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Friday, August 14, 2020

अब लिपुलेख सीमा पर तनाव

 अब  लिपुलेख सीमा पर तनाव

  चीन ने लिपुलेख सीमा पर फौज तैनात कर  दी है और उसे लेकर काफी तनाव है।  इधर नेपाल भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है और  उसने भारत के 3 क्षेत्रों  पर अपना दावा पेश करते हुए एक नए नक्शे को तैयार किया है। इस नक्शे को वहां की संसद  ने मंजूरी दे दी है।  इसका मतलब हुआ कि नेपाल के अधिकांश  राजनीतिक दलों ने उन 3 क्षेत्रों पर नेपाल के अधिकार को मंजूरी  दे दी है।  नेपाल अब इस नक्शे को राष्ट्र संघ में ले जाने वाला है। यह तो सभी जानते हैं कि सीमा का विवाद चीन की  शह पर हो रहा है और इससे  स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि राष्ट्र संघ में इस नक्शे को हीन और उसके गुट का  समर्थन मिलेगा। नेपाल इसे गूगल को भी भेजने वाला ताकि उसके पुराने नक्शे में वह अपेक्षित सुधार कर ले।  यह सारी कोशिशें  केवल इसलिए हैं कि  नेपाल  के दावे को अंतरराष्ट्रीय विवाद का विषय बना दिया जाए। भारत ने इस नक्शे को स्वीकार नहीं किया है और उसका कहना है कि  इसका आधार बिना किसी ऐतिहासिक प्रमाण के हैं।  नेपाल की सीमा और भारत की सीमा जहां मिलती है वहां पहले से ही समझौता हो चुका है और निशान बताने वाले  खंभे लगाए गए हैं जिसमें  साफ तौर पर चिन्हित किया गया है कि  इसमें किस ओर भारत की सीमा है और किस ओर नेपाल की। नेपाल ने कदम तब उठाया जब भारतीय सीमा पर कैलाश मानसरोवर सड़क बनी जो लिपुलेख होकर गुजरती है। लिपुलेख भारत नेपाल और चीन के  3 मुहाने पर है और वहां से कैलाश मानसरोवर जाना  अपेक्षाकृतआसान है। यहां कैलाश मानसरोवर का  जिक्र इसलिए किया गया कि चीन की शह पर  नेपाल ने पहले राम के जन्म को लेकर भारतीय धार्मिक भावनाओं को  भड़काया और अब ठीक उसके समानांतर कैलाश मानसरोवर को सामने रखकर भारतीय धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश की जा रही है। 

यह पूरा विवाद उस समय आरंभ हुआ जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को वीडियो लिंक के जरिए 90 किलोमीटर लंबी इस सड़क का उद्घाटन किया। उन्होंने पिथौरागढ़ से वाहनों का पहला काफिला रवाना किया। सरकार का मानना है इस सड़क से सीमावर्ती गांव सड़कों से जुड़ जाएंगे। हालांकि चीन इस विवाद को  द्विपक्षीय मानता है लेकिन और यह कहता है कि दोनों इसे जल्द ही सुलझा  लेंगे।  लेकिन अगर थोड़ा सा पीछे जाएं तो पता चलेगा इसे देखकर भारत और चीन में पहले से ही  विवाद चल रहा है और नेपाल तब से इस पर बोल रहा है। भारत के हजारों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं लेकिन सबके पथ अलग-अलग हैं।  लिपुलेख सड़क को बनाने के पीछे भारत का यही उद्देश्य है कि  मानसरोवर तक पहुंचने में करीब-करीब चार-पांच दिन कम चलना पड़ेगा।  नेपाल के प्रधानमंत्री  ओली ने सत्ता संभालने के बाद सीमा विवाद पर कई बार भारत से बातें करने की  कोशिश की लेकिन अब तक कोई बातचीत नहीं हुई है । नेपाल के नए नक्शे को देखते हुए  यह स्पष्ट होता है इससे मामला जटिल होगा।  प्रधानमंत्री ओली क्या करना चाहते हैं इसे लेकर कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है भारत और नेपाल दोनों के पास दो अलग-अलग नक्शे हैं और शायद ही इसका कोई समाधान निकले। यही बात नया नहीं है केवल चीन राजनीतिक भाव समानता के कारण नेपाल के साथ मिलकर  भारत को ब्लैकमेल करने के लिए इसका उपयोग कर रहा है।  यह  विवाद तो  उस समय आरंभ हो गया था जब 1816 में ब्रिटिश हुकूमत ने नेपाल पर हमला किया था और नेपाल को अपने कई ईलाके गंवाने पड़े थे।  उस समय नेपाल पर वहां के सम्राट की हुकूमत चलती थी। सम्राट के साथ सुगौली में  अंग्रेजों से संधि हुई और उसे सिक्किम नैनीताल दार्जिलिंग लिपुलेख काला पानी भारत को देना पड़ा था। 1857 में  स्वतंत्रता  संग्राम में नेपाल में अंग्रेजों का साथ दिया और अंग्रेजों ने इनाम स्वरूप पूरा तराई का इलाका नेपाल  को दे दिया।  1816 की पराजय की पीड़ा गोरखा समुदाय में अभी भी है और इसी का फायदा आज जीनु खा रहा है। जब नेपाल में वामपंथी सत्ता में आए तो  चीन ने उनसे नजदीकी बढ़ाना  शुरू कर दिया।  नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी वामपंथी हैं और अपने भारत विरोधी विचारों के लिये नेपाल में मशहूर हैं।नेपाल सरकार ने अपने इन्हीं विचारों के कारण चीन का समर्थन हासिल करना शुरू किया और उसने चीन से सौदा कर लिया और उस सौदे के मुताबिक  चीन ने नेपाल को अपना एक  पोर्ट उपयोग करने के लिए दे दिया।  इसके पहले नेपाल  की पहुंच केवल कोलकाता पोर्ट  तक ही थी और यहां से  नेपाल के लिए आया सामान ट्रकों से जाता था।  नेपाल लैंडलॉक्ड यानी जमीन से घिरा मुल्क है और  उसे लगा के नेपाल की गोद में जाने से उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा।  चीन ने उसे  अपने चार टोटके उपयोग की अनुमति दे  दी। अब नेपाल चीन के बी आर आई प्रोग्राम में भी शामिल हो गया।  3 बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है।  आरंभ से माओवादी भारत के विरोधी  रहे हैं।  यहां भी सियासत पर उन्हीं का कब्जा है और वह कट्टर चीन समर्थक हैं। नेपाल में  वहां की पुरानी पार्टी नेपाली कांग्रेस नेपथ्य में चली गई और वामपंथी दल ने नेपाल को मानसिक रूप से दो हिस्सों में बांट दिया-  पहाड़ी और मधेसी।  मधेसी चूंकि भारत बहुल हैं  चीनियों ने पहाड़ी नेपालियों में भारत के खिलाफ नफरत पैदा कर दी।  इसी नफरत का फायदा उठा कर  ओली चुनाव जीत गए।  नेपाल पहले पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र था और अब वहां मुस्लिम समुदाय एक बड़ी आबादी आकर बस गयी है।  अब उसी जन भावना का फायदा उठाकर चीन लिपुलेख तक घुस आया है और वहां अपनी फौज तैनात कर दिया है ।  एक तरफ चीन लगातार कह रहा है  लिपुलेख के ट्राई जंक्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और दूसरी तरफ वह अपनी फौज में खड़ी कर रहा है। इसका मतलब सब समझते हैं।


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