23सितम्बर 2015
भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक जिस तल्खी के साथ रद्द हुई है, उससे अब जल्द दोनों देशों के बीच बातचीत की संभावना नहीं दिखती। पाकिस्तान ने यह कहकर बैठक रद्द कर दी कि वह भारत की शर्तों पर बातचीत नहीं करेगा। भारत इस बातचीत को 'आंतकवाद पर ही केंद्रित' रखना चाहता था और इसके एजेंडे में कश्मीर मुद्दे को शामिल करने को वो तैयार नहीं था। पाकिस्तान सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उसने सुषमा स्वराज की बताई शर्तों का 'गहराई से अध्ययन' किया और इसके बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि भारतीय विदेशमंत्री की ओर से रखी गई दोनों शर्तों के आधार पर दोनों देशों की प्रस्तावित एनएसए वार्ता होती है, तो इससे कोई मकसद पूरा नहीं होगा। पाकिस्तान के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, पाकिस्तान का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार को भारत का रुख साफ कर दिया। उन्होंने साफ शब्दों में पाकिस्तान से कहा कि आप इन दो मुद्दों पर मानेंगे तो बातचीत होगी, वर्ना नहीं होगी। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने रूस के उफा में बातचीत को जारी रखने पर सहमति जताई थी, लेकिन वो कोशिश बहुत जल्द रुकती दिख रही है। दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होना जरूरी है। जाहिर है, रिश्ते सामान्य होने के लिए सबसे पहले चरमपंथ पर रोक ज़रूरी है। सुषमा स्वराज और सरताज अजीज ने शनिवार को जो बातें मीडिया के सामने कहीं, उन्हें बंद कमरे में दोनों देशों के बीच साझा किया जाता तो बेहतर होता। इससे इतना जरूर हुआ कि भारत और पाकिस्तान की जनता को भी पता चल गया कि दोनों देशों के बीच किन मुद्दों पर मतभेद हैं। लेकिन जिस तरह से दोनों देशों ने लकीरें खींची हैं, उसके बाद आगे कैसे बातचीत होगी ये बहुत बड़ी समस्या होगी। कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने भारत के खिलाफ तैयार किए गए एक डॉसियर के खुलासे की धमकी दी थी लेकिन सच तो यह था कि अगर वह भारत आए होते तो शर्मिंदगी के साथ हैरान रह जाते। पड़ोसी देश की जमीन से चल रहे आतंकी संगठनों और साल 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम धमाकों के मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम को जारी पाकिस्तानी मदद की डिटेल के साथ भारत सरताज अजीज का सामना करने के लिए तैयार था। पाकिस्तान द्वारा उड़ाई गयी हवा में यह सही नहीं है कि बलूचिस्तान में जारी संकट में भारत की कथित भागीदारी है। पाकिस्तान का कहना है कि उसी सबूत से शर्मिंदगी के डर से भारत ने वार्ता रद्द की।
भारत के पास जो सबूत हैं उससे और आतंकियों को मदद और दाऊद को मिल रही पाकिस्तानी मेजबानी के पुख्ता प्रमाणों से अजीज इनकार नहीं कर सकते थे। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान में दाऊद के पते-ठिकानों का पूरा डिटेल तैयार कर लिया था। अजीब विडम्बना है कि रोज युद्धविराम को ठेंगा दिखाकर भारतीय सीमा पर गोलाबारी करने वाला देश मासूम सा चेहरा बना मीडिया के सामने 'डोजियर' लहरा रहा है और अवाम अवाक् सी देख रही है। अपनी धरती पर आतंकवादियों को प्रशिक्षित कर हिंदुस्तान की सार्वभौमता, सद्भावना और भाईचारे पर चोट करने वाला यह देश 'हुर्रियत' के नेताओं से मिलने को इतना बेताब क्यों है? मुंह में अल्लाह ताला, बगल में मोर्टार, ए के 47, नाम पाकिस्तान, इरादे हमेशा नापाक! हाफिज सईद हो या दाऊद इब्राहिम, इन्हीं की सरजमीं पर पनाह ली.... लादेन हो या लखवी … इन्ही के आंगन में पले बढ़े! इनसे उम्मीद करेंगे कि ये आतंकवाद को खत्म करने में मदद करेंगे? हमसे बातें करने आएंगे। दरअसल वहां बात चीत का कोई माहौल ही नहीं है। पाक में भारत से बात करने का माहौल केवल एक सूरत में ही बन सकता है जब वहां पर सक्रिय आतंकी तत्व खुद पाक के लिए एक बड़ा खतरा बन जाएं और उसकी सेना को बड़े पैमाने पर खुली चुनौती देने की स्थिति में आ जाएं। आज जिस तरह से पाक में आईएस के कुछ लोगों के सक्रिय होने की ख़बरें सामने आ रही हैं तो यह भी संभव है कि आने वाले समय में आईएस जैसे संगठन का पाक के चरमपंथियों पर पूरा प्रभाव हो जाये और वे अपनी खिलाफत को पाक में भी लाने का प्रयास करें ? वह ऐसी स्थिति होगी जब पाक के सामने करो या मरो की स्थिति आ जाएगी। आज यदि आईएस को सीरिया और इराक के साथ अन्य देशों में भी सफलता मिल रही है तो उसके पीछे केवल इन देशों की सेनाओं में फैला हुआ भ्रम ही है कि वे किस तरफ रहकर सही कर पाएंगें और इस दुविधा में ही सेना की लड़ने की जुझारू शक्ति पर भी बुरा असर पड़ता है जिसका असर पिछले दो दशकों में इराकी सेना की हालत देख कर ही लगाया जा सकता है। क्या कोई यह कह सकता है कि यह वही सेना है जिसने कुवैत पर कब्ज़ा कर अमरीका की नाक में दम कर दिया था ? तब इराकी सेना सद्दाम हुसैन जैसे नेता के कब्जे में थी और पूरी तरह से सक्षम भी थी। कहीं पाक भी उस तरह की परिस्थिति में फंसकर ही अपने लिए बड़ी समस्या तो नहीं पैदा करने वाला है क्योंकि ऐसी परिस्थिति में आज नहीं तो कल उसकी सेना का मनोबल विभाजित होना ही है जिससे ही पाक के भविष्य के बारे में कुछ कहा जा सकेगा, फिलहाल तो वह सेना और आतंकियों के दबाव में काम करते हुए पाक का लोकतान्त्रिक नेतृत्व अपने लिए समस्याओं का अम्बार लगाने में ही लगा हुआ है।
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