उधमपुर में हुए आतंकी हमले में मुहम्मद नावेद उर्फ उस्मान तो पकड़ा गया, मगर कहां है जावेद, कहां है रहमान उर्फ अकरम और कहां है खुर्रम। ये आतंकी खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। फरार चल रहे ये आतंकी और हमलों को अंजाम दे सकते हैं। इनके बाद लश्कर-ए-तायबा के सीनियर आतंकी भी बड़े हमलों को अंजाम दे सकते हैं। पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई सांप्रदायिक दंगे भी करवा सकती है। खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट और नावेद के बयान से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में और आतंकी हमले हो सकते हैं। दरअसल, गुरदासपुर में मिली सफलता और उधमपुर में हुए आतंकी हमले के बाद आईएसआई के हौसले बुलंद हो गए हैं। नावेद पूछताछ में बार बार अपना बयान बदलकर एजेंसी को गुमराह कर रहा है। हालांकि जांच एजेंसी अब तक की पूछताछ के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि आईएसआई लश्कर को हथियार से लेकर वित्तीय मदद तो दे ही रहा है, आतंकियों को प्रशिक्षण दिलाने में भी मदद कर रहा है। पिछले वर्षों से हममें से सबने आतंकी हमलों, आतंवादियों की क्रूरताओं और उनकी ट्रेनिंग के बारे में अनगिनत खबरें सुनी होंगी। हर बार, आतंकियों की क्रूरता और उसके पीछे की जेहनियत में इंजेक्ट की गई नफरत महसूस की है। आखिर कुछ तो खास होता है इनमें। ये ब्रेनवॉश तो किए जाते हैं, लेकिन कैसे कच्चे घड़े की तरह फिर संवार दिए जाते हैं एक नई शक्ल में। और शायद, पहले से कहीं ज्यादा मजबूत। कसाब से लेकर नावेद तक...एक बात महसूस की है आपने? ये आतंकी गढ़े जाते हैं। वह भी बेहद करीने से। मैं सोचता हूं कि ये लड़के होते तो हम-आप जैसे ही हैं न। आते भी हैं सब एक से। बस, फर्क इतना है कि इन्हें कुछ भयावह करने के लिए तैयार कर दिया जाता है। न इन्हें डर रहता है, न मोह और न ही चिंता। कैसा गजब कमिटमेंट रहता होगा इनमें, किस हद तक जुनून और कितना डेडिकेशन। ये पागलपन की हद तक अपने काम को लेकर जुनूनी होते हैं। नावेद तो खुल्लम खुल्ला कह रहा है कि ‘उसे हिंदुओं को मारने में मजा आता है।’ लेकिन शायद वह यह नही जानता कि हिंदुओं को न जाने क्यों मरने में आनंद आता है। हजारों साल से हिन्दू कभी नादिर शाह , कभी चंगेज खान , कभी औरंगजेब के हाथों मरता ही तो रहा है , जब कभी किसी राणा प्रताप , पृथ्वी राज ने विरोध किया तो जयचंद मान सिंह सरीखे लोग हिन्दुओं की इस परंपरा के रक्षार्थ किसी को जान से मरवा दिया तो किसी को जंगल में भेजकर घास की रोटी खाने के लिए मजबूर कर दिया। पाकिस्तान हमें हर तरह से परेशान कर रहा है जब कि इजराइल भी ऐसे ही प्रवृत्ति के देशों से घिरा हुआ है लेकिन किसी में हिम्मत नहीं जो उसकी सीमा में घुसकर दहशत फैला दे या किसी नागरिक की हत्या कर दे। आश्चर्य है कि वहां भी भारत की तरह लोकतंत्र है , वहां भी अमीर गरीब हैं , वहा भी तमाम जाति और धर्म के लोग हैं। एक छोटा देश म्यांमार भी ऐसी घटनाओं से मुक्ति पा चुका है। लेकिन एक भारत है जो पिछले 70 साल से इस दंश को झेल रहा है, आज तक इतना भी खौफ नहीं पैदा कर पाया कि पाकिस्तान उसे बड़ा और शक्तिशाली देश मानना तो दूर अपने समकक्ष ही मान ले ! इसके कारण को समझना बड़ा मुश्किल नही है। इसका जो सबसे साधारण कारण है वह है हम अपनी शिनाख्त के लिए लड़ना नहीं जानते। हम अपनी ताकत का इजाफा क्यों नहीं करते? आतंकियों जैसे कमिटमेंट वाले युवक हम क्यों नहीं गढ़ सकते? क्या हम ऐसे नौजवान नहीं गढ़ सकते जिनके लिए कुछ नायाब करना ही मिशन हो। ऐसे नौजवान तैयार कीजिए, जो बेहद प्रोफेशनल तरीके से इन आतंकियों को एक भी जान न लेने दें। जिसे न डर हो, न मोह। जिनका मिशन ही हो रक्षा। लेकिन, इसमें आपको आतंकियों जितनी ही ईमानदारी दिखानी होगी साहब। इसके बाद आप मजबूत 'राष्ट्र' बना पाने में कामयाब होंगे। । कुछ अच्छा करना ही है तो आतंकियों के से जुनून की तरह जुनून पैदा करें। किसी घर को जलने-उजड़ने से रोकिए। लड़िए, मगर गरीबों के हक की लड़ाई। उसी जुनून, कमिटमेंट और डेडिकेशन से। क्या मोदी, डोभाल और राजनाथ के लिए यह टास्क नामुमकिन है?
Saturday, August 8, 2015
क्या यह टास्क नामुमकिन है
उधमपुर में हुए आतंकी हमले में मुहम्मद नावेद उर्फ उस्मान तो पकड़ा गया, मगर कहां है जावेद, कहां है रहमान उर्फ अकरम और कहां है खुर्रम। ये आतंकी खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। फरार चल रहे ये आतंकी और हमलों को अंजाम दे सकते हैं। इनके बाद लश्कर-ए-तायबा के सीनियर आतंकी भी बड़े हमलों को अंजाम दे सकते हैं। पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई सांप्रदायिक दंगे भी करवा सकती है। खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट और नावेद के बयान से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में और आतंकी हमले हो सकते हैं। दरअसल, गुरदासपुर में मिली सफलता और उधमपुर में हुए आतंकी हमले के बाद आईएसआई के हौसले बुलंद हो गए हैं। नावेद पूछताछ में बार बार अपना बयान बदलकर एजेंसी को गुमराह कर रहा है। हालांकि जांच एजेंसी अब तक की पूछताछ के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि आईएसआई लश्कर को हथियार से लेकर वित्तीय मदद तो दे ही रहा है, आतंकियों को प्रशिक्षण दिलाने में भी मदद कर रहा है। पिछले वर्षों से हममें से सबने आतंकी हमलों, आतंवादियों की क्रूरताओं और उनकी ट्रेनिंग के बारे में अनगिनत खबरें सुनी होंगी। हर बार, आतंकियों की क्रूरता और उसके पीछे की जेहनियत में इंजेक्ट की गई नफरत महसूस की है। आखिर कुछ तो खास होता है इनमें। ये ब्रेनवॉश तो किए जाते हैं, लेकिन कैसे कच्चे घड़े की तरह फिर संवार दिए जाते हैं एक नई शक्ल में। और शायद, पहले से कहीं ज्यादा मजबूत। कसाब से लेकर नावेद तक...एक बात महसूस की है आपने? ये आतंकी गढ़े जाते हैं। वह भी बेहद करीने से। मैं सोचता हूं कि ये लड़के होते तो हम-आप जैसे ही हैं न। आते भी हैं सब एक से। बस, फर्क इतना है कि इन्हें कुछ भयावह करने के लिए तैयार कर दिया जाता है। न इन्हें डर रहता है, न मोह और न ही चिंता। कैसा गजब कमिटमेंट रहता होगा इनमें, किस हद तक जुनून और कितना डेडिकेशन। ये पागलपन की हद तक अपने काम को लेकर जुनूनी होते हैं। नावेद तो खुल्लम खुल्ला कह रहा है कि ‘उसे हिंदुओं को मारने में मजा आता है।’ लेकिन शायद वह यह नही जानता कि हिंदुओं को न जाने क्यों मरने में आनंद आता है। हजारों साल से हिन्दू कभी नादिर शाह , कभी चंगेज खान , कभी औरंगजेब के हाथों मरता ही तो रहा है , जब कभी किसी राणा प्रताप , पृथ्वी राज ने विरोध किया तो जयचंद मान सिंह सरीखे लोग हिन्दुओं की इस परंपरा के रक्षार्थ किसी को जान से मरवा दिया तो किसी को जंगल में भेजकर घास की रोटी खाने के लिए मजबूर कर दिया। पाकिस्तान हमें हर तरह से परेशान कर रहा है जब कि इजराइल भी ऐसे ही प्रवृत्ति के देशों से घिरा हुआ है लेकिन किसी में हिम्मत नहीं जो उसकी सीमा में घुसकर दहशत फैला दे या किसी नागरिक की हत्या कर दे। आश्चर्य है कि वहां भी भारत की तरह लोकतंत्र है , वहां भी अमीर गरीब हैं , वहा भी तमाम जाति और धर्म के लोग हैं। एक छोटा देश म्यांमार भी ऐसी घटनाओं से मुक्ति पा चुका है। लेकिन एक भारत है जो पिछले 70 साल से इस दंश को झेल रहा है, आज तक इतना भी खौफ नहीं पैदा कर पाया कि पाकिस्तान उसे बड़ा और शक्तिशाली देश मानना तो दूर अपने समकक्ष ही मान ले ! इसके कारण को समझना बड़ा मुश्किल नही है। इसका जो सबसे साधारण कारण है वह है हम अपनी शिनाख्त के लिए लड़ना नहीं जानते। हम अपनी ताकत का इजाफा क्यों नहीं करते? आतंकियों जैसे कमिटमेंट वाले युवक हम क्यों नहीं गढ़ सकते? क्या हम ऐसे नौजवान नहीं गढ़ सकते जिनके लिए कुछ नायाब करना ही मिशन हो। ऐसे नौजवान तैयार कीजिए, जो बेहद प्रोफेशनल तरीके से इन आतंकियों को एक भी जान न लेने दें। जिसे न डर हो, न मोह। जिनका मिशन ही हो रक्षा। लेकिन, इसमें आपको आतंकियों जितनी ही ईमानदारी दिखानी होगी साहब। इसके बाद आप मजबूत 'राष्ट्र' बना पाने में कामयाब होंगे। । कुछ अच्छा करना ही है तो आतंकियों के से जुनून की तरह जुनून पैदा करें। किसी घर को जलने-उजड़ने से रोकिए। लड़िए, मगर गरीबों के हक की लड़ाई। उसी जुनून, कमिटमेंट और डेडिकेशन से। क्या मोदी, डोभाल और राजनाथ के लिए यह टास्क नामुमकिन है?
Posted by pandeyhariram at 7:44 AM
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