दबाव वाले बिंदुओं पर भारत को खुद को मजबूत करना होगा
भारतीय सेना और चीन की सेना तकनीकी क्षमताओं में अंतर तथा चीन द्वारा बेहतर भौगोलिक नियंत्रण बनाए रहने के लिए आगे बढ़ते कदम उठाने को देखते हुए भारत के लिए एक विवेकपूर्ण रणनीति है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल महीने वाली स्थिति हासिल करने के लिए वार्ताएं जारी रखें। इन वार्ताओं में कूटनीतिक और सैन्य वार्ताएं भी शामिल है। यहां तक कि एक बफर जोन बनाए जाने के साथ यथास्थिति जहां गश्ती, तैनाती या ढांचागत सुविधाएं निर्मित करने की अनुमति नहीं हो वहां भी समझौता करना अव्यवहारिक नहीं कहा जाएगा। इस समर नीति के पीछे एक सरल तर्क है कि चीनियों को किसी तरह थका दिया जाए, क्योंकि यह मोर्चे जिन दुर्गम क्षेत्रों में हैं वहां बहुत लंबे समय तक तैनाती सरल नहीं है। ऐसी स्थिति में जब मौसम बेहद खराब हो और चीन भारत की रणनीति भांप जाए तो खतरा और बढ़ जाता है क्योंकि वह गांव बढ़ा देगा तथा दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र और पैंगोंग त्सो तथा पूर्वोत्तर और पूरब के इलाकों पर कब्जे का प्रयास कर सकता है। इस समर नीति का मुकाबला केवल दबाव से किया जा सकता है।
यहां यह जानना सबसे जरूरी है जिन क्षेत्रों में चीन ने अतिक्रमण किया है उनका सामरिक महत्व क्या है? सबसे पहले देखें पूर्वी लद्दाख को। इस क्षेत्र का भूगोल अनूठा है। लेह और उससे लगभग 200 किलोमीटर पूरब तक का इलाका बेहद दुर्गम है। मेजर जनरल बीएम कौल ने 1962 की जंग के बाद लिखी अपनी पुस्तक में कहा है कि वहां संकरी घाटियां हैं और उसके चारों तरफ 15000 फुट से ऊंचे पहाड़ हैं। यही हालत श्योक नदी से सटे देपसंग मैदान तक और पैंगोंग त्सो से लगभग 34 किलोमीटर उत्तर तक कायम है। इन इलाकों के आगे तिब्बत का पठार है जहां आकर घाटियां चौड़ी हो जाती हैं और बुनियादी ऊंचाई बढ़कर लगभग 15000 फुट हो जाती हैं। टोही सर्वेक्षणों के बाद वहां तक ट्रैक कर के हाई मोबिलिटी वाहनों से पहुंचा जा सकता है। चूंकि, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अक्सर शांति बनी रहती थी इसलिए वहां एलओसी जैसा बंदोबस्त नहीं किया और केवल आइटीबीपी की निगरानी तथा गश्त की व्यवस्था की गई थी। हालांकि, 3500 किलोमीटर लंबी सरहद पर दुनिया की दो सबसे बड़ी सेना कई बिंदुओं पर एक दूसरे से आंखों में आंखें डाल खड़ी है। दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगने वाले अपने इलाकों मैं हवाई अड्डों और सड़कों के निर्माण के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। यही नहीं इस इलाके में अन्य सैन्य सुविधाओं का भी आधुनिकीकरण किया जा रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी सीमा पर ,जिसे दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय सीमा तो नहीं मानते पर यह जरूर मानते हैं यह लकीर दोनों के बीच है और दोनों को अलग करती है। भारत ने अपने क्षेत्र में सीमा के आसपास जो निर्माण किया है उससे चीन नाराज है। लेकिन, वह खुद अपने तरफ वाले इलाके में कई साल से निर्माण कर रहा है। अब दोनों में से कोई एक देश जब किसी बड़े प्रोजेक्ट को बनाने की घोषणा करता है तो तनाव बढ़ जाता है। क्योंकि वे इसे रणनीतिक बढ़त मानते हैं।दूसरी तरफ अमेरिका का यह मानना है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शासन यह देखने की कोशिश में है अगर वह भारत और भूटान में घुसपैठ के जरिए उसका विरोध कितना होता है। दूसरी तरफ भारत ने साफ कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से अभी पूरी तरह पीछे नहीं हटा है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना था कि दोनों देशों ने तीन बिंदुओं पर पीछे रखने का काम पूरा कर लिया है और सिर्फ पैंगोंग लेक में पीछे हटना बाकी है। उधर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव का कहना है पीछे हटने का काम पूरा नहीं हुआ है और वहां की शांति प्रभावित नहीं है। इन सारी बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि चीन का इरादा बिल्कुल ठीक नहीं है। इस पूरे क्षेत्र में भारत के कई सुरक्षात्मक और इस क्षेत्र में किसी भी तरह की हलचल से भारत की समर नीतिक गणना गड़बड़ हो सकती है। इसलिए, हम इस बात के लिए तैयार रहें कि जो लड़ना चाहता है वह युद्ध की कीमत भी समझे। आर्थिक विकास और समृद्धि के बाद भी चीन खुद को वैश्विक दृष्टिकोण की सोच से मुक्त नहीं कर पाया है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चीन विस्तार वादी है। चीन की गतिविधियों और उसका ऐतिहासिक विश्लेषण करने पर यह साफ पता चलता है कि वह जमीन के अपने मोह को छोड़ नहीं पाया है और ना उसकी लालच से मुक्त हो पाया है। यही कारण है कि छोटे-छोटे देशों को पहले कर्ज में फंसाता है और फिर उन्हें अपना कर बना लेता है। नेपाल का उदाहरण हमारे सामने है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और भारतीय क्षेत्र पर चीन का नाजायज दावा चीन के दुष्प्रचार साहित्य के तौर पर पक्षपातपूर्ण इतिहास की रचना की जाती है। 1962 का युद्ध जिन कारणों के चलते हुआ वह युद्ध अभी भी चल रहा है। वह केवल खयालों में खत्म हुआ है दूसरे तक अभी भी जारी है।
भारत को सबसे पहले इन खयालों से निकलना होगा। हमें भी वहां चीन के बराबर सैनिकों को इकट्ठा करना और हथियारों का भंडारण करना होगा ताकि चीन यह महसूस कर सके कि भारत भी दबाव बनाना जानता है। भारत को इस खेल में और तेज होने की जरूरत है जिसके जरिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर विजय पाई जा सके।हमें अपने भीतर सजा देने की क्षमता भी विकसित करनी होगी केवल सजा देना जरूरी नहीं है। इसके लिए जिन बिंदुओं पर चीन अपनी सेना खड़ी कर रखा है वहां भारत को भी दबाव बनाना पड़ेगा बिना दबाव बनाए वह कुछ नहीं कर सकता।
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