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Wednesday, August 19, 2015

असली आजादी तो वैचारिक परिवर्तन में है


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को लाल किले से वादों की फुलझड़ियां बिखेरीं। वायदे कुछ ऐसे थे मानों दिल्ली से गंगा निकल कर सबको माेक्ष दिला देगी। तिरंगे के बैज से लेकर झंडा, बैनर, पोस्टर आदि से पटे बाजार में एक ही चीज नदारद थी, वह थी आजादी। कोलकाता की सड़कों पर कागज के झंडे बेचने वाला भी बार-बार इधर-उधर देखते हुए सतर्क है कि कहीं कोई पुलिस वाला आकर सब कुछ जब्त ना कर ले। लाल किले से बह रही वायदों की गंगा के सामने इस हाल में आजादी का प्रतीक बेचने वाले के मन में आजादी के प्रति कोई सम्मान होगा क्या? कहने को तो हम-आप आजाद हैं, लेकिन पार्षद से लेकर विधायक, सांसद और मंत्री सभी हमारी आजादी कतरा-कतरा चुराते जा रहे हैं और हम हैं कि अच्छे दिनों के मरमरी ख्वाब से जगने को तैयार ही नहीं! मोदी ने रिटायर्ड फौजियों के लिए वन रैंक-वन पेंशन योजना का एलान नहीं किया। उन्होंने कहा- ‘‘मैं तिरंगे की छत्रछाया में लाल किले के प्राचीर से कह रहा हूं कि सैद्धांतिक रूप से हमने वन रैंक-वन पेंशन योजना को मंजूर कर लिया है। प्रधानमंत्री ने लालकिले से अपनी सरकार को सौ फीसदी मार्क देते हुए कहा कि सरकार पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है। मोदी ने कहा कि बीते एक साल के दौरान देश में एक नया विश्वास पैदा हुआ है और उन्होंने जनधन योजना, स्वच्छ भारत अभियान और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना को अपनी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री ने पिछले साल साफ नियत से कई योजनाओं को परवान चढ़ाने की कोशिश की है, जिनमें स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश भर के स्कूलों में टॉयलेट निर्माण का कार्य पूरा होने की ओर अग्रसर है, साथ ही साथ देश में 17 करोड़ से ज्यादे खाते और २२ हजार करोड़ से ज्यादा रुपये भी जमा हुए हैं, किन्तु इस बात की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है कि स्कूली टॉयलेट में पानी और लगभग 46 फीसदी खातों में पैसा नहीं जमा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करने के दौरान एक ओर तो कालाधन, पूर्व सैनिकों, पूर्वोत्तर भारत, विदेश नीति समेत कई मुद्दों पर सरकार का पक्ष रखा वहीं, उन्होंने अपने निराशावादियों को भी तीखे कटाक्ष के साथ निशाने पर लिया। पीएम का कहना था, 'मैं देख रहा हूं कुछ लोग होते हैं जो निराशा ढूंढ़ते रहते हैं, निराशा फैलाते रहते हैं और जितनी ज्यादा निराशा फैले, उतनी उनको ज्यादा गहरी नींद आती है। ऐसे लोगों के लिए न योजनाएं होती हैं, न कार्यकलाप होते हैं और न ही सवा सौ करोड़ देशवासियों की टीम इंडिया इनके लिए समय इन्वेस्ट करने के लिए तैयार है।' मोदी का यह कथन बेशक सकारात्मक है और प्रशंसनीय है पर क्या सदा पॉजिटिव सोचने भर से सबकुछ पॉजिटिव हो जाता है? अब देखें इस खुशगवार मौके पर सीमा पर पाकिस्तान ने फायरिंग की और बहुत से लोग जान बचा कर भागे। इसमें क्या पॉजिटिविटी है? आप कहेंगे कि इस मौके पर पाक उल्लेख क्यों? भारत-पाकिस्तान का इतिहास, भूगोल, आजादी, संस्कृति, त्योहार एक-दूसरे से चाहकर भी जुदा नहीं हो सकते, न ही वहां के लोग। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, 'हम अपने दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं।' पाकिस्तान और हिंदुस्तान को आजाद हुए 70 साल होने को आए, लेकिन ये बिल्कुल नहीं बदले। पूरा दोष इनका भी नहीं रहा, सियासतदानों ने इन्हें वैसा ही रखना चाहा और ये भी वैसे ही रहे। कहीं औरतों को नजरबंद करके जुल्म ढाए जाते हैं तो कहीं उन्हें दहेज के लिए जलाया जाता है। दोनों देश अमीर-गरीब की खाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, मानव विकास सूचकांक के मामले में एक-दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। कई लोगों को लगता है कि बंटवारा इतिहास की सबसे बड़ी भूल थी। सोचिए, अगर इस देश का बंटवारा न होता तो क्या होता! क्या दिलों में इतनी नफरत भरे लोग एक साथ रह पाते? भले ही बेवकूफी के आधार पर ही सही, पर उन्हें जबरन साथ रखे जाने की कोशिश की जाती। भगत सिंह ठीक ही इसे राजनीतिक आजादी कहते थे और कहते थे, ऐसी आजादी मिल भी गई तो क्या फायदा! यानी केवल कागजों पर आजादी। दिमाग तो हमारे अब भी वही ताकतें संचालित कर रही हैं। बेशक नई पीढ़ी जज्बे के साथ आजाद भारत का वारिस होने का दम भरती है और भ्रष्टाचार व अपराध को मिटाना चाहती है। असली आजादी तो गरिमा और मर्यादा की परिधि में रहकर वैचारिक रूप से परिवर्तन लाने की कोशिश में है। इन वादों से क्या होने वाला?

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