पिछले रविवार को पाकिस्तान में काले घने बादलों के नीचे अनंत दुःख और पीड़ा का समंदर टीवी पर देख कर किसी का दिल पसीज सकता है। बाढ़ के पानी में अनगिनत कस्बे और गांव बह गए हैं। पाकिस्तान के हर प्रांत में सड़कें, पुल और मकान नष्ट हो चुके हैं। टीवी के विजुअल्स में हजारों एकड़ कृषि भूमि को, उफनते पानी द्वारा निगलते हुए साफ देखा जा सकता है।
इतने बड़े पैमाने पर विनाश इन्सानी समझ से परे है। पूरे देश में करीब 1.5 से 2 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। यह संख्या 2005 में हिंद महासागर की सुनामी और कश्मीर के भूकंप, 2007 के नरगिस साइक्लोन और इस साल हैती के भूकंप से प्रभावित कुल आबादी से भी अधिक है।
करीब 160,000 वर्ग किलोमीटर यानी न्यूयार्क जितना इलाका पानी में डूबा हुआ है। पड़ोसी देश की दशा को ध्यान में रखते हुए भारत का उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाना स्वाभाविक था। पिछले दिनों हमारे विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने 50 लाख डॉलर मदद देने की पेशकश की, जिस पर पाकिस्तान का रुख बड़ा ठंडा था। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने इसके लिए धन्यवाद तो कहा पर मदद को स्वीकारने की बाबत कुछ नहीं कहा। पाकिस्तान का यह रवैया आश्चर्यजनक है क्योंकि इसके लिए उसने खुद ही अंतरराष्ट्रीय मदद की गुहार लगायी है। वह भारत से आलू इम्पोर्ट करके अपनी मंडियों में नीलाम कर रहा है, लेकिन मुफ्त में मिल रही मदद उसे मंजूर नहीं है। ऐसा आखिर क्यों ?
भारत को तो ऐसे मामले में पाकिस्तानी मदद से कोई ऐतराज नहीं होता। हाल में लद्दाख में बादल फटने के बाद आयी बाढ़ में जब सेना के कुछ जवान बहकर सरहद के उस पार चले गए तो भारत ने पाकिस्तान से सहयोग मांगा था। पाकिस्तान ने यह मदद देने का वचन भी दिया था।
आज जब पाकिस्तान ऐसे ही संकट में फंसा है तो पड़ोसी होने के कारण भारत उसकी मदद करना अपना कर्तव्य मानता है। ऐसा लगता है कि इस मामले को लेकर पाकिस्तानी शासन तंत्र के हाथ बंधे हुए हैं।
पाकिस्तानी मीडिया में आयी कुछ खबरों के मुताबिक तालिबान और अन्य कट्टरपंथी बाढग़्रस्त इलाकों में अफवाह फैला रहे हैं कि इस बाढ़ के पीछे भारत का हाथ है। उनके मुताबिक यह त्रासदी भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर और अफगानिस्तान में अपने नियंत्रण वाले बांधों का पानी पाकिस्तान की ओर छोडऩे से पैदा हुई है। पाकिस्तान को ऐसे तत्वों से सजग रहने और उनसे सख्ती से पेश आने की जरूरत है, क्योंकि हाल में उसने भारत के बजाय अपने यहां उभर रहे कट्टरपंथ को अपने लिए ज्यादा बड़ा खतरा माना है।
इस अहसास के बावजूद अगर वह भारतीय सहायता लेने में हिचक दिखाता है तो इसका संदेश साफ है कि पाकिस्तानी नेतृत्व कट्टरपंथियों के दबाव में काम कर रहा है। यह पाकिस्तान ही जाने कि आपदा के वक्त मिल रही सहायता को नकारने से उसका कौन सा राजनीतिक उद्देश्य पूरा होता है, पर उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी यह प्रतिक्रिया पाकिस्तान के उन लाखों बेघर लोगों को नुकसान पहुंचा रही है, जिन्हें इस वक्त मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। इंसानियत का दर्जा दुनिया की किसी भी राजनीति या कूटनीति से ऊपर है। कम से कम इस ऐतिहासिक आपदा में तो हमें तेरा-मेरा के सोच से ऊपर उठ जाना चाहिए।
Tuesday, August 24, 2010
इंसानियत के मोल पर सियासत
Posted by pandeyhariram at 3:44 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment