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Tuesday, October 4, 2011

गंभीर चुनौती है राष्टï्र के समक्ष



हरिराम पाण्डेय
25सितम्बर 2011
एक बड़ी विचित्र स्थिति से देश गुजर रहा है। दो दिन पहले विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख नेता और धर्माचार्य आचार्य धर्मेंद्र से मिलना हुआ। वे देश के विभाजन को खत्म कर अखंड भारत बनाने के अभियान में जुटे हैं और समस्त अहिंदुओं को विदेशी या उन्हें देश विरोधी करार दे रहे हैं जो भारत माता की जय अथवा वंदे मातरम् बोलने से गुरेज करते हैं। उधर अण्णा के अनशन के वक्त मौलाना बुखारी ने साफ - साफ फतवा दिया था कि वंदे मातरम् या भारत माता की जय इस्लाम विरोधी है। नरेंद्र मोदी ने सद्भावना के नाम पर उपवास किया लेकिन एक बार भी अपने 'कियेÓ का पश्चाताप नहीं किया। दूसरी तरफ सरकार के नेताओं पर जनता का विश्वास घटता जा रहा है और सरकार पर आस्था कम होती जा रही है। वैश्विक मंदी बढ़ती जा रही है और रुपये का मूल्य गिरता जा रहा है। यानी कुल मिला कर एक गंभीर विभ्रम की स्थिति नजर आ रही है। ऐसे में अक्सर समाज के आम आदमी के भीतर से एक नेता उत्पन्न होता है और वह समय की धारा को बदल देता है। पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लगभग ऐसी ही स्थिति हुई थी। पूरा यूरोप कंगाल और बेरोजगार हो गया था और भारत सहित एशिया के अन्य देशों में अराजकता का बोलबाला था। ऐसे में गांधी का आना इतिहास की एक बहुत बड़ी देन थी आप गांधी से चाहे जितने भी असहमत हों लेकिन उन्होंने विश्व को अपनी बात पर सोचने को बाध्य तो किया। यही नहीं उनके बाद आजाद से लेकर पटेल तक कई लोग परिद्श्य पर उभरे। इसका कारण था भारतीय मध्य वर्ग का राष्टï्रीयता के प्रति रुझान और अंग्रेजी शिक्षा के कारण यूरोपीय लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था। जो हालात उस समय सामाजिक परिवर्तन का कारक बने वे हालात आज मौजूद नहीं हैं। हमारे नेता अपनी बातों से स्थितियों का भ्रामक आकलन कर रहे हैं और मीडिया एक खास किस्म की सौदागरी में लगी है। ऐसे में सामाजिक परिवर्तन के कारक तत्व या तो अनुपस्थित हैं अथवा गौण। यह स्थिति गड़बड़ी और अराजकता का बुनियादी लक्षण है और राजनीति एवं लोकतंत्र के प्रति आम जनता के भरोसे को खत्म करती नजर आ रही है। अगर इन सब बातों को दरकिनार भी कर दें तब भी ये हमारी सियासत की रोजमर्रा की गतिविधि और समग्र रूप से राजनीति के अस्तित्व पर गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर रही है। इस स्थिति से निपटने के लिये जरूरी है कि सभी दल एक मंच पर आएं और देश को समाने रख कर कोई मान्य उपाय खोजें। एक ऐसा उपाय जिसमें परिवर्तन और परिशोधन की पूरी गुंजाइश हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जिस अराजकता की आहट सुनायी पड़ रही है वह देश के लिये घातक साबित होगी।

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