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Tuesday, October 4, 2011

ताजा विवाद को सरकार दृढ़ता से निपटाये

हरिराम पाण्डेय
27सितम्बर 2011
देश की राजनीतिक स्थिति अत्यंत अप्रत्याशित होती जा रही है। सत्तारूढ़ गठबंधन जहां एक ओर अपने घटक दलों के नेताओं से तालमेल बिठाने में कठिनाई महसूस कर रहा है वहीं पार्टी के भीतर भी तनाव बढ़ता जा रहा है। इसमें सबसे ताजा तनाव का कारक है पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम को टू जी घोटाले में भेजी गयी चि_ïी। इस चि_ïी से ऐसा लगता है कि स्थापित नियम 'पहले आओ पहले पाओÓ को रद्द कर उन्होंने ही स्पेक्ट्रम की नीलामी की अनुमति दी थी। यही नहीं वित्त मंत्रालय से प्रधानमंत्री कार्यालय को भी इस महत्वपूर्ण मसले पर एक पत्र भेजा गया था। वह पत्र भी अभी पार्टी के बाहर और सार्वजनिक मंचों पर तनाव और चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने बात को तूल दे दिया है और उसने इस घोटाले में संप्रग सरकार के शीर्ष लोगों पर भी उंगली उठानी शुरू कर दी है। यहां तक कि उसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी लपेटे में ले लिया है। हालांकि देर से ही सही प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि वे चिदम्बरम का बचाव करेंगे और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी उन्हें महत्वपूर्ण सहयोगी बताया है। लेकिन जब तक वे लोग इस पर कोई कदम उठाएं या बयान दें तब तक हालात बेलगाम हो चुके थे। अब यहां यह सवाल उठता है कि क्या इस ताजा स्थिति से निपटने के लिये कांग्रेस ने कुछ नहीं किया? मंत्रिमंडल में मतभेद के कारण हैं कि सरकार में अपने मामलात से ठीक से निपटने का हुनर थोड़ा कम है। अभी जरूरत है कि सरकार ऐसा प्रदर्शित करे कि सब कुछ एकजुट और ठीक- ठाक है लेकिन दिखायी तो ऐसा पड़ रहा है कि भीतर झगड़ा मचा हुआ है और सरकार अपना बचाव करने में लगी है। वैसे भी सक्षम राजनीतिक प्रबंधन सरकार में कभी दिखा ही नहीं। जबसे संप्रग-2 की सरकार बनी तबसे अब तक मंत्रिगण एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपना हित साधने के काम में लगे दिखायी पड़े। टेलीकम घोटाले के उजागर होने के काफी समय के बाद जब सरकार ने ए राजा से पल्ला झाड़ा तब से ही वातावरण में संदेह के काले बादल मंडराने लगे थे और सरकार के हर फर्द पर घोटाले का शुबहा होने लगा था। प्रणव मुखर्जी के पत्र के प्रकाश में आने पर यह शुबहा और बढ़ गया है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के चक्कर में दो तथ्यों के बीच का अंतर खत्म हो गया। पहला कि 'पहले आओ पहले पाओÓ का नियम मंत्रिमंडल की नीतियों के अंतर्गत था और यह राजग के काल में भी कायम था। अब सवाल है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी या 'पहले आओ पहले पाओÓ के आधार पर आवंटन सही था या गलत, यह एक ऐसा मामला है जिसके गुण - दोष पर बहस हो सकती है। लेकिन जहां तक निर्णय का प्रश्न है तो यह एक सरकारी फैसला है और इस तरह का फैसला करने का हर सरकार को हक है। यहां यह पूछा जा सकता है कि क्या स्पेक्ट्रम की नीलामी के कारण मोबाइल टेलीफोन का उपयोग सस्ता नहीं हुआ है? इसे 'पहले आओ पहले पाओÓ मामले से अलग कर देखा जाना चाहिये क्योंकि इस प्रक्रिया में भी 'अयोग्यÓ टेलीकॉम कम्पनियों को 'उनकी बारीÓ से पहले आवंटित किये जाने का मामला उठता रहा है। ऐसे मतभेदों को निपटाना कांग्रेस के लिये बड़ी बात नहीं है लेकिन इसके पहले जरूरी है कि कांग्रेस इसे शर्मिंदगी का विषय ना बनने दे और इसे समुचित स्तर पर निपटा दे। भाजपा भी यदि भ्रष्टïाचार को खत्म करने के मामले में गंभीर है तो उसके लिये भी जरूरी है कि वह घोटाले की कालिख में डूबी एक ही कूंची से सबके चेहरे काले कर राजनीतिक लाभ उठाने का काम बंद कर दे, क्योंकि इस कार्य में एक ऐसा बिंदु भी दिखाई पड़ रहा है जहां जाकर आम जनता भाजपा को गंभीरता से लेना बंद कर देगी।

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