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Wednesday, August 25, 2010

माओवादी आतंक का मूल्य


कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी के प्रशंसकों और उन बुद्धिजीवियों, जिनका मानना है कि ये माओवादी अत्याचारी भारत सरकार के दमन के शिकार हैं, से अनुरोध है कि वे कृपा कर रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा पिछले हफ्ते संसद में पेश किये गये आंकड़ों को जरूर देखें और उन पर विचार करें।
पिछले चार वर्षों में अपने को गरीबों और मजलूमों का तरफदार बताने वाले माओवादियों के ऑपरेशंस के कारण रेलवे को 1000करोड़ रुपये का घाटा लगा और इसके अलावा 400 ट्रेनों की यात्राएं रद्द करनी पड़ीं। यही नहीं माओवादियों के अलावा मानवाधिकार के फौजदारों और पुलिस ज्यादतियों की मुखालफत करने वालों (पी सी पी ए) की कार्रवाइयों के फलस्वरूप हुई रेल दुर्घटनाओं, बम विस्फोटों और गोली मारे जाने की घटनाओं में जिन लोगों की जानें गयीं और उन पर आश्रितों को हुई मानसिक आर्थिक क्षति के आंकड़े इसमें शामिल नहीं किये गये हैं।

पी सी पी ए वालों ने माओवादियों की शह पर ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को पटरी से उतारा और उससे एक मालगाड़ी के टकरा जाने के फलस्वरूप लगभग 145 आदमी मारे गये। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की घटना तो माओवादियों की हिंसक मनोवृत्ति का स्पष्ट उदाहरण है।
इसके अलावा कई ट्रेनों पर हमले भी उन्होंने किये हैं। रेलवे से ढोये जाने वाले कई तेल टैंकरों को उन्होंने पटरी से गिरा दिया और गिरने के कारण हुये विस्फोट और आग फैलने से भारी नुकसान हुआ। इस वर्ष माओवादियों ने ऐसी कई कार्रवाइयों को अंजाम दिया जिनमें 60 रेलवे से जुड़ी थीं और उनमें आधी अकेले पश्चिम बंगाल में घटीं। माओवादियों का सबसे ज्यादा शिकार पश्चिम बंगाल और झारखंड राज्य की जनता हुई।

कैसी विडम्बना है कि माओवादी विकास की कमी की शिकायत करते हैं ओर ट्रेनों को उड़ा रहे हैं जो विकास की वाहक हैं। ट्रेनें बेशक सरकार का बिम्ब हैं पर यह उन लोगों को भी अपने गंतव्य तक पहुंचाती हैं, जिन्हें माओवादी अपने लोग कहते हैं और जिनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।
इसी तरह वे स्कूलों की इमारतों, आदिवासी बच्चों के लिये बने छात्रावासों और भारी खर्च करके बनाये गये संचार टावरों को उड़ा कर केवल यही दिखाना चाहते हैं कि उनके पास इफरात बारूद हे और बड़ी खूबी से और असरदार ढंग से वे इसका उपयोग कर सकते हैं।

यह विडम्बना है कि जो लोग आदिवासियों के अधिकारों के नारे लगाते हैं वे उन्हीं तंत्रों का विनाश कर रहे हैं जो दूर दराज के इलाकों में बसे उन गरीबों के विकास के लिये तैयार किये गये हैं। माओवादी कहेंगे कि यह यानी रेलवे इत्यादि उनके सर्वोत्तम निशाने हैं, क्योंकि इससे भारत सरकार कमजोर होती है। उनका यह तर्क इस बात का मौका देता है कि उनके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाय और ऐसे में उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखी जाय।

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