बिहार का चुनावी घमासान तेज होता जा रहा है। इस चुनाव में विजय के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास एक से एक व्यूह हैं। अभी हाल में उन्होंने जंगलराज का एक शिगूफा छोड़ा और अब बिहार के विकास का जाल फैला रहे हैं। उन्होंने बिहार के विकास के लिये सवा लाख करोड़ का फंड देने की घोषणा की है। यह राशि बिहार में चल रही 44 हजार करोड़ की परियोजनाओं से अलग है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री जी की यह दानशीलता उतनी ही नाटकीय है जितनी सुनने में लग रही है या कुछ अलग है। सबसे बड़ी बात है कि इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। उन्होंने यह साफ नहीं किया है कि पैसा इसी साल से लगना शुरू हो जायेगा या चुनाव के बाद आयेगा। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरा में कहा है कि दिल्ली को समझने में टाइम लगा है। एक-एक चीज़ का बारीकी से पता किया है तब जाकर ये ऐलान किया है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री बिहार पर दिल खोल कर खजाना लुटा रहे थे। उनके बोलने के अंदाज से लग रहा था कि केंद्र के लिए किसी राज्य को पैसे देना बाएं हाथ का खेल है। पीएम ने कहा कि पुरानी सरकार ने 12,000 करोड़ का पैकेज दिया था जिसका 8282 करोड़ रुपया बाकी पड़ा है। राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने में 12,000 करोड़ के काम चल रहे हैं। बांका में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का बिजली का कारखाना लगने वाला है 20 हज़ार करोड़। ये भी जोड़कर एक लाख पैंसठ करोड़ हो जाता है। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कह रहे हैं कि बिहार को विशेष पैकेज नहीं बल्कि विशेष दर्जा चाहिये। विशेष दर्जा और विशेष पैकेज में क्या अंतर है इसे राजनीतिक विद्वान बांचते रहेंगे लेकिन जिन्हें मंच लूटना था वो लूट ले गए। जनता को एक फाइनल फिगर मिल गया है। चौक चौराहे पर लोग सेक्टर के आधार पर हिसाब नहीं लगाएंगे। उन्हें सिर्फ एक लाख पैंसठ हज़ार करोड़ दिखाई और सुनाई देगा। हममें से बहुत लोग जो बिहार की स्थितियों में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें याद होगा कि इसी वर्ष जनवरी में केंद्र और बिहार सरकार ने एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया था कि पूसा के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय में बदल दिया जाएगा। इसके लिए मार्च 2017 तक 400 करोड़ की आर्थिक मदद दी जाएगी। जून 2015 में कैबिनेट ने बोधगया में आईआईएम बनाने का प्रस्ताव मंज़ूर किया था। यही नहीं मजे की बात है कि अगर इस वर्ष के बजट को देखें और प्रधानमंत्री के ऐलान को मिलाएं तो एक विचित्र बात नजर आती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बिहार के ग्रामीण सड़कों के लिये 13,820 करोड़ रुपये मुहय्या कराये जाएंगे। जबकि बजट में ग्रामीण सड़क का कुल प्रावधान है 14291 करोड़। जिसमें 1155 करोड़ नॉर्थ ईस्ट और सिक्किम के लिए है। यानी शेष भारत के लिए बचता है 13,136 करोड़ तो आप बताइये बिहार को कैसे मिल गया 13,820 करोड़। मोदी सरकार ने जिस 14वें वित्त आयोग के सुझावों को स्वीकार किया है उसके अनुसार केंद्रीय करों का 42 फीसदी हिस्सा राज्यों को दिया जाएगा। लेकिन इसकी भरपाई केंद्रीय वित्त मंत्री ने कई केंद्रीय योजनाओं का बजट काट के कर ली। 14वें वित्त आयोग ने 11 कमज़ोर राज्यों के लिए ग्रांट की बात की है। इसके अनुसार जम्मू कश्मीर को 2019 से 20 तक 1,94,821 करोड़ मिलेगा। तो बिहार को एक लाख पैंसठ हज़ार करोड़ कितने साल में मिलेगा। इसी तरह बिहार को ग्रामीण सड़कों के लिए 13,820 करोड़ दिये जाने की बात कही गई है। केंद्रीय बजट में पूरे भारत की ग्रामीण सड़कों के लिए 14,291 करोड़ का प्रावधान है। इसमें से 1155 करोड़ नॉर्थ ईस्ट और सिक्किम के लिए है। यानी शेष भारत के लिए बचता है 13,136 करोड़ तो आप बताइये बिहार को कैसे मिल गया 13,820 करोड़। नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री की भाषा शैली पर एतराज़ जताया और कहा कि हमने अलग-अलग सेक्टरों के विकास के लिए 2 लाख करोड़ का पैकेज मांगा है लेकिन 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 12000 करोड़ ही मिला। जिसमें से कई काम हुए और जो हज़ार करोड़ बचे हैं उसे भी प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा में शामिल कर लिया है।नीतीश कुमार का दावा है कि प्रधानमंत्री के ऐलान में कई योजनाएं ऐसी हैं जो पहले से मंजूर हैं या पहले से केंद्रीय योजनाओं के तहत चली आ रही हैं। कृषि के लिए बिहार ने 41,587 करोड़ मांगा था, मिला है 3094 करोड़। कौशल विकास के लिए 12580 करोड़ और मिला है 1550 करोड़। शिक्षा के लिए 1000 करोड़ दिया है। नीतीश ने कहा कि 1000 करोड़ में क्या होगा। नीतीश ने कहा कि ये उसी टाइप का है जैसे लोकसभा में कहा गया कि चुनाव के बाद सबको 15 से 20 लाख रुपया मिलेगा। जैसे हालात बता रहे हैं उससे लगता नहीं है कि रुपया मिलेगा पर चुनावी जंग काफी तेज होगी इसकी गारंटी है।
Thursday, August 20, 2015
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