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Tuesday, October 4, 2011

मध्य वर्ग शासन को बदल कर रहेगा



हरिराम पाण्डेय
23सितम्बर 2011
प्रसिद्ध इतिहासकार बी बी मिश्र ने भारतीय मिडल क्लास पर लिखी अपनी विख्यात पुस्तक में कहा है कि 'भारत में आजादी की लड़ाई में उतनी तीव्रता नहीं हुई होती अगर यहां के मिडल क्लास ने उसमें हिस्सा नहीं लिया होता। मिडल क्लास एक ऐसी ताकत है जो किसी भी स्थिति का बदलने के लिये बाध्य कर सकती है।Ó मिड मध्य वर्ग यानी मध्य वर्ग का हल्ला हम बरसों से सुनते आये थे, लेकिन अब जाकर वह वक्त आया है, जब भारत ही नहीं दुनिया भर में 'मिडल क्लास रेवॉल्यूशनÓ हो रहा है। इसकी वजह तरक्की है। आमदनी बढऩे के साथ बहुत बड़ी तादाद में गरीब आबादी मध्य वर्ग के दायरे में कदम रख रही है। लेकिन ज्यादा उपभोग और ज्यादा सहूलियतों से जो बड़े फर्क इस बदलाव के साथ आने वाले थे, उनका अंदाजा किसी को नहीं था। नतीजा, तमाम मुल्क खुद को अचानक एक ऐसे चैलेंज से रूबरू पा रहे हैं, जिसके मुकाबले की तैयारी सिस्टम ने नहीं की गयी थी।
अण्णा आंदोलन और मध्य वर्ग पर काफी कुछ पढ़ा और सुना जा चुका है। अत: उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। इस पर बात आगे बढ़े उससे पहले दो बातों पर गौर कर लेना जरूरी है। एक, मुद्रास्फीति की दर और दूसरा सरकार से रिश्ता। 'मिडल क्लासÓ की पहचान थोड़ी उलझी हुई है, लेकिन एक पैमाना यह है कि 2 से 20 डॉलर तक रोजाना कमाने वालों को 'मिडल क्लासÓ मान लिया जाए। इस हिसाब से लगभग चालीस करोड़ लोग भारत के मध्य वर्ग में होंगे। यह बहुत बड़ी तादाद है। लेकिन आमदनी के इस मोटे हिसाब से भी बड़ी बात मुद्रास्फीति की है, यानी वह मुकाम जहां से चीजें जबर्दस्त तरीके से बदल जाती हैं। भारत में यह बिंदु है औसत आय का 1000 डॉलर (लगभग 45000 रुपया) पर पहुंचाना। यह मोड़ अभी-अभी आया है और इसके बाद इस्तेमाल और मांग में जोरदार उछाल की उम्मीद की जा रही है। लेकिन गुंजाइश एक और है- तंगी से थोड़ा राहत पाते ही लोग अपनी सरकार से भी बेहतर सेवा की मांग करेंगे। अगर भ्रष्टïाचार के नाम पर इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया तो यह इसी मांग का नतीजा है, यानी वह मुद्रास्फीति बिंदु पार करती मध्य वर्ग आबादी का युद्ध घोष था। लेकिन इस एलान में भी यह दम नहीं होता, अगर साथ में जनता का रवैया नहीं बदल गया होता। गरीब जनता सरकार से इतनी दबी होती है, कि उसे माई-बाप समझती है। लेकिन तरक्की और सहूलियतों से लैस मध्य वर्ग सरकार को सिर्फ 'सर्विस प्रवाइडरÓ समझता है और अपने टैक्स के बदले बेहतरीन सेवा की गारंटी मांगता है। सरकार और पब्लिक के बीच यह बदलता रिश्ता शासन के हर तौर-तरीके को पलटने जा रहा है। तो सवाल उठता है कि इस मोड़ पर हम अपने सफर को किस दिशा में जाता हुआ देख रहे हैं?
लगता है कि सरकारें उम्मीद के मुताबिक नहीं बदल पाएंगी, क्योंकि उन्हें बदलाव की ताकत का अभी एहसास ही नहीं हुआ है। उनके पास वह मिजाज और इंतजाम भी नहीं है। लिहाजा सुस्त शासन से इस बेहद जवान देश की बेताबी का टकराव लाजिमी होगा। हम आने वाले वक्त में शहरी आंदोलनों में तेजी आती देख सकते हैं, जो हिंसक भी हो सकती हैं। हलचल, नाराजगी और टकराव का दौर बरसों तक चलेगा और हालात बदलने के लिये मजबूर हो जाएंगे।
लेकिन इसके साथ शासन में बदलाव आना भी तय है। सरकार छोटी होती जाएगी, हमारी जिंदगी से उसका दखल घटेगा और उसकी कार्य क्षमता बढ़ेगी। यह उसकी नरमदिली की वजह से नहीं, बाहरी दबाव से होगा। जन-लोकपाल जैसे इंतजाम अपनी जगह हासिल करेंगे। हालांकि रोजमर्रा की जिंदगी से भ्रष्टïाचार पूरी तरह खत्म नहीं होगा, लेकिन उसके लिए मौके काफी घट जाएंगे।
लोकतंत्र के लिए यह दौर अच्छा साबित होगा, क्योंकि अपनी ख्वाहिशों के लिए मध्य वर्ग को सियासत में रुझान दिखाना होगा। हम सियासी बहस का दर्जा ऊपर उठता देखेंगे और चुनाव में भागीदारी बढऩे लगी। लेकिन देश सिर्फ मध्य वर्ग नहीं है। अब तक यह क्लास बिखरा हुआ था, जात और मजहब के नाम पर उसे बांटा जा सकता था, जबकि परंपरागत तौर पर गरीबी की सियासत का सिक्का चल रहा था। गांव और गरीब के फोकस में रहने के चलते सरकारें कई योजनाएं चला रही थीं। मुखर मध्य वर्ग संसाधनों के इस बंटवारे को बदलने पर मजबूर कर सकता है। नतीजतन शहरों से दूर के मुद्दे और भी दूर सरकाए जा सकते हैं।
नए शहरी मध्य वर्ग भारत की सियासत हैरतअंगेज तरीके से जुदा होगी। उसके मुद्दे अलग होंगे, मिजाज और चेहरे अलग होंगे। क्या क्षेत्रीयता, जात और मजहब का जज्बा उसमें भी बचा रहेगा? लगता है भारत को अपनी इन फितरतों से छुटकारा पाने की कोई जल्दबाजी नहीं है। लेकिन ये बातें धुंधली जरूर पडऩे लगेंगी, हालांकि भेदभाव के दूसरे मुद्दे जनम ले सकते हैं। यूरोप के तरक्की याफ्ता मुल्कों को देखिए। पैसा और सहूलियतें भी नये किस्म के असंतोष पैदा करते हैं। तब नस्ल, बाहरी आबादी, स्कूली फीस और गैर- बराबरी जैसे मुद्दों पर हंगामा होने लगता है। लेकिन उस भविष्य की बात क्यों करें। फिलहाल भारत को अपने हिस्से के हंगामे में कदम रखने दीजिए।

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