जम्मू कश्मीर को दुनिया भारत का वास्तविक हिस्सा मानती है और वह अधिकृत कश्मीर तथा गिलगित - बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा मानती है। इसी नीति के तहत दुनिया भर के देश भारतीय पासपोर्ट धारी जम्मू कश्मीर के बाशिंदों को भारतीय नागरिक मानते हैं और उन्हें उसी आधार पर वीसा भी देते हैं। उसी तरह पाकिस्तानी पासपोर्ट धारक अधिकृत कश्मीर एवं गिलगित- बाल्टिस्तान वासियों को पाकिस्तानी मानकर वीसा देते हें।
चीन भी पहले इसी तरह का आचरण करता था पर पिछले साल से उसने अपनी नीति बदल दी है। वह आमतौर पर भारतीय पासपोर्ट धारी जम्मू कश्मीर वासियों की वैधता पर सवाल नहीं खड़े करता लेकिन उसने ऐसे लोगों को वीसा देना बंद कर दिया है। चीन ने भारतीय पासपोर्ट धारकों को चीन की यात्रा करने से भी नहीं रोका है, लेकिन इसके लिये वह सादे कागज पर वीसा दे रहा है जिसे पासपोर्ट से नत्थी कर दिया जाता है। लेकिन वह पाकिस्तान पासपोर्ट धारी अधिकृत कश्मीर और गिलगित- बाल्टिस्तान के बाशिंदों के साथ ऐसी नीति नहीं अपना रहा है।
यही नहीं चीन भारतीय आपत्तियों को दरकिनार कर गिलगित- बाल्टिस्तान से गुजरने वाले काराकोरम राजपथ को और बेहतर बनाने की परियोजना में मदद दे रहा है। साथ ही गिलगित- बाल्टिस्तान होकर गुजरने वाले बीजिंग सिकियांग रेलपथ के निर्माण के अध्ययन में सहयोग कर रहा है। यही नहीं सिकियांग से गिलगित- बाल्टिस्तान होकर ग्वादर जाने वाले गैस तेल पाइप के निर्माण में मदद के लिये भी तैयार है।
चीन की नयी नीति के कई प्रभाव हो सकते हैं। जैसे चीन अधिकृत कश्मीर और गिलगित- बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का ही हिस्सा मान रहा है और वह इस पर भारतीय दावे को नहीं मान रहा है। यही नहीं चीन ने कश्मीर को भारतीय हिस्सा मानने के अपने रुख को नरम कर दिया, इससे पाकिस्तान को बड़ा संतोष मिलेगा क्योंकि वह खुद कश्मीर को अपना भाग मानता है और सारी दुनिया में कहता चलता है कि भारत ने इस पर जबरन कब्जा किया हुआ है। इससे पाकिस्तान को यह कहने का मौका मिलेगा कि जम्मू कश्मीर में स्वतंत्रता संघर्ष में मदद करने का उसे कूटनीतिक, राजनीतिक और नैतिक अधिकार है। यही नहीं कश्मीर को विवादास्पद बना कर वह लद्दाख पर भारत से वार्ता के अवसर पैदा करना चाहता है। यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि लद्दाख के एक हिस्से पर चीन ने कब्जा किया हुआ है।
यही नहीं भविष्य में वह कश्मीर में भारत के विलय को विवदास्पद बता कर सभी देशी रियासतों के भारत में विलय को हवा देने तथा अलगाववाद की चिंगारी को भड़काने की साजिश कर रहा है।
चीन के सिकियांग प्रांत में उइगर आंदोलन में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका, उइगर नागरिकों पर निगरानी के लिये पाकिस्तान में चीनी खुफिया अफसरों की भारी तैनाती और उसके बदले में भारत के प्रति चीन का बदला रुख भारतीय उपमहाद्वीप में नये शक्ति संतुलन की ओर इशारा कर रहा है।
भारत ने गत वर्ष चीन की बदली नीति को उस समय नोट किया, जब उसने कश्मीर वासियों को सामान्य वीसा देने के बदले सादे कागज पर वीसा देना शुरू किया। ले.जनरल आर एस जसवाल एक उच्चस्तरीय सैन्य विनिमय के तहत अभी चीन जाने वाले थे। चीन ने उन्हें सामान्य वीसा देने में मजबूरी जाहिर की। भारत ने इसका तीव्र विरोध कर और सैन्य विनिमय के सम्बंध समाप्त कर सही कदम उठाया है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहिये।
हमने तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग नहीं माना है। यह हमारी सौमन्यस्यता है कि हम उस पर चीन का कब्जा मानते आये हैं। लेकिन चीन ने कश्मीर के मामले में ऐसा नहीं किया। अब समय आ गया है कि भारत भी अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करे। हमें चीन को यह बता देना चाहिये कि तिब्बत के मसले उसका समर्थन भारत की संवेदनशीलता के प्रति चीनी रवैये पर निर्भर करता है। शुरूआत के तौर पर नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के काम में दलाई लामा को तत्काल शामिल कर लिया जाय।
Sunday, August 29, 2010
जम्मू कश्मीर पर चीनी षड्यंत्र
Posted by pandeyhariram at 3:36 AM
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