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Wednesday, August 18, 2010

होशियार!
पिछले हफ्ते चार घटनाएं हमारे देश में चर्चा का कारण बनी रहीं। हालांकि ये चारों ऊपर से देखने में असम्बद्ध हैं- ये घटनाएं हैं एच-1 बी वीसा के शुल्क में वृद्धि का मसला, भारत के विरुद्ध सुपर बग का आरोप, सुरक्षा कारणों की आड़ में ब्लैकबेरी के मैसेजों को देखने का प्रयास और वारेन एंडरसन के भारत से पलायन वाला कांड।

इन चारों को अगर समग्र रूप में देखें तो पता चलेगा कि इनमें एक खास किस्म का अंत सम्बन्ध है। वह कि भारत ने अपने भविष्य के निर्माण के लिये अतीत की वल्गाओं या यों कहें कि बंधनों को उतार फेंका है। अब से अगर भारत किसी की नहीं सुनता है तो उसके सामने मुश्किलें आयेंगी ही। अब वारेन एंडरसन का ही मामला देखें। इस मसले ने भारत को 20 साल पीछे वहां पहुंचा दिया, जहां शीतयुद्ध का समापन हो रहा था और उस समय उसका सिक्का चलता था। वैसे आज भी अपने देश के मामलात में उसका हुक्म चलता है।
जब भोपाल गैस कांड हुआ तो राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और रोनाल्ड रीगन अमरीका के प्रेजिडंट। रीगन ने राजीव पर दबाव डाला कि वारेन एंडरसन को देश से जाने दिया जाय। दबाव काम कर गया और एंडरसन इस देश से निकल गया।

अब जब एंडरसन की जरूरत पड़ी तो मनमोहन सिंह को उसका रेकार्ड तक नहीं मिला। हफ्ते भर पहले अचानक अर्जुन सिंह संसद में आ पहुंचे और एंडरसन के पलायन का ठीकरा तत्कालीन गृहमंत्री के सिर फोड़ दिया। उस समय गृहमंत्री हुआ करते थे पी वी नरसिंहराव। अब नरसिंह राव इस दुनिया में रहे नहीं तो बात जहां थी, वहीं रह गयी। यह बात दूसरी है कि अर्जुन सिंह की इस दलील पर देश में किसी को भी यकीन नहीं है। लोगों का संदेह राजीव गांधी पर कायम है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि भारत ने अमरीकी दबाव के सामने घुटने टेक दिए। भोपाल कांड हमारे देश के लिये लज्जा का सबब है।

इससे एक सबक तो सीख ही गये कि हालात इतने ना बिगडऩे दिये जाएं कि भोपाल जैसा कोई कांड और ना हो जाए, अतएव नागरिक परमाणु विधेयक के समय हमें पूरी तरह सतर्क रहना होगा। केवल भाजपा और वामपंथियों के चलते यह विधेयक रुका पड़ा है। ब्लैकबेरी का मसला बताता है कि भारत कमजोर नहीं है। वह बहुत बड़ा बाजार है तो किसी की धौंस भी नहीं मानता। पहले जब ब्लैकबेरी के संदेशों की निगरानी की बात हुई तो कम्पनी ने गोपनीयता का झांसा दिया। बाद में जब पाबंदी की बात हुई तो उसकी सारी शेखी हवा हो गयी। वीसा के शुल्क के बारे में भी यही हुआ। जब भारत ने घुड़की दी तो बस अमरीका ने हाथ खींच लिये और भारत के विकास को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
कहने का मतलब है कि भारत को नीचा दिखाने का अभियान शुरू किया जा चुका है। यह विकास दूसरे देशों को सुहा नहीं रहा है। इसलिये हमें होशियार रहना होगा।

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