देश ने आज अपना सबसे बड़े पर्व मनाया। स्वाधीनता दिवस के रूप में यह पर्व हमें अतीत के कटु अनुभवों से निकालकर वर्तमान संघर्ष और भविष्य की सुखद कामना को बार बार याद दिलाता है। स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का अभिभाषण हुआ जिसमें उन्होंने संसद को अखाड़ा बनाये जाने पर चिंता जाहिर की और अपील की कि ऐसा ना हो। लोकतान्त्रिक संस्थाओं के दबाव में होने की बात, धर्मनिरपेक्षता के प्रति सजगता, चरमपंथ के प्रति सख्ती, पडोसी देशों के साथ सम्बन्ध, शिक्षण व्यवस्था पर आत्मनिरीक्षण, जल प्रबंधन और लोकतंत्र के नवीकरण जैसे मुद्दों को उभारते हुए राष्ट्रपति ने आने वाले समय की रूपरेखा ही स्पष्ट की। उनके इस भाषण के बिन्दुओं से शायद ही कोई असहमत हो। पर यहां प्रश्न आता है कि क्या इन सबके लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेवार है। हमसब की कोई जवाबदेही नहीं बनती है? क्या आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों का बलिदान हमारी पूंजी नहीं है? अगर वो बलिदान हमारी पूंजी है तो हमारी जिम्मेवारियां भी किसी सरकार से कम नहीं हैं। दरअसल नायक वह होता है जो आजादी के साथ आने वाली जिम्मेवारियों को समझता है और उन्हें पूरी करने के पक्ष में सदा खड़ा रहता है। यहां विख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आईंस्टीन का वह कथन याद आता है जिसमें उन्होंने कहा है कि आप क्या पाते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि आप क्या देते हैं यह खास है। आजादी के लिए हजारों लाखों देशभक्त, क्रान्तिकारी, स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन समर्पित किया है और इस मशाल को आगे ले जाने की जिम्मेवारी निश्चित रूप से देश के युवा कन्धों पर ही है।
आज आजादी के 69 वें समारोह में शिरकत करते समय हमें उन तथ्यों से अवगत रहना चाहिए, जिन्हें हमने हासिल कर लिया है और उससे भी ज्यादा उन उद्देश्यों के बारे में याद करते रहने की आवश्यकता है जो हमारी पहुंच से दूर दिखते हैं। सकारात्मक बात यह है कि अब हमारा देश अपने मानव संशाधन, आर्थिक क्षमता, राजनीतिक नेतृत्व, रक्षा क्षेत्र, अंतरिक्ष क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में न केवल आत्मनिर्भर हो रहा है, बल्कि विश्व को नेतृत्व देने वाले देशों की कतार में शामिल होने की क्षमता का जबरदस्त प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन इन धमकाते विंदुओं को त्याग दें तब भी चंद अंधेरे कोने हैं और उन कोनों की तादाद भी कम नहीं है। मोदी सरकार से भारतीय जन को काफी उम्मीदें हैं। गत वर्ष आज के ही दिन जब मोदी जी ने लाल किले के प्राचीर से भाषण दिया था तो कई वायदे गिनाये थे। पर सवाल यह है कि एक साल बाद क्या वे वायदे पूरे हुये या बस वायदे ही रह गये। सरकार द्वारा पेश आंकड़े के मुताबिक वायदे पूरे होते दिखते हैं। पर वे पूरी तरह सच नहीं बताते हैं। सच छुपा हुआ है। आज हमारी सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। देश भर में हर साल 120 लाख लोगों को नौकरियों की जरूरत होगी। इसके इलावा खेती करने वाले 26 करोड़ से ज्यादा युवाओं को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। रोजगार के अतिरिक्त, आतंरिक सुरक्षा, पाकिस्तान से अस्थिर सम्बन्ध और चीन की घेरेबंदी भी आधुनिक भारत की मुख्य समस्याओं में से एक है। इस बार प्रधानमंत्री ने विशेषकर रोजगार के ऊपर कोई सीधी बात नहीं कही, जिससे देश की इस मुख्य समस्या के प्रति असमंजस की स्थिति यथावत बनी हुई है. हालांकि, यह कोई ऐसा विषय है भी नहीं जो एक दिन में चुटकी बजाकर हल कर लिया जाय। लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने एक बार फिर समृद्ध भारत और स्वच्छ भारत का सपना दिखाते हुए अपनी सरकार की योजनाओं के बारे में बताया। दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने देश वासियों से 2022 का रोडमैप तय करने की अपील की । उन्होंने देश से दस वादे किये हैं। वे वादे हैं , जिसमें प्रमुख हैं 18, 500 गांवों में बिजली पहुंचाना, छोटी नौकरियों में इंटरव्यू खत्म,कृषि मंत्रालय का नाम बदलना इत्यादि। उन्होंने सीना ठोंक कर कहा कि उनके शासन काल में एक पैसे का भी भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। संसद के मानसून सत्र के बजरिये यह कितना सच है यह तो जनता ही तय करेगी। कुल मिला कर प्रधानमंत्री का रिकार्ड लम्बा भाषण कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पैदा कर सका।
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