CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, October 4, 2011

योजना आयोग की गरीबी रेखा एक साजिश है



हरिराम पाण्डेय
22सितम्बर 2011
योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि खानपान पर शहरों में 965 रुपये और गांवों में 781 रुपये प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि इस तरह शहर में 32 रुपये और गांव में हर रोज 26 रुपये खर्च करने वाला शख्स बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा को पाने का हकदार नहीं है। अपनी यह रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर दी है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए हैं। आयोग ने गरीबी रेखा पर नया क्राइटीरिया सुझाते हुए कहा है कि दिल्ली, मुंबई, बंगलोर और चेन्नई में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वह गरीब नहीं कहा जा सकता। यह परिभाषा हास्यास्पद नहीं बेहद निर्मम है। सरकार ने 32 रुपये और 26 रुपये पर गरीबी रेखा खींच दी है। कहते हैं कि गरीबी की रेखा एक ऐसी रेखा है जो गरीब के ऊपर से और अमीर के नीचे से निकलती है।Ó यह परिभाषा किसी भी मायने में सैद्धांतिक न हो परन्तु व्यावहारिक और जमीनी परिभाषा इससे अलग नहीं हो सकती है। वास्तव में गरीबी की रेखा के जरिए राज्य ऐसे लोगों के चयन की औपचारिकता पूरी करता है जो इससे ज्यादा अभाव में जी रहे हैं कि उन्हें रोज खाना नहीं मिलता है, रोजगार का मुद्दा तो सट्टे जैसा है, नाम मात्र को छप्पर मौजूद है या नहीं है, कपड़ों के नाम पर कुछ चीथड़े वे लपेटे रहते हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें विकास की प्रक्रिया में घोषित रूप से सबसे बड़ी बाधा माना जाने लगा है। हालांकि विकास का यह एक मापदण्ड भी है कि लोगों को गरीबी के दायरे से बाहर निकाला जाये, इस दुविधा की स्थिति में लगातार संसाधन झोंके जाते हैं। जिन्होंने इस रेखा का मापदंड तैयार किया है उन्हें मालूम नहीं कि गरीबी दरअसल होती क्या है?
गरीबी भूख है और उस अवस्था में जुड़ी हुई है निरन्तरता। यानी सतत भूख की स्थिति का बने रहना। गरीबी है एक उचित रहवास का अभाव, गरीबी है बीमार होने पर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले पाने में अक्षम होना, विद्यालय न जा पाना और पढ़ न पाना। गरीबी है आजीविका के साधनों का अभाव और दिन में दोनों समय भोजन न मिल पाना। कुपोषण के कारण छोटे-बच्चों की होने वाली मौतें गरीबी का वीभत्स प्रमाण है और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में शक्तिहीनता, राजनैतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व न होना और अवसरों का अभाव गरीबी की परिभाषा का आधार तैयार करते हैं। मूलत: सामाजिक और राजनीतिक असमानता, आर्थिक असमता का कारण बनती है। जब तक किसी व्यक्ति, परिवार, समूह या समुदाय को व्यवस्था में हिस्सेदारी नहीं मिलती है तब तक वह शनै:-शनै: विपन्नता की दिशा में अग्रसर होता जाता है। यही वह प्रक्रिया है जिसमें वह शोषण का शिकार होता है, क्षमता का विकास न होने के कारण विकल्पों के चुनाव की व्यवस्था से बाहर हो जाता है, उसके आजीविका के साधन कम होते हैं तो वह सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में निष्क्रिय हो जाता है और निर्धनता की स्थिति में पहुंच जाता है। शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे कचरा बीनने और कबाड़ी का काम करते हैं। यह काम भी अपने आप में जोखिम भरा और अपमानजनक है । इस नजरिये से अगर इस रेखा का सामाजिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो महसूस होगा कि यह सत्ता और सत्ता की दौड़ में शामिल सियासी दलों की साजिश है। कम्युनिस्टों और समाजवादियों का बुर्जुआ और सर्वहारा का वह विश्लेषण या वर्तमान योजनाकारों की ये रपटें सब एक साजिश की ओर इशारा करती हंै।
प्रो. एम रीन के अनुसार 'Óलोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिए कि उनसे घिन आने लगे या वे समाज को नुकसान पहुंचाने लगें। इस नजरिये में गरीबों के कष्ट और दुखों का नहीं बल्कि समाज की असुविधाओं और लागतों का महत्व अधिक प्रतीत होता है। गरीबी की समस्या उसी सीमा तक चिंतनीय है जहां तक कि उसके कारण, जो गरीब नहीं हों, उन्हें भी समस्याएं भुगतनी पड़ती हैं।Ó शायद इस विचार का अर्थ यह है कि गरीब को उस सीमा तक गरीब रहने देना चाहिए जहां तक उसमें प्रतिक्रिया करने की भावना न जागे। इसके लिए उसे इतना भोजन (पोषण नहीं) उपलब्ध करा दिया जाना चाहिए जिससे उसके शरीर में मौजूद भोजन की थैली भरी रहे, हो सके तो तन को कपड़े से ढांका जा सके और वह भीगे न, इसके लिये छप्पर का इंतजाम हो जाये। एक प्रश्न यह भी है कि उसका गरीब रहना भी क्या किसी के हित में हो सकता है? निश्चित रूप से गरीबी में जीवन- यापन करने वाला यह समुदाय मजदूर के रूप में सबसे ज्यादा उत्पादक समुदाय की भूमिका निभाता है और सत्ता के लिये यह मतहीन समुदाय मतदाता के रूप में सत्ता प्राप्ति का साधन है। इनकी गरीबी से मुक्त होने का मतलब बहुत ही खतरनाक है। जिस दिन गरीब, गरीबी से मुक्त हो जायेगा उस दिन वह निर्णय लेने लगेगा और अपने अधिकार हासिल करने की प्रक्रिया में शामिल होना चाहेगा ; उसे मालूम चल जायेगा कि शोषण की उत्पत्ति उसी के लिये हुई है। योजना आयोग की नयी रिपोर्ट इसी साजिश का उदाहरण है।

0 comments: