बात पर भी अमल नहीं होता। विभिन्न काल में उन्होंने युद्ध विरोधी बयान दिये , क्या युद्ध रुका। जो आप सबों को दिखता है वह पश्चिमी प्रचारतंत्र पर हमारी निर्भरता है और उनके प्रचार का यह सब कौशल है। यह एक तरह का षड्यंत्र है। इससे सावधान रहने की जरूरत है।
सन्मार्ग: क्या धार्मिक होते हुये भी धर्मनिरपेक्ष नहीं हुआ जा सकता?
जगद्गुरु : बिल्कुल हुआ जा सकता है। धार्मिक होने का अर्थ किसी धर्म से पक्षपात नहीं है। धर्म निरपेक्षता ही धर्म है। जहां तक हिंदू धर्म की बात है वह अत्यंत वैज्ञानिक है, इसमें किसी से विरोध नहीं है।

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