सुरक्षा मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में आर्मड फोर्सेज ऐक्ट पर कोई फैसला नहीं होने से नाखुश जम्मू-कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला ने पद छोडऩे की धमकी दी है। उनका कहना है कि भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदंबरम घाटी में छूट दिए जाने के पक्ष में हैं, पर सुरक्षा मामलों की कैबिनेट बैठक में उनके प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका, यह तकलीफदेह है।
उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को वापस लेने का प्रस्ताव दिया था। दरअसल आतंकवादियों के ताजा उपद्रव को देखते हुए सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) की धार को कुछ कुंद करना या हटा लेना अक्लमंदी नहीं होगी। सुरक्षा पर मंत्रिमंडलीय कमेटी की सोमवार (तेरह सितंबर) को बैठक हुई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में कश्मीर के वर्तमान हालात और जम्मू-कश्मीर को पैकेज दिए जाने पर विचार किया गया, लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को वापस लेने के मसले पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका। कश्मीर के नाजुक हालात पर चर्चा के लिए सीसीएस ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुलायी है।
प्रदेश सरकार का यह सोच है कि जम्मू और कश्मीर में जारी हिंसा के चक्र को रोकने के लिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार एक पैकेज की घोषणा करे, ताकि बातचीत का माहौल बने। यह दु:ख की बात है कि ईद के मौके पर मीरवाइज उमर फारूक और जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक जैसे हुर्रियत कान्फ्रेंस (मध्यमार्गी) के नेताओं ने इस माहौल के बनने से पहले ही उसकी संभावना को खत्म कर डाला है।
ईद के दिन जो हिंसा भड़की वह दरअसल, घाटी में हुर्रियत के उग्रवादी गुट के नेता सैयद अली शाह गिलानी और मध्यमार्गी गुट के नेता मीरवाइज उमर फारूक के बीच वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम है। ईद पर विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करके मीरवाइज ने अपनी ताकत दिखायी है। जाहिर है अलगाववादी संवाद के किसी भी द्वार को खुला देखना नहीं चाहते और उन्होंने माहौल को बेहद तनावपूर्ण और हिंसक बनाकर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के प्रयासों पर पानी फेर दिया है।
जम्मू और कश्मीर में सरकार के समक्ष सबसे बड़ा सवाल अब यह बन गया है कि क्या इस माहौल में एएफएसपीए को नरम बनाना या कुछ जिलों से उसे हटाना उचित होगा। कांग्रेस के कोर ग्रुप की बैठक में इस बारे में कोई आमराय नहीं बन सकी थी।
खुद रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने एएफएसपीए को नरम बनाने का विरोध किया था। थल सेनाध्यक्ष का भी यही मत है। सेना की ओर से कहा जाता रहा है कि वह अपनी तरफ से अशांत क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाने के लिए तत्परता नहीं दिखाती। वह तब यह भूमिका निभाने के लिए आगे आती है, जब उससे इसके लिए कहा जाता है। उसका काम तो बाहरी हमलों और खतरों से देश की रक्षा करने का है। इसलिए उस पर कोई भी तोहमत लगाना ठीक नहीं है।
भारत सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्रोह और उग्रवाद से निपटने के लिए यह आर्मड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट-1958 बनाया था। इस कानून की बदौलत बेशक देश को तो एक ओर अखंड रखा जा सका, मगर इसके प्रावधानों को लेकर देश को बदनामी भी झेलना पड़ी। यह कानून बिना कोई चेतावनी दिए कानून और व्यवस्था बनाए रखने के तर्क से सेना को गोली चलाने की सुविधा देता है। कानून के तहत सेना किसी को भी बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है, मगर केंद्र सरकार की अनुमति के बिना किसी भी दोषी फौजी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। इन प्रावधानों से चूंकि नागरिक आजादी का हनन होता है, इसलिए भारत सहित दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन इसका विरोध करते हैं। कश्मीर को ध्यान में रखकर तो यह कानून बना ही नहीं था।
जम्मू और कश्मीर में इसे 1990 में लागू किया गया था, लेकिन पिछले दो दशकों की घटनाओं ने इसे जम्मू और कश्मीर के लिए भी अपरिहार्य बना दिया है। इस कानून में भले ही कोई अंतर्निहित खामियां न हों, इसके लागू रहने का प्रभाव ऊपर से भले ही ठीक लगे, लेकिन भीतर-भीतर यह संबद्ध समाज में विरोध और अलगाव की भावनाओं को और मजबूत ही करता है।
जम्मू और कश्मीर में सड़कों पर उतरकर अर्द्धसैनिक बलों व पुलिस पर पत्थर फेंकने वाले लोग आजादी की मांग कर रहे हैं। वे किसी प्रतीकात्मक कदम से संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनके नेता तो त्रिपक्षीय बैठक बुलाने की मांग कर रहे हैं। फिर अगर घाटी के कुछ जिलों में इसे हटाया गया तो उत्तरपूर्वी राज्यों में भी इसे हटाने की मांग प्रबल रूप धारण कर लेगी।
मणिपुर में इस कानून के कारण सेना द्वारा हुई ज्यादतियों के विरोध में राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार और कवयित्री ईरोम शर्मिला पिछले दस वर्षों से भूख हड़ताल पर बैठी हुई हैं। सरकार को सभी पहलुओं पर विचार कर ही कोई कदम उठाना चाहिए।
Wednesday, September 15, 2010
केसर की दहकती क्यारियां और आर्मड फोर्सेज ऐक्ट पर आगा पीछा
Posted by pandeyhariram at 12:05 AM
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