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Friday, August 14, 2020

भारत के हिंदू धर्म स्थल विचार हैं

 भारत के हिंदू धर्म स्थल  विचार हैं 

 विभिन्न प्रकार की अफवाहों और  विरोधी विचारों की ओट में स्थापित विचार को समाप्त करने कोशिश तब से चल रही है जब से मानव सभ्यता है। आधुनिक  भारत में दो बड़े परिवर्तन  आए पहला भारत का विभाजन और दूसरा 1992  में  बाबरी ढांचे को ध्वस्त किया जाना।  दोनों परिवर्तनों में  एक  जटिल संबंध है वह है कि पहला भारत के लिए एक घाव था   और बाबरी ढांचा  को ढाहा जाना  विश्व हिंदू मानस  के लिए गौरव का विषय था। 1992  में  बाबरी ढांचे को ध्वस्त किए जाने के बाद एक लंबी कानूनी और सामाजिक- वैचारिक लड़ाई चली।  बाद में सब कुछ  सुलझ गया और  भगवान श्री राम का मंदिर बनाने  की तैयारी शुरू हो गई।  करोड़ों रुपए की लागत से मंदिर बनाने की योजना आरंभ हुई है तथा इसके लिए 5 अगस्त को भूमि पूजन है। इस भूमि पूजन समारोह का श्रेय बहुत से नेता और बहुत से राजनीतिक दल ले सकते हैं लेकिन जो इसमें सबसे महत्वपूर्ण है वह है आम भारतीय  हिंदू परिवार।  1990 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी ने  मंदिर का आंदोलन आरंभ किया लेकिन इस पूरे आंदोलन में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है आडवाणी द्वारा हिंदुत्व गौरव की नई परिभाषा  गढ़ा जाना।  अपनी रथयात्रा के दौरान आडवाणी ने भाषणों में ऐतिहासिक घाव का उल्लेख करते हुए भारतीय  हिंदू परिवारों में बाबरी मस्जिद को नफरत का विशेषण बना दिया, या कह सकते हैं कि पर्यायवाची बना दिया। कल यानी 2 अगस्त को विनय तोगड़िया ने कहा कि इस भूमि पूजन समारोह उन परिवारों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिन्होंने अपने बेटे इस आंदोलन में कुर्बान कर   दिए थे।  उन्हें भी इस का श्रेय मिलना चाहिए।  यहां एक अजीब शून्य की रचना होती है।   इतिहास शुरू से ही चकाचौंध का मारा हुआ है उसे बेशक  उस के माध्यम से सच मालूम होने का दावा किया जाता है लेकिन वास्तविकता नहीं।  इतिहास की संरचना  सत्ता और समाज  के पारस्परिक इंटरेक्शन से होती है।  यही कारण है कि साहित्य इतिहास नहीं सकता और इतिहास साहित्य नहीं हो सकता लेकिन दोनों में एक समानता है कि दोनों समाज के दर्पण हैं।  5 अगस्त को हमारे देश में  एक विशेष तरह की प्रतिक्रिया होगी। इतिहास अमूर्त सामूहिक स्मृतियों में बदल जाएगा।

 बाबरी ढांचे को ढाने के पहले हिंदू घरों के भीतर,  परिवारों के भीतर उसकी  बुनियाद को धीरे-धीरे खोखला कर दिया गया। इसका श्रेय सीधे तौर पर लालकृष्ण आडवाणी को जाता है। हिंदुओं की कई पीढ़ियों से बाबरी ढांचे को ऐतिहासिक अपमान माना जाता था।  सामूहिक लोक स्मृति को  गढ़ने का एक तरीका यह  भी है । बाबरी ढांचे को गिराए जाने की यह घटना पहली बार नहीं बल्कि इससे पहले बहुत पहले मौखिक इतिहासों और  पारिवारिक चर्चाओं में  हुई थी। इसलिए 1992 में  यह विध्वंस अचानक नहीं हुआ।  आम भारतीय हिंदू परिवारों मेंअयोध्या की चर्चा में इसे कई बार गिराया जा चुका है।   5 अगस्त को जो भूमि पूजन कार्यक्रम होगा उसमें राजनीतिक सितारों की जमघट के अलावा एक विजयी भाव साफ  दिखेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प किया है।   गौर करने की चीज है  कि  भारत  की संकल्पना अभी भी कायम है जबकि भारत पर न जाने कितने विदेशी आक्रमण हुए। भारत की संकल्पना  इसलिए कायम रही क्योंकि  इसके मूल में राम  थे। आज फिर हमें अवसर मिला है कि हम राम को केवल हिंदुओं का अवतार में बल्कि अन्य धर्मो के साथ भी  उसकी क्रियात्मक गति उसकी डायनामिक्स है।  यही कारण है कि अयोध्या भी आहिस्ता आहिस्ता विचार बन गई और हो सकता है कि भविष्य में यह भारत में प्रमुख तीर्थ के रूप में गिना जाने  लगे।  भारत को और भारत की संकल्पना को इस राह पर ले जाने का  श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। उन्होंने धर्म और इतिहास को मूर्तिमान स्वरूप देने का प्रयास किया। मैकाइवर ने लिखा है कि मनुष्य की मानवीय प्रकृति तभी विकसित होती है जब वह सामाजिक मनुष्य होता है और जब अनेक मनुष्यों के साथ एक सामान्य जीवन में भागीदार होता है। समाज की रचना  परमाणु रचना की तरह होता है। इसके अंतर्गत हर मनुष्य आकर्षण तथा  विकर्षण का अनुभव करता है और उस अनुभव के कारण आपस में   आबद्ध  रहता है।  नरेंद्र मोदी ने मनुष्यता को इस भागीदारी का अवसर दिया।


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