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Friday, August 14, 2020

आज ही कटी थी बेड़ियां

 आज ही कटी थी  बेड़ियां


यह जब्र भी देखा है तारीख की नजरों  ने

  लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई


अब से ठीक 1 वर्ष पहले भारत के जिगर में रिसते  हुए  एक  जख्म का  सफल उपचार हुआ और हमारे देश के भीतर कायम एक “देश” मिट गया,  बेड़ियां कट गईं । भारत के स्वायत्त राष्ट्र सत्ता पर लगाए  गये प्रतिबंध समाप्त हो गये। भारतीय मानस जो पहले खुद को अपने भीतर महसूस करता था वह राष्ट्रीय अस्मिता और  स्वचेतना एहसास को  समझने लगा।  स्वचेतना का भाव इसमें सबसे  महत्वपूर्ण था।  आजादी के बाद का भारतीय का सबसे बड़ा दर्द खत्म हो गया।   तत्कालीन नेताओं ने 1947 में जब भारत के बंटवारे पर दस्तखत किए उसी वक्त यह गलती हो गई।  इसके पीछे क्या कारण थे वह एक अलग इतिहास है लेकिन आजादी के दौरान एक छोटी सी चूक  ने पिछले सात दशक तक हमारे देश के स्वाभिमान और गौरव को खंडित करने की कोशिश की। 

    कुछ पन्ने इतिहास के

    मेरे मुल्क के सीने में शमशीर हो गए

     जो लड़े,  जो मरे वह शहीद हो गए

      जो डरे जो झुके वह वजीर हो गए


 लेकिन, आज के दिन ही 2019 में  नरेंद्र मोदी ने इस दाग को मिटा दिया। कश्मीर  पर लगे  अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया।  इसका संपूर्ण श्रेय  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है।  एक देश  में  दो ध्वज दो कानून और  दो तरह की सुविधाएं हमारे भीतरी अहं  को  उस समय बुरी तरह आघात पहुंचाता था जब केसर की क्यारियों में भारतीय सैनिकों का लहू दिखता था।  वह अनुच्छेद सरकार ने हटा दिए।  उसे लेकर आरंभ में कुछ  विवाद हुआ लेकिन फिर सब कुछ ठीक हो गया। जब से देश आजाद हुआ तब से यह सरकार और देशवासियों चिंता का विषय रहा है। आजादी के बाद जम्मू कश्मीर के भारतीय संघ में विजय के समय कुछ अस्थाई तथा संक्रमण कालीन प्रावधान किए गए थे।  इन प्रावधानों अंतर्गत जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों की तुलना में अस्थाई सही अधिक  स्वायत्तता  प्रदान की गई थी। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सबसे पहले इसका जोरदार ढंग से विरोध किया।  पिछले वर्ष मोदी जी की सरकार इन अस्थाई  प्रावधानों को समाप्त कर दिया।  इसके बाद 31 मार्च 2020 को  सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य के विधि का अनुकूलन कर दिया। नई अधिसूचना के फलस्वरूप वहां कुछ कानूनों  में संशोधन हुआ और अस्थाई निवासी शब्द की जगह अधिवासी शब्द  कर दिया गया।  अब इसके फलस्वरूप कश्मीर में पढ़ने वाले हजारों  भारतीय छात्र वहां की  सरकारी सेवा में  आ सकते हैं। यही नहीं इस नए संशोधन से बहुत से अन्य लोगों को भी लाभ होगा जैसे 1957 में पंजाब से लाकर बताए गए वाल्मीकि समुदाय की हजारों लोग जो अभी तक सफाई कर्मचारी के रूप में वहां काम कर रहे थे अब वह भारत के शेष भाग की तरह कश्मीर की सरकारी सेवा में भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि अधिवासी की परिभाषा यह बनाई गई जो लोग वहां 15 वर्षों से रह रहे हैं वे अधिवासी हैं। यही नहीं इस नई नीति के अंतर्गत पश्चिमी पाकिस्तान से  उजाड़े और  खदेड़े गए लोगों को भी राहत मिलेगी यही नहीं 1990 में कश्मीर घाटी से भगाए गए पंडितों  के जख्म पर भी मरहम लगेगा।  इतना ही नहीं अब जम्मू कश्मीर से बाहर विवाह करने वाली लड़कियों और उनके बच्चों के अधिकारों की  भी हिफाजत हो सकती है। लड़कियों को मनचाही शिक्षा आजादी मिल गई है।  अब कुछ लोग  अफवाह फैला रहे हैं कि इसके माध्यम से जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश की गई है।   यह  कथन बेमानी है। एक  देश के लोगों को अपने देश के किसी भी भाग में बस में और वहां रोजगार करने का  अधिकार है।अब यह बात समझ से परे है एक ही देश के लोग अपने ही देश में पैसे बाहर हो गए। आज देश के कोने-कोने से आकर लोग कश्मीर में सेवा कर रहे हैं। कश्मीर के कई उद्योग और निर्माण कार्य इन्हीं प्रवासियों पर निर्भर हैं।  यानी कह सकते हैं कि जम्मू कश्मीर के विकास में गति देने में इन प्रवासियों की बहुत बड़ी भूमिका है। अब जो लोग अपना जीवन और उसका सर्वोत्तम भाग वहां लगा रहे हैं तो क्या वे अपना अधिकार नहीं मांग सकते? अब अधिकार की मांग को  कोई जनसांख्यिकी परिवर्तन का सिलसिला कहे तो उसे देशद्रोही कहा जा सकता है। वहां सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है वह है की प्रशासन के अन्याय के खिलाफ जनता के पक्ष में आवाज उठाया जाना अब देशद्रोह नहीं कहा जाएगा।  यह कहा जा सकता है कि  इस नई व्यवस्था ने  लोगों में यह भाव भर दिया एक कानून के सब बराबर चाहे वह किसी भी जाति का हो चाहे वह किसी भी समुदाय क्षेत्र या धर्म का हो।  सब बराबर हैं।  नया परिवर्तन लैंगिक भेदभाव को खत्म करने वाला है। 

     अनुच्छेद 370  को हटाए जाने का सबसे बड़ा लाभ वहां के सामाजिक मनोविज्ञान पर पड़ा।  लोग आशावादी होने  लगे।  जिन हाथों में लैपटॉप होना चाहिए था वह हाथ बंदूके पकड़ने लगे तो परिवार को तो ग्लानि होती  ही है।  कभी इसे स्वर्ग की संज्ञा देने वाले बोल बीच में गुम  हो गए थे।  अब फिर से कहा जाने लगा

             अगर बर रूए जमीं  अस्त

               हमीं अस्त,  हमीं  अस्त

 इसका मतलब है किस सोच में परिवर्तन हो गया यह उम्मीद करने लगे कि विकास होगा।पर्यटन जो पहले भय दायक हुआ करता था अब आनंदित करने लगा।  लेकिन इसके संपूर्ण  आनंद और भय  हीनता  के लिए जरूरी है यहां से आतंकवाद समाप्त हो जाए और कश्मीरी  पंडितों की संपत्ति  उन्हें हासिल हो जाए।  धारा 35ए और 370 को हटाए जाने के फलस्वरूप गिलगित तथा  बालटिस्तान के लोगों में जो पाकिस्तान और चीन के जुल्म को सहने के लिए बाध्य थे उनमें भी आशा का संचार हुआ है।  जम्मू कश्मीर और लद्दाख प्रथा अन्य क्षेत्रों के लोग  इस बात की प्रतीक्षा में है कि कब  संपूर्ण अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा बन जाए। जो लोग इसे यानी इस भावना को  ज्यादती समझते और मानवाधिकार का  हनन समझते हैं  वे खुद में देशद्रोही हैं। वह देश को बांटना चाहते हैं।

 बहती है अमन की गंगा बहने दो,

 मत फैलाओ देश में दंगा अमन चैन रहने दो

 लाल हरे रंग में न बांटो हमको

 मेरे छत पर एक तिरंगा रहने दो


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