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Friday, August 14, 2020

अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है

 अब तेरी  हिम्मत की चर्चा  गैर की महफ़िल में है 


 किसी जमाने में आजादी के जश्न में पूरा देश डूब जाता था। एक गीत की  पंक्तियां

 सरफरोशी की तमन्ना आज हमारे दिल में है

 देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है

   यह गीत जहां लोगों के मन में  भारत के जोश से पूरे देश की जनता जोशीला बना देता था क्योंकि कभी यह गीत एक सपना था।अब इस पर तरह-तरह के सवाल और तरह-तरह के मायने खोजे जा रहे हैं। यहां तक कि  आजादी और स्वाधीनता को दो अलग-अलग नरेशंस में बदल दिया जा रहा है।  कुछ लोग आजादी की परिकल्पना को ही चुनौती देते हैं तो कुछ लोग इस पर बहस भी करते हैं।  बात यहां तक चली जाती है कि  देश क्या होता है,  भारत से आप क्या समझते हैं? इसका उत्तर एक शोध का विषय है लेकिन शोध कौन करता है किसे पड़ी है शब्दों की व्याख्या करें।  यहां देश शब्द एक जमीन का टुकड़ा नहीं है बल्कि एक भाव है।  यह भाव  हमारे भीतर घटने वाली घटनाओं को स्वरूप देता है। यह स्वरूप प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि एक उच्छवास है। एक गौरव शाली स्मृति है। ठीक उसी तरह जिस तरह हम राम  को भगवान  मान लेते हैं और उस भगवान पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। इसका न कोई इतिहास है और मैं भूगोल बल्कि एक स्मृति है जो जीवन से विराट है। यह स्मृति है जहां एक पत्थर का टुकड़ा शंकर बन जाता है एक धनुर्धारी राम बन जाता है।  

         यहीं से उन दलीलों का उत्तर खोजना जरूरी है।  स्वतंत्रता,  आजादी या फिर स्वाधीनता चाहे जितने  भी अपरूपों  में विश्लेषित हों  संवेदना वहीं से मनुष्य ग्रहण करता है।  वरना क्या कारण था बेल्जियम से आया फौजी बनारस आकर राम भक्त बन गया,  क्या कारण था कि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए भूमि पूजन का आंखों देखा हाल लगभग 16 करोड़ लोगों ने देखा। किसी ने राम को देखा नहीं है। राम पर उसी तरह बहस होती है जैसे राष्ट्र को लेकर होती है लेकिन हमारे भीतर राम हैं।  हमारे देश की पौराणिक कथाओं में उपनिषदों में राम व्यक्ति के रूपक  हैं और ठीक वैसे ही हमारा देश भी है।  यह बात साहित्य समाजशास्त्र और दर्शन के तालमेल से समझ में आती है कि  आखिर बात क्या है कि  हमारे  अमूर्त भावों  के लिए संजीवनी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।  भारत को राष्ट्र का स्वरूप देना एक तरह से संगीत की  लयबद्धता है। इस में  छोटे से छोटे वाद्य  का सुर  साफ-साफ सुनाई पड़ता है।  इतिहासकार  टाॅप्शन के मुताबिक  भारत दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश है और इस पर दुनिया का भविष्य निर्भर करता है।  पूरब या पश्चिम का कोई ऐसा विचार नहीं है जो भारतीय मनीषा में शामिल ना हो।  स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई  ने  कोलकाता में एक संस्मरण सुनाया था कि  अफगानिस्तान में एक होटल है जिसका नाम कनिष्क है और भारत में गंगोत्री से निकलकर गंगासागर तक की यात्रा करने वाली इसी तरह किसी भी संस्कृति को अपने आलिंगन में लेने से नहीं छोड़ा है। ठीक उसी तरह हमारा देश और हमारे देश की संस्कृति ने  को  प्रभावित  करने से नहीं छोड़ा।  अफगानिस्तान में होटल कनिष्क हो सकता है और इंडोनेशिया में रामलीला होती हैं।  भारत का या अमृत स्वरूप सब जगह है।  हमारे देश पर न जाने कितने विदेशी हमले  हुए न जाने कितने प्रयास हुए हमारी संस्कृति को समाप्त कर देने के लेकिन कुछ नहीं हो सका हमारी संस्कृति जीवित है और उसी जीवंतता का प्रमाण है कि हम अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं।  आज कश्मीर को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है।  देखिए कैसा संयोग है 5 अगस्त को  राम मंदिर की भूमि पूजन हुआ कश्मीर के विवाद को समाप्त करने के लिए 1 साल पहले संविधान में उल्लिखित अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि कश्मीर जो आज  अधिकृत कश्मीर कहा जाता है हमारा अंग है।   यह केवल भूगोल  नजर से नहीं  है बल्कि  अध्यात्मिक या कहिए भारतीय अध्यात्मिक और हिंदू धर्म दर्शन के दृष्टिकोण से है।  ईसा मसीह के जन्म के समय भारत से जो लोग वहां गए थे उन्होंने ईसा को अपने साथ लाया।  बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में कहा गया है के  “ फाईव वाइज मैन फ्रॉम द ईस्ट”यह पांच  ज्ञानी लोग  कश्मीर के थे और आज भी जीसस की वहां उपस्थिति  के सबूत मिलते हैं। हम शैव- बौद्ध दर्शन या राज तरंगिणी जैसी ऐतिहासिक रचनाओं में अपनी पारंपरिक संपदा से पृथक कर सकते हैं। समय बीतने के साथ-साथ जमीन की  सरहदें  बदलती जाती हैं और उसके अनुरूप संस्कृति का नक्शा बदल जाता है।  भारत की आजादी के संघर्ष  ने इसी लौ को जला रखा था। आज भी गंगासागर के  स्नान और कुंभ के मेले में लाखों की भीड़ को  देखना इसी रूप का  अमूर्त रूप है। और, एक आश्वासन भी है। आजादी,  स्वाधीनता जैसे मुहावरे इन लोगों के लिए नहीं है जो इस अमूर्त स्वरूप को प्रणाम करते हैं।हमारा  स्वतंत्रता संग्राम  सत्ता बदलने के लिए नहीं था बल्कि अपने समस्त सभ्यता भूल को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने का यह आंदोलन था और अब तक नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिए हैं देश या विदेश में उसमें प्रतिष्ठित करने की  यह जिजीविषा महसूस की जा सकती है।

 जहां शिवा ,राणा, लक्ष्मी ने देश भक्ति का मार्ग बताया

 जहां राम, मनु ,हरिश्चंद्र ने प्रजा  भक्ति का सबक सिखाया

 वही उनके पथ गामी बनकर हमें दिखाना है

 भारत को खुशहाल बनाने ,आज क्रांति फिर लाना है 


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