चीन ने भारतीय सेना के उत्तरी कमान के प्रमुख ले. जनरल जसवाल को विजा देने से इनकार कर दिया। भारतीय अखबारों में इसकी चर्चा जम कर हुई। चर्चा में इतनी ज्यादा आलोचना थी कि हो सकता है राजनयिक लीपापोती के लिये विदेश मंत्रालय में...श्वेत कपोतों... का गिरोह शांति की कोशिशों में लग जाय। घटना के बाद चीनी मीडिया ने अपनी कई दिनों की चुप्पी के बाद सोमवार को कहा कि ऐसी बातों और घटनाओं से भारत- चीन समरनीतिक सम्बंधों पर कोई आंच नहीं आयेगी।
चाइना इंस्टीट्यूट ऑव इंटरनेशनल स्टडीज के उपमहानिदेशक रांग टांग को चीनी अखबारों ने यह कहते हुए उद्धृत किया है कि भारत-चीनी सम्बंध और गठबंधन अति सशक्त है। चीनी शासन इतना ज्यादा अपारदर्शी है कि यह जानना कठिन है कि यह काम किसका होगा।
वैसे नयी दिल्ली में चीनी दूत ने इसके प्रति अनभिज्ञता जाहिर की। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह काम यकीनन पी एल ए का होगा। सवाल यह उठता है कि भारतीय जनरल को विजा न देने के पीछे चीन का सोच क्या है ? क्या वह किसी रणनीति के तहत भारत के साथ इस तरह पेश आ रहा है? इसे कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
आखिर चीन का रुख अचानक इतना कड़ा क्यों हो गया है ? क्या इसलिए कि जम्मू-कश्मीर के अक्साई चिन इलाके पर उसने अनधिकृत कब्जा जमा रखा है? इसके अलावा 1963 में 5000 वर्ग मील वाली शक्सगाम घाटी के जिस इलाके को चीन ने पाकिस्तान से हड़प लिया था, वह भी जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा है। इसलिए जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने पर उसे अक्साई चिन और शक्सगाम घाटी को भी भारत का मानना होगा। लेकिन यदि चीन जम्मू-कश्मीर को विवादित इलाका मानता है तो वह पाक अधिकृत कश्मीर में बड़ी परियोजनाएं क्यों लागू कर रहा है ?
चार साल पहले चीन ने जब सिक्किम को भारत का अंग मान लिया था तो भारत में यह उम्मीद की जाने लगी थी कि दोनों देशों के रिश्तों को वह सकारात्मक दिशा में ले जाना चाहता है। अब केवल एक बड़ा मसला सीमा का बचा है जिसके बारे में भी चीनी राष्ट्रपति ने 2006 के दौरे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ एक साझा सैद्धांतिक फॉर्मूला दिया कि दोनों देश सीमा मसले के हल के दौरान यह देखेंगे कि एक -दूसरे की बसी हुई आबादी के हितों के अनुरूप ही कोई सहमति विकसित की जाए।
भारत में करीब दो लाख तिब्बती रह रहे हैं और भारत यही चाहता है कि वे तिब्बत लौट जाएं। लेकिन चीन ने भारतीय सैन्य कमांडर को अपने यहां इसलिए नहीं जाने दिया कि वह एक कथित विवादित इलाके की रक्षा के लिए तैनात थे, वह जम्मू -कश्मीर पर भारत की संप्रभुता पर ही चोट करता है। भारत में यह माना गया कि चूंकि अरुणाचल प्रदेश में रहने वाले लोग भारत से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं इसलिए चीन अप्रत्यक्ष ढंग से इस पर अपना दावा छोड़ रहा है। लेकिन सीमा मसले के हल के लिए तय इन राजनीतिक सिद्धांतों का चीन ने अचानक तोड़मरोड़ कर विश्लेषण करना शुरू किया और इसके बाद से ही चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अक्सर अतिक्रमण और घुसपैठ की वारदातें शुरू कर दीं।
भारत की ओर से चीन की घुसपैठ को यह कहकर अनदेखा किया जा रहा है कि सीमा का स्पष्ट निर्धारण न होने से दोनों देशों के सैनिकों को पता नहीं चलता कि सीमा कहां खत्म हो रही है और वे एक-दूसरे के इलाकों में गलती से चले जाते हैं। हाल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भी उसने भारत के खिलाफ पर्दे के पीछे से राजनीति की है। पाकिस्तान के साथ परमाणु सहयोग का समझौता उसने अंतरराष्ट्रीय परमाणु संधियों और व्यवस्थाओं को नजरंदाज करते हुए किया है। चीन के इस रुख के मद्देनजर भारत को उसके साथ अपने भविष्य के रिश्ते तय करने की नयी रणनीति बनानी होगी।
भारतीय कूटनीतिज्ञों के लिए यह काम आने वाले सालों में सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा।
Wednesday, September 1, 2010
ड्रैगन की गुस्ताखियां और भारत की नीतियां
Posted by pandeyhariram at 6:29 AM
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