दुबई आम भारतीयों के लिए सपनों का मुल्क रहा है , तस्करों के लिये सोने का मुल्क और भाई बिरादरी के लिये आश्रय का मुल्क। दाउद भाई से लेकर टुटपुंजिये तक वहां अपने चरण कमल जरूर रखते हैं। इमरजेंसी के जमाने में जाना कि हाजी मस्तान वहीं से अमावस की रात गोदी पर सोना लेकर आते थे या दुबई भाग जाते थे। शेष भारत दुबई की इस छवि में जीता रहा तो एक भारत रोजगार तलाशते दुबई पहुंच गया। एक छोटे से भारत के लिए दुबई रईसी का अड्डा भी बना। यहां के फैंसी मार्केट वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए। उनके मार्फत भी दुबई का सामान न जाने कितने घरों में पहुंचा होगा। इन तमाम छवियों के बीच हम यह भूल गए कि दुबई या अन्य खाड़ी देशों में मेहनतकश ईमानदार भारतीय भी रहते हैं। दुबई, कतर, अबू धाबी, अजमान, फुज़ायरा, रास अल ख़ायमा, शारजाह, और उम अल क्वैन। इन सात अमीरातों को मिलाकर संयुक्त अरब अमीरात बनता है जिसके दौरे पर हमारे प्रधानमंत्री गये थे। वहां 25 लाख भारतीय रहते हैं। ऐसे में दुबई समेत संयुक्त अरब अमीरात में बसने वाले 25 लाख भारतीयों की 34 साल बाद क्यों सुध आई भारत सरकार को? सबसे ज्यादा भारतीय यहीं बसते हैं और 50 अरब डॉलर हर साल देश भेजते हैं। इनके हित, इनके अधिकार और भारत के साथ यूएई के आपसी रिश्ते क्यों हमारी विदेश नीति में अब अहम् हो गए हैं? पहली बार प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से अरब मुल्कों में मजदूरी करने गए लाखों भारतीयों को अमरीका द्वारा एन आर आई जैसा महत्व मिला है। अमीरात की आबादी का तीस प्रतिशत हिस्सा भारतीयों का है। वहां की स्थानीय आबादी से भी ज्यादा वहां भारतीय हो गए हैं। यहां आजमगढ़ के मुसलमान रहते हैं तो सिवान के हिन्दू भी रहते हैं। संयुक्त अरब अमीरात के पास निवेश के लिए पैसे का एक ऐसा भंडार है जो दुनिया के बहुत कम मुल्कों ने खासतौर पर निवेश के लिए अलग रखा है। अबू धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी के पास 800 बिलियन डॉलर का फंड खास तौर पर निवेश के लिए अलग रखा गया है । इसी तर्ज पर दुबई इनवेस्टमेंट अथॉरिटी के पास 500 बिलियन डॉलर की राशि निवेश के लिए अलग रखी गई है। यह दुनिया भर में स्टॉक, बांड, रियल एस्टेट, कीमती धातुओं के सेक्टर और हेज फंड्स में निवेश के लिए अलग रखा गया है। ऐसा फंड वही देश बना सकते हैं जिनके पास बजट से अतिरिक्त पैसा हो और जिनकी कोई अंतरराष्ट्रीय देनदारी न हो। भारत की नजर इसी फंड पर है और निवेशकों को लुभाने के लिए मोदी ने अरबी उद्योगपतियों को भारत में सौर ऊर्जा, किफायती मकानों , डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में निवेश का न्यौता दिया। प्रधानमंत्री मोदी बार बार 21 वीं सदी को एशिया की सदी कहते हैं। क्या अब वह वक्त आ गया है कि उनकी इस बात को फलसफे के तौर पर देखा जाए। इस यात्रा को मिलाकर वे सात मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं। मध्य एशिया के दौरे पर मीडिया ने कम ही ध्यान दिया। उज्बेकिस्तान, कजाकस्तान, किर्गीस्तान, ताजीकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से पहले वे बंगलादेश जा चुके हैं। इससे पहले वे बौद्ध धर्म के लिहाज़ से म्यांमार, कोरिया, श्रीलंका, जापान चीन और मंगोलिया की यात्रा कर चुके हैं। 25 देशों की विदेश यात्रा में प्रधानमंत्री ने एशिया के सत्रह छोटे बड़े मुल्कों की यात्रा की है। सामरिक तौर पर भी इस साझेदारी की अहमियत कम नहीं। भारत के कई कुख्यात अपराधी दुबई , यूएई में शरण लेकर अपना धंधा चला रहे हैं। दाऊद के यूएई की कई कंपनियों में शेयर हैं, कई बेनामी संपत्तियां हैं। पीएम मोदी चाहेंगे कि उस पर कार्रवाई की जाए। इस्लामिक स्टेट के बढ़ते कदमों की आहट ने भारत को चौकन्ना कर दिया है। अरब क्षेत्र में यूएई के साथ मज़बूत रिश्ते आईएस के खिलाफ रणनीति के लिए ज़रूरी हैं। दोनों देश धर्म और आतंकवाद के बीच किसी रिश्ते और चरमपंथ को खारिज करते हैं। दोनों देश ऐसी कोशिशों की निंदा करते हैं चाहे वो देशों द्वारा ही की जा रही हों जहां धर्म को दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा या समर्थन देने के लिए इस्तेमाल किया जाता हो। दोनों देश पश्चिम और दक्षिण एशिया में ऐसे देशों की कोशिशों की निंदा करते हैं जो राजनीतिक मुद्दों और विवादों को धार्मिक और कट्टर रंग देते हैं और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं।
खैर यूएई दौरा अच्छी पहल है हमारे लिए, हमारी ज़रूरतों के लिए और हमारे उन 26 लाख लोगों के लिए जिन्होंने यूएई में मिनी इंडिया बसा रखा है। यह तो मानना होगा कि पीएम की सोच एक मामले में बिलकुल साफ और खरी है । ये है उनकी कारोबारी सोच और इस मामले में भारत को वो दुनिया के सामने अच्छे से रख रहे हैं। परंतु, दुनिया भर से निवेशकों को बुलाने और यहां टिकाने के लिए देश के अंदर बेहतर कारोबारी माहौल चाहिए। जब देश का उद्योगजगत सुधारों की सुस्त रफ्तार पर सब्र खोने लगा हो तो बाहर से आने वाले निवेशक क्यों आएंगे।
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