हरिराम पाण्डेय
10 सितम्बर 2011
साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा की रोकथाम विधेयक 2011 को लेकर एक बार फिर राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल गोलबंद होने लगे हैं और देश के राजनीतिक ध्रुवीकरण की शुरुआत हो चुकी है। बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उड़ीसा और पंजाब सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक का तीव्र विरोध किया है और इसे 'निहित हितोंÓ की पूर्ति करने वाला बताया है और कहा है कि इससे देश का संघीय ढांचा कमजोर होगा। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने शनिवार को यहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई राष्टï्रीय एकता परिषद (एनआईसी) की बैठक में साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा की रोकथाम विधेयक 2011 को खारिज करने की मजबूत दलील पेश की। उनका मानना है कि विधेयक के प्रावधान धर्म एवं जाति के आधार पर असहिष्णुता की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने विधेयक को अत्यंत 'खतरनाकÓ कहा। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस विधेयक के वर्तमान स्वरूप से सहमत नहीं है।
धर्म निरपेक्षता का अर्थ है कि सरकार की नीति और कार्य किसी भी मत, सम्प्रदाय, मजहब का समर्थन ना करे। जगद्गुरु शंकराचार्य जैसे धार्मिक नेता का भी मानना है कि 'धर्म निरपेक्षता अपने आप में एक धर्म है और इसमें किसी धर्म का विरोध नहीं होता और ना किसी वर्ग या मजहब से पक्षपात होता है। धर्म निरपेक्ष नीति से किसी वर्ग को न लाभ पहुंचता है और न किसी मजहब या पंथ को हानि पहुंचती है।Ó हमारे देश में हिन्दुओं को बहुसंख्यक कहा जाता है और मुसलमान या ईसाई आदि अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। विख्यात चिंतक प्रो उमाकांत उपाध्याय ने अपने एक लेख में कहा है कि 'जब कोई नीति बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक लोगों के लाभ हित को ध्यान में रखकर बनायी जाती है तो यह पक्षपात पूर्ण होती है, यह धर्म या सम्प्रदाय की दृष्टि से धर्म निरपेक्ष नहीं कही जा सकती। देश के सभी नागरिक सरकार की निगाह में ,सरकारी नीति और कानून की दृष्टि से समान होते हैं। Ó संप्रग सरकार के प्रमुख रूप से दो नेता मुखिया हैं, डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के नेता प्रधानमंत्री हैं और श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं तथा भारत सरकार की परामर्श देने वाली समिति की अध्यक्ष हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार की नीतियों का उत्तरदायित्व मुख्य रूप से इन्हीं दोनों का है। इनमें भी डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार श्रीमती सोनिया गांधी के परामर्श से चलती है अत: नैतिक रूप से श्रीमती सोनिया गांधी जिम्मेदार हैं तथा विधि और कानून की दृष्टि से डॉ. मनमोहन सिंह जिम्मेदार हैं। सम्पूर्ण संप्रग सरकार, उसके मंत्री, संप्रग के सभी घटक, श्रीमती सोनिया गांधी आदि सभी कांग्रेसी नेता यह कहते हैं कि संप्रग सरकार और उसकी नीतियां धर्म निरपेक्ष हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार जो भी करती है, जो भी लाभकारी कदम उठाती है वह किसी विशेष वर्ग या सम्प्रदाय के लिए नहीं है, क्योंकि सरकार किसी भी धर्म या मजहब का पक्षपात नहीं करती। लेकिन यह विधेयक क्या है? आखिर वे कौन सी ताकतें हैं जिनके दबाव में हमारी सरकार यह बहुसंख्यक विरोधी कानून बनाने पर आमादा है? क्या कारण है इसका? क्या सरकार को ऐसा महसूस होता है कि हमारे देश में बहुसंख्यक समाज से अल्पसंख्यक समाज को खतरा है? कानून बनाना सरकार का काम है लेकिन यह जनता के हित में होना चाहिये। जनता का अर्थ अल्पसंख्यक समाज नहीं है। सरकार को बहुसंख्यकों की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिये।
Sunday, September 18, 2011
बहुसंख्यकों की भावनाओं का सम्मान करें
Posted by pandeyhariram at 11:16 AM
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