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Tuesday, October 4, 2011

इस पूजा में भी रुलायेगी बारिश



हरिराम पाण्डेय
21सितम्बर 2011
पंडितों का कहना है कि इस बार पूजा में मां दुर्गा 'गजÓ यानी हाथी पर सवार होकर आएंगी। मतलब चारों तरफ सुख -समृद्धि रहेगी, क्योंकि गज लक्ष्मी का प्रतीक है। धन -धान्य से भरपूर। परंतु पूजा के दौरान महंगाई का ट्रेलर तो आपने देख ही लिया और असली सीन आयेगा तो पसीने छूट जाएंगे। इसके अलावा भूकंप ने उदासी का आलम बना दिया और इन सबके बाद कोलकाता की बारिश। हे मां दुर्गा! तुम्ही रक्षा करना। कोलकाता में जब भी बारिश हो, पानी टिप-टिप ही बरसना चाहिए। अगर बारिश झमाझम हो तो उससे सभी के तन-बदन में आग लग जाती है। ऐसी आग कि हर आदमी बेबस हो जाता है। सड़क पर हैं तो वहीं फंस गये, मेट्रो की रफ्तार थम गयी, एयरपोर्ट के रास्ते बंद हो गये और घरों-बाजारों में पानी भर गया। लंदन की तरह वल्र्ड क्लास सिटी बनाने के झिलमिल सपने को चंद मिनटों की बारिश दूर-दराज का एक पिछड़ा हुआ गांव बना देती है। तरक्की और विकास का दावा पल भर में धुल जाता है। हर कोई यह सवाल पूछता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। चूंकि इस नजारे से हर साल ही साक्षात्कार होता है, इसलिए अब कोई शर्म से पानी-पानी नहीं होता।
सरकारी विभाग हर साल इस जल जमाव का कोई न कोई बहाना तलाश कर लेते हैं और दोष दूसरों पर डाल देते हैं। कई बार तो दोष इंद्रदेवता पर भी चला जाता है कि जब इतनी बारिश होगी तो पानी जमा होगा ही, यह क्या कम है कि इतना पानी बरसा है। ग्राउंड लेवल की भी तो कुछ सोचो। यह यक्ष प्रश्न तब भी खड़ा रहता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
महानगर में नालों की सफाई की जिम्मेदारी कोलकाता नगर निगम की है और यह स्वायत्तशासी संस्था है। इसमें एक विभाग है ड्रेनेज और एक विभाग है स्ट्रीट। नाले दोनों के कार्यक्षेत्र में आते हैं। यह विडंबना है कि सफाई के मामले में इनमें ही कोई तालमेल नहीं है। हालांकि चार फुट तक गहरे नालों की देखरेख नगर निगम के पास है और बाकी नाले भी रिकार्डों में तो अलग-अलग विभागों के पास हैं लेकिन सच तो यह है कि सफाई के मामले में सभी की हालत एक जैसी ही है।
पिछले सालों तक सावन-भादों से ठीक पहले सारे नालों की सफाई का अभियान छिड़ता था। अभियान के नाम पर येे विभाग करोड़ों खर्च कर डालते थे। नालों-नालियों का मलबा सड़क के किनारे फेंका जाता था और फिर उसका निपटान किया जाता था। इस काम में बहुतों के वारे-न्यारे होने लगे। नालों की सफाई कितनी होती थी, इसका सबूत बारिश है क्योंकि मीडिया को हेडलाइन मिल जाती थी 'पहली बारिश ने ही प्रशासन की पोल खोलीÓ।
इस बार कॉरपोरेशन ने नया फार्मूला निकाला- बारिशों से ठीक पहले विशेष अभियान क्यों चलाएं; नाले-नालियों की सफाई तो पूरे साल चलनी चाहिए। इस साल बारिशों से पहले लोगों को सिल्ट के ढेर सड़कों के किनारे नजर नहीं आए। पूरे साल कितनी सफाई हुई या होती रही है- यह इस बार भी बारिश ने साबित कर दिया। विशेष अभियान न चलाने का तर्क देने वाले अब कह रहे हैं कि कोलकाता ऐसे भी डूबता है और वैसे भी। यह सवाल तो अब भी बरकरार है कि कोलकाता डूबता क्यों है। सच तो यह है कि नाले-नालियों की सफाई हो या सड़कों से गंदगी हटाने का प्रयास, सफाई तो कुदरत ही करती है। जब जलजमाव की स्थिति पैदा होती है तो उसी से गंदगी बहकर निकल जाती है वरना सफाई के तमाम वादे तो झूठे ही हैं। सारे विभाग जिम्मेदारी का टोकरा एक-दूसरे के सिर पर सरकाते हैं या कहते हैं कि जनता ही जागरूक नहीं है। घर की गंदगी पॉलिथिन की थैलियों में भरकर नालियों में बहा दी जाती है जिससे नाले जाम हो जाते हैं।
बारिश आने पर पानी को रास्ता ही नहीं मिलता और सड़कों पर पानी भर जाता है। पाइप लाइनें बरसों पुरानी हैं जो बढ़ी हुई आबादी का बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं। कुछ हद तक बात में दम हो सकता है लेकिन नाले-नालियों की यह स्थिति तभी बनती है जब लगातार सफाई न हो। मामला चाहे जो हो रोते तो कोलकाता के आम आदमी ही हैं। अब मां दुर्गा चाहे हाथी पर आयें या नौका पर, स्थापना से विसर्जन तक उनके भक्तों को पानी और सड़क पर की गंदगी का मुकाबला तो करना ही होगा।

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