हरिराम पाण्डेय
28सितम्बर 2011
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना चुनाव भारी मतों से जीत लिया। उन्हें कुल 77.46 प्रतिशत मत मिले और मजे की बात कि राज्य की सत्ता में विगत 3 दशक से ज्यादा अवधि तक राज्य करने के बाद भी उनके प्रतिद्वंद्वी माकपा के उम्मीदवार को मिले मतों का अनुपात बुरी तरह गिरा है। पिछले 34 साल के इतिहास में किसी भी वाममोर्चा नेता ने सत्ताधारी गठबंधन की ऐसी हार की कल्पना तक नहीं की होगी, जैसी हार आज उन्हें देखनी पड़ रही है। 'परिवर्तनÓ अब महज नारा नहीं है, यह पश्चिम बंगाल के युवा और उस मध्यवर्ग के लिए अब 'आदर्श वाक्यÓ की तरह है, जो कभी वामपंथी विचारधारा के रीढ़ की हड्डïी हुआ करता था।
आज जिस तरह के परिणाम आए, उसकी उम्मीद तो उसी समय से थी जबसे चुनाव की चर्चा शुरू हुई। अगर ऐसा नहीं होता तो आघात लग सकता था। सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य अभी जमीन की हकीकत को नहीं पहचान पाये हैं और वे सामजिक परिवर्तन के उन गुमानों में ही खोये हुए हैं जिसकी अलख 19वीं शताब्दी में कार्ल माक्र्स और 1940 के दशक की शुरुआत में माओ ने जगायी थी। प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, बिमान बोस, मोहम्मद सलीम जैसे नेता टेलीविजन स्टूडियो में बैठ सकते हैं, गरीबों और पददलितों को लेकर लंबे-चौड़े व्याख्यान दे सकते हैं लेकिन इन लोगों ने इस बात का रत्ती भर भी प्रयास नहीं किया कि जो ये जनता के बीच बोलते हैं, उसे अमलीजामा पहनाया जाए। तृणमूल कांग्रेस की आज की सफलता पूरी तरह से सिर्फ एक ममता बनर्जी के करिश्मा का नतीजा है। महाभारत का एक प्रसंग याद आता है कि 'जब कृष्ण को द्रोपदी के चीरहरण के बारे में जानकारी मिली, तो उन्होंने कौरवों को चेताया था- किसी नारी के स्वाभिमान को कदापि ठेस मत पहुंचाओ, क्योंकि उसके प्रतिशोध की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।Ó अब ममता इस बात की जीती-जागती मिसाल बन गयी हैं। पश्चिम बंगाल में सरकार से जनता की आशा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। अब पश्चिम बंगाल का भविष्य और यहां के निवासियों की नियति पूरी तरह से इस बात पर निर्भर है कि ममता बनर्जी अब के बाद कैसा काम करती हैं। जहां तक जनता की बात है, वह दुबारा ममता बनर्जी में अपना यकीन वोट के जरिए जता चुकी है। अब ममता बनर्जी को यह साबित करना होगा कि वे एक योग्य और दृढ़प्रतिज्ञ प्रशासक हैं। ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब आने वाले दिनों में ही मिल पाएंगे- क्या बेरोजगार युवकों को रोजगार दिये जाएंगे, जैसा कि ब्रिगेड मैदान की सभा में उन्होंने वादा किया था? क्या किसान अपनी उपज बढ़ाने के लिए अच्छी सिंचाई सुविधा पा सकेंगे? क्या राज्य में निवेश की रफ्तार जोर पकड़ सकेगी? क्योंकि अभी निवेश नाम मात्र का है। क्या जनता ममता बनर्जी में भरोसा बरकरार रख सकेगी, जो कि मुख्यमंत्री के रूप में अब तक रखती आयी है। ममता जी की सद्य: विजय में मौजूद एक तथ्य को कतई नदरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल सचमुच एक लोकतांत्रिक प्रदेश है। यहां का वोटर गरीब, उपेक्षित या असहाय हो सकता है, पर बेजबान नहीं हो सकता है....और जब वोटर बोलता है, तो बड़े बड़ों की बोलती भी बंद हो जाती है। इस बात को लेफ्ट फ्रंट के नेताओं से बेहतर और कौन महसूस कर सकता है?
Tuesday, October 4, 2011
अब बड़ी उम्मीदों से दो चार होना पड़ेगा ममता को
Posted by pandeyhariram at 10:41 AM
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