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Wednesday, September 7, 2011

नया इतिहास बनने वाला है


हरिराम पाण्डेय
1 सितम्बर 2011
अगले हफ्ते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ढाका जाने वाले हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान लम्बे अरसे से बकाया दो मामलों, जमीनी सीमा के विवाद और तीस्ता के पानी के बंटवारे के विवाद पर संभवत: समझौता होगा। ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं कि हर वक्त कोई समस्या बनी रहती है इनके चलते। बहुत दिनों से नेपाल और भूटान से मिलकर एक पारस्परिक सहयोग के लिये एक स्वर्णिम चतुर्भुज बनाने की योजना चल रही है, उस पर भी कदम आगे बढ़ाये जाने की संभावना है। अगर यह सहयोग समझौता होता है तो चारों देशों में ऊर्जा और जल संसाधनों की उपलब्धता बढ़ जाएगी। वैसे भी भारत और बंगलादेश में द्विपक्षीय समझौतों की होड़ लगी है। वहां और यहां 2014 में चुनाव होने वाले हैं और दोनों इसके पहले अपने समझौतों को एक मुकम्मल शक्ल दे देना चाहते हैं ताकि मतदाताओं को महसूस हो कि द्विपक्षीय समझौतों से लाभ मिल रहे हैं और इसका सत्तारूढ़ दल को लाभ मिल सके। यही कारण है कि चाहे अफगानिस्तान का मामला हो या म्यांमार का भारत सब जगह अपनी उपस्थिति महसूस करा रहा है। जहां तक जमीनी सरहद के समझौते की बात है तो इसके अमल में आ जाने के बाद न केवल भारत का नक्शा बदल जायेगा बल्कि यह पहला मौका होगा जब किसी पड़ोसी देश से भारत का ठोस सीमा समझौता हो जायेगा। इस समझौते से सबसे बड़ा लाभ होगा कि 1947 के नासूर भरने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। 1947 में अंग्रेजों ने देश को विभाजित कर अस्पष्टï सीमाओं का एक ऐसा लंबा विवाद खड़ा कर दिया जिसमें न जाने कितनी आबादी और बेशुमार दौलत खप गयी। भावनाओं को जो आघात लगा वह अलग। इस समझौते से जो सीमा पथ (एनक्लेव) हैं और जो इलाके अवैध कब्जे में हैं उन्हें मान्यता मिल जायेगी। अगर जनगणना के आंकड़ों को मानें तो इन इलाकों में लगभग 55000 लोग रहते हैं और सबसे बड़ी बात है कि इस समझौते से यथास्थिति कायम रहेगी, न इलाकों का हस्तांतरण होगा और ना आबादी का स्थानांतरण। उस क्षेत्र की आबादी जो अबतक देशविहीन थी उसे नागरिकता मिल जाएगी और वह उस देश में जहां वे रहते आये हैं। अगर बाद में वे बदलना चाहते हैं तो उन्हीं तरीकों को अपनाना होगा जो आम नागरिक अपनाते हैं। जहां तक खबर है कि उन इलाकों में अबतक दोनों देशों के नागरिकों में शादियां होती रही हैं और सबसे बड़ी समस्या जो अब आने वाली है वह है ऐसी शादियों से पैदा हुईं संतानों की। वे किस देश के नागरिक कहे जायेंगे। समझौते के समय इस पर विचार जरूरी है वरना भारी कठिनाइयां होंगी। लेकिन चूंकि भारत और बंगलादेश में बांधव सरकार है और पश्चिम बंगाल सरकार के रुख भी सकारात्मक हैं तो उम्मीद की जाती है कि कोई भी गुत्थी आसानी से सुलझ जाएगी। बंगलादेश सरकार चाहती है कि ढाका कोलकाता ट्रेन सेवा को अजमेर शरीफ तक बढ़ाया जाय ताकि बंगलादेशियों को सूफी की दरगाह तक जाने में कठिनाई ना हो। यहां एक सवाल है कि चाहे वह रेल सम्पर्क हो या जमीनी सरहद बिना पश्चिम बंगाल के सहयोग के कुछ होने वाला नहीं है। अतएव उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भी ढाका जाएंगी। वैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद दोनों बंगाल की समस्याओं पर लगातार सम्पर्क में रह रहे हैं। दोनों देशों के बीच और भी कई मसले हैं, जैसे भारत चाहता है कि वह भूटान और नेपाल तक रेल लाइनें बिछाये। इसके लिये भी उसे बंगलादेश की सहायता चाहिए। वैसे दोनों देशों के लिये यह मित्रता का सबसे उपयोगी समय है और इससे समग्र रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र को भी लाभ होगा।

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