संसद की कार्रवाई गुरुवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। विपक्षी दलों ने ललित मोदी और व्यापमं घोटाले को लेकर इतना शोर मचाया कि भारत की संसद दुनिया के सामने एक तमाशा बन कर रह गयी। इन सारे प्रकरण में एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण लगती है और जिस बात का जनता जवाब चाहती है वह है कि संसद की कार्यवाही को रोकने के अलावा सोनिया गांधी कभी भी अखबरों के मुख्य पृष्ठों पर या चैनलों के मुख्य समाचारों में क्यों नहीं दिखतीं। अगर घोटालों की ही बात करें तो कांग्रेस काल में कम घोटाले हुए, ऐसा नहीं कहा जा सकता। विख्यात फ्रांसीसी लेखक व इतिहासकार फ्रांस्वा गुटिये के मुताबिक ‘ जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे उस समय राहुल गांधी 1 लाख 60 हजार डालर से भरे सूटकेस के साथ अमरीका में पकड़े गये। एफ बी आई उन्हें गिरफ्तार करने वाली थी कि अटल जी ने ब्रजेश मिश्रा को कहकर उन्हें छुड़वाया। वह ममला आज भी चल रहा है। लेकिन कोई कुछ नहीं कह रहा है। ’ ऐसे कई और घोटाले हैं लेकिन मीडिया चुप है तथा जनता अनमनस्क। जहां तक भाजपा की बात है तो वह भी जब विपक्ष में थी तो वही किया जो आज कांग्रेस कर रही है। सर्विस टैक्स के नाम पर उसने क्या रुख अपनाया था यह सर्वविदित है। हां , वही करना जो भाजपा ने किया वह यकीनन सियासी परिपक्वता की पहचान नहीं है पर इस हालात के लिये दोषी तो दोनों हैं। संसद में बहस को सुनकर आप क्या याद कर पा रहे हैं कि इन सवालों के तमाम पहलू क्या हैं? इन सब पर भारतीय राजनीति में पर्याप्त चर्चा हुई है और कई बार नए सिरे से हो सकती है लेकिन इनसे ललित मोदी की मदद से उठे सवालों के जवाब नहीं मिल सकते। ये सब कांग्रेस की काली कोठरी की वो कालिख़ है जिससे काजल लगा कर बीजेपी अपना रूप नहीं संवार सकती। बाद में कांग्रेसी भक्त सोशल मीडिया पर गूगल से निकालकर बताने लगे कि कानून मंत्री के तौर पर अरुण जेटली ने क्यों राय दी थी कि एंडरसन को भारत लाने का केस कमजोर है। लेकिन क्या इस तरह से जनता की समझ बेहतर होती है। क्या वो इन तालीबाज दलीलों और आरोपों को विस्तार से समझ पाती है? क्या उसे जवाब मिलता है? यही केस तो ललित मोदी का है। कांग्रेस पर भगाने का आरोप है तो बीजेपी पर लंदन में बसाने का । सुषमाजी से सवाल था कि उन्होंने ललित मोदी की मदद क्यों की? उन्होंने बहुत आसानी से ललित मोदी की पत्नी को ढाल बना लिया। सुषमा स्वराज कहती रहीं कि अगर ये गुनाह है तो ये गुनाह किया है । पर सवाल ये नहीं था। सवाल था कि सबकुछ व्यक्तिगत स्तर पर क्यों किया। मंत्रालय को क्यों नहीं बताया। दो मुल्कों के संबंध की गारंटी ललित मोदी के लिए दी गई या उनकी पत्नी के लिए। खुद कहती रहीं कि मदद की है लेकिन सबूत मांगती रहीं कि दिखा तो दीजिये कि मैंने कुछ लिख कर दिया है। जैसे कि अनैतिकता सिर्फ लिख कर होती है। ललित मोदी भगोड़ा है तभी तो इसी अगस्त में उसके विरुद्ध ‘ रेड कार्नर ’ नोटिस जारी हुई है। सवाल उस भगोड़े की मदद का था जो लंदन में बैठा मुस्कुरा रहा है। जो कांग्रेसी सरकार को चकमा देकर लापता हो जाता है और बीजेपी सरकार के विदेश मंत्री को सीधा फोन कर देता है। हमारी राजनीति का लालित्य बन जाता है । बहरहाल लोकसभा की बहस का नतीजा यह निकला कि सबको भाषण कौशल के प्रदर्शन का मौका मिला। आपने सुना होगा गलाकाट भाषणों के बीच भावनाएं ऐसे चढ़- उतर रही थीं कि कोई मुद्दा ही न हो। एक दूसरे के खानदानों का हिसाब हुआ और अपनी खूबियों का बखान। ऐसी घमासान राजनीति से तो किसी का दिल घबरा जाए मगर यकीनन हमारे राजनेताओं को बहुत मजा आया होगा। यह देख कर ऐसा लगता है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो उसकी सियासत बेहद गैरजिम्मेदार थी और आज उसी की प्रतिध्वनि वे लोग सुन रहे हैं। यह ख्याल रहे कि , सबकी राजनीति जब एक सी हो जाती है, तब राजनीति मर जाती है। लोकतंत्र में जब विकल्प एक समान हो जाए तो लोकतंत्र मर जाता है। लोकतंत्र के खिलाफ हरकतें होने लगती हैं। जनता की आवाज दबने लगती है। आज आप लिख कर रख लें कि अब इस लोकतंत्र में जनता हमेशा हारेगी। वो मतदान प्रतिशत से खुश होना चाहती है तो हो ले।
Friday, August 14, 2015
संसद स्थगित: भाषणबाज जीते, जनता हारी
संसद की कार्रवाई गुरुवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। विपक्षी दलों ने ललित मोदी और व्यापमं घोटाले को लेकर इतना शोर मचाया कि भारत की संसद दुनिया के सामने एक तमाशा बन कर रह गयी। इन सारे प्रकरण में एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण लगती है और जिस बात का जनता जवाब चाहती है वह है कि संसद की कार्यवाही को रोकने के अलावा सोनिया गांधी कभी भी अखबरों के मुख्य पृष्ठों पर या चैनलों के मुख्य समाचारों में क्यों नहीं दिखतीं। अगर घोटालों की ही बात करें तो कांग्रेस काल में कम घोटाले हुए, ऐसा नहीं कहा जा सकता। विख्यात फ्रांसीसी लेखक व इतिहासकार फ्रांस्वा गुटिये के मुताबिक ‘ जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे उस समय राहुल गांधी 1 लाख 60 हजार डालर से भरे सूटकेस के साथ अमरीका में पकड़े गये। एफ बी आई उन्हें गिरफ्तार करने वाली थी कि अटल जी ने ब्रजेश मिश्रा को कहकर उन्हें छुड़वाया। वह ममला आज भी चल रहा है। लेकिन कोई कुछ नहीं कह रहा है। ’ ऐसे कई और घोटाले हैं लेकिन मीडिया चुप है तथा जनता अनमनस्क। जहां तक भाजपा की बात है तो वह भी जब विपक्ष में थी तो वही किया जो आज कांग्रेस कर रही है। सर्विस टैक्स के नाम पर उसने क्या रुख अपनाया था यह सर्वविदित है। हां , वही करना जो भाजपा ने किया वह यकीनन सियासी परिपक्वता की पहचान नहीं है पर इस हालात के लिये दोषी तो दोनों हैं। संसद में बहस को सुनकर आप क्या याद कर पा रहे हैं कि इन सवालों के तमाम पहलू क्या हैं? इन सब पर भारतीय राजनीति में पर्याप्त चर्चा हुई है और कई बार नए सिरे से हो सकती है लेकिन इनसे ललित मोदी की मदद से उठे सवालों के जवाब नहीं मिल सकते। ये सब कांग्रेस की काली कोठरी की वो कालिख़ है जिससे काजल लगा कर बीजेपी अपना रूप नहीं संवार सकती। बाद में कांग्रेसी भक्त सोशल मीडिया पर गूगल से निकालकर बताने लगे कि कानून मंत्री के तौर पर अरुण जेटली ने क्यों राय दी थी कि एंडरसन को भारत लाने का केस कमजोर है। लेकिन क्या इस तरह से जनता की समझ बेहतर होती है। क्या वो इन तालीबाज दलीलों और आरोपों को विस्तार से समझ पाती है? क्या उसे जवाब मिलता है? यही केस तो ललित मोदी का है। कांग्रेस पर भगाने का आरोप है तो बीजेपी पर लंदन में बसाने का । सुषमाजी से सवाल था कि उन्होंने ललित मोदी की मदद क्यों की? उन्होंने बहुत आसानी से ललित मोदी की पत्नी को ढाल बना लिया। सुषमा स्वराज कहती रहीं कि अगर ये गुनाह है तो ये गुनाह किया है । पर सवाल ये नहीं था। सवाल था कि सबकुछ व्यक्तिगत स्तर पर क्यों किया। मंत्रालय को क्यों नहीं बताया। दो मुल्कों के संबंध की गारंटी ललित मोदी के लिए दी गई या उनकी पत्नी के लिए। खुद कहती रहीं कि मदद की है लेकिन सबूत मांगती रहीं कि दिखा तो दीजिये कि मैंने कुछ लिख कर दिया है। जैसे कि अनैतिकता सिर्फ लिख कर होती है। ललित मोदी भगोड़ा है तभी तो इसी अगस्त में उसके विरुद्ध ‘ रेड कार्नर ’ नोटिस जारी हुई है। सवाल उस भगोड़े की मदद का था जो लंदन में बैठा मुस्कुरा रहा है। जो कांग्रेसी सरकार को चकमा देकर लापता हो जाता है और बीजेपी सरकार के विदेश मंत्री को सीधा फोन कर देता है। हमारी राजनीति का लालित्य बन जाता है । बहरहाल लोकसभा की बहस का नतीजा यह निकला कि सबको भाषण कौशल के प्रदर्शन का मौका मिला। आपने सुना होगा गलाकाट भाषणों के बीच भावनाएं ऐसे चढ़- उतर रही थीं कि कोई मुद्दा ही न हो। एक दूसरे के खानदानों का हिसाब हुआ और अपनी खूबियों का बखान। ऐसी घमासान राजनीति से तो किसी का दिल घबरा जाए मगर यकीनन हमारे राजनेताओं को बहुत मजा आया होगा। यह देख कर ऐसा लगता है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो उसकी सियासत बेहद गैरजिम्मेदार थी और आज उसी की प्रतिध्वनि वे लोग सुन रहे हैं। यह ख्याल रहे कि , सबकी राजनीति जब एक सी हो जाती है, तब राजनीति मर जाती है। लोकतंत्र में जब विकल्प एक समान हो जाए तो लोकतंत्र मर जाता है। लोकतंत्र के खिलाफ हरकतें होने लगती हैं। जनता की आवाज दबने लगती है। आज आप लिख कर रख लें कि अब इस लोकतंत्र में जनता हमेशा हारेगी। वो मतदान प्रतिशत से खुश होना चाहती है तो हो ले।
Posted by pandeyhariram at 1:55 AM
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