इन दिनों भारतीय राजनीति का अजीब ध्रुवीकरण हो गया है। एक ध्रुव कांग्रेस और दूसरा वामपंथी दल और तीसरे के साथ हैं भाजपाई और चौथे पर तृणमूल और न जाने कौन कहां-कहां ?
कहने का मतलब है कि जितने झंडे और जितने रंग उतने ही ध्रुव और उतने ही दावे।
अब यहां लालगढ़ का तमाशा।
ममता जी की सोमवार को रैली हुई और उसमें माओवादियों की शिरकत की पक्की खबर है। माओवादी, जो सरकारी व्यवस्था, चाहे वह पुलिस हो या अन्य संस्था, के मुखालिफ हैं, ममता जी के साथ पाये गये।
कांग्रेस का अपना अलग रुख था इस पर। ममता जी ने माओवादियों को वार्ता के लिये आफर दिया है। सरकार ने माओवाद प्रभावित 35 जिलों के विकास के लिये 14 हजार करोड़ रुपयों की मंजूरी दी है। ये दो अलग- अलग व्यवस्थाएं हैं।
पहले गौर करें कि माओवाद या नक्सलवाद हमारे देश में कैसे फैला ? जितने व्याख्याकार लोग हैं उनका मानना है कि जिन इलाकों में विकास का भारी अभाव रहा उन्हीं क्षेत्रों में जनता के पुंजीभूत गुस्से की अभिव्यक्ति हे माओवाद या नक्सलवाद।
इस स्थिति में वार्ता और सियासी वायदों का तबतक लाभ नहीं होगा जब माओवादियों को मिलने वाले समर्थन को रोका नहीं जाए। तो इसके लिये जरूरी है इलाके का विकास कर माओवादियों को अलग - थलग कर दिया जाय।
विकास न होने से माओवादी हिंसा पनपी और हिंसा के दौर में विकास नहीं हो पाया, इस दुश्चक्र में फंसे गरीब और पिछड़े आदिवासी पिसते रहे। उन क्षेत्रों के लिए सरकारी धन माओवादी हिंसा के पहले भी आवंटित होता था, पर सुदूर इलाकों की सुध सरकार ने नहीं ली और उसके बाबू तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने विकास की रकम डकार ली। कहा जाता है कि बाबूतंत्र का भ्रष्टाचार देश की कई समस्याओं की जड़ में है। अन्य समस्याओं की जड़ पर विवाद हो सकता है पर यह सच है कि माओवादी आंदोलन सरकारी भ्रष्टाचार की अंधेरनगरी में जन्मा है।
14 हजार करोड़ रुपए 35 जिलों में पहुंचने के बाद माओवादियों का प्रभाव कैसे कम होगा, यह देखना होगा। योजनाएं सिर्फ कागज पर ही न रह जाएं। केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के समग्र विकास हेतु शीघ्र एक बड़ी रकम सहायता स्वरूप दी जाएगी। जो माओवाद प्रभावित क्षेत्र हैं वहां पर सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार का बोलबाला है और इसी कारण माओवादी अपने पैर वहां पसार सके।
यदि केंद्र सरकार ग्रामीण विकास मंत्रालय की योजनाओं को ठीक से लागू करवा पाती तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधर जाती। वैसा हुआ नहीं। नक्सलवाद से चिंतित केंद्र सरकार कई माह से एक समन्वित कार्य योजना के बारे में सोच रही थी। अब इसी योजना के तहत करीब 14 हजार करोड़ की सहायता देश के 35 जिलों को दी जाने वाली है, जिससे स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों की पूर्ति की जाएगी।
देर से आई इस नई योजना के कार्यान्वयन में यह देखना जरूरी है कि जिन लोगों और क्षेत्रों के विकास के लिए पैसा पहुंचाया जा रहा है, वह कितना वहां पहुंचता है। फिर देखना होगा कि काम कैसे और कितने समय में होते हैं। यानी 14 हजार करोड़ रुपए 35 जिलों में पहुंचने के बाद नक्सलवादियों का प्रभाव वहां कैसे कम होगा, यह देखना होगा। योजनाएं सिर्फ कागज पर न रहें, यह सुनिश्चित करना सरकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
Tuesday, August 10, 2010
क्या नियंत्रित हो सकेगा माओवाद?
Posted by pandeyhariram at 2:31 AM
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