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Friday, August 14, 2020

महामारी के दौर में दुष्प्रचार

 महामारी के दौर में दुष्प्रचार

 सोशल मीडिया के जमाने में बड़ी अजीब स्थिति हो गई है।  इसे इस्तेमाल करने वाला आदमी कुछ ऐसा लगता है जैसे आईने के महल में खड़ा  हो। हर  कोण से अलग-अलग मुद्राओं में दिखने वाला बिंब।  ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कौन सही है और कौन गलत। इस सोशल मीडिया के जमाने में कुछ ऐसा ही है। यह पता लगाना बड़ा कठिन है कि कौन सी खबर सही है और  कौन सी गलत। लेकिन यहां  मुख्य समस्या जरिया नहीं है समस्या है वह वजह जिसके चलते  कुछ लोग अपने  घृणित इरादे  के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।   यह महामारी  अपना अलग ब्रांड लेकर आई है।  इसमें साजिश का सिद्धांत रखने वाले लोगों से लेकर सरकार की कार्रवाई दूसरे  एजेंडे में शामिल है। जरा पीछे  लौटें।  जब यह महामारी शुरू हुई थी तो चीन और रूस में इसे अमेरिका के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया।  उन्होंने लोगों के बीच  यह संदेह है फैलाना शुरू किया कि अमेरिका  इससे नहीं निपट पाएगा।  रूस समर्थक वेबसाइट ने डर फैलाने के लिए साजिश का सिद्धांत रचा  और उसे  चारों तरफ प्रसारित करना शुरू कर दिया। चीन ने  तो इसके लिए सरकारी सोशल मीडिया का उपयोग आरंभ कर दिया।  पिछले महीने यूरोप एक बहुत बड़ी  रिपोर्ट को साझा किया था जिसके तहत यह बताने की कोशिश की गई थी फर्जी खबरों के लिए जिम्मेदार हैं।  इस रिपोर्ट में  कहां गया था कि कुछ विदेशी और कुछ दूसरे देश कोविड-19 को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं और जनता को प्रभावित करने के अभियान में लगे हुए हैं। यूरोपियन यूनियन  ने इस एपिसोड में  पहली बार चीन का नाम  लिया। उसका कहना है इसके लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं।  क्या सबूत हैं  यह तो वही जाने लेकिन पिछले 1 महीने से यूरोपियन यूनियन और चीन में  नूरा कुश्ती चल रही है। हालांकि पिछले बुधवार को यूरोपियन यूनियन के विदेश  ने की प्रमुख जोसेफ बोरेल  चीन के विदेश मंत्री  से कहा कि यूनियन  उससे शीत युद्ध करने जा रहा है।  हालांकि,  बाद में यूनियन ने कहा हर मामले में उनका प्रतिद्वंदी है लेकिन  फिलहाल युद्ध का खतरा नहीं है। दुष्प्रचार के खिलाफ लड़ाई चल रही है और यूरोपियन यूनियन उस लड़ाई के लिए संसाधन मुहैया कराने के लिए।  लेकिन यदि केवल चीन के लिए नहीं और ना ही चीन से जुड़ी वस्तु है। रूस खेल का पुराना  खिलाड़ी है।  जमाने में एक नया शब्द याद किया गया था-डेजइन्फोर्मेटसिया। यह दरअसल यूरोपियन यूनियन  के खिलाफ रूस का अभियान था।  इससे लड़ने के लिए यूरोपियन यूनियन की राजनीतिक सेवा यूरोपियन एक्सटर्नल एक्शन सर्विस (ईईएएस) का गठन किया गया था।  अब इस सर्विस के भीतर  इस्ट स्ट्रेटकाॅमफोर्स  का गठन किया गया जो कोविड-19 से जुड़ी गलत जानकारी  प्रसारित करने के अभियान पर नजर रखे हुए है। अमेरिका चीन के संदर्भ में गलत जानकारी कहीं ज्यादा  जहर भरी है।  कोविड-19 के शुरुआती दिनों में  अमरीका के लाखों लोगों के पास सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी  भेजी गई कि  ट्रंप प्रशासन वहां  मार्शल लाॅ लगाने की तैयारी  में है। बात तो यहां तक फैलाई गई  यह महामारी अमेरिका से शुरू हुई थी।  टि्वटर ऐसी जानकारियों की बाढ़ आ गई थी।  अंत में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को इस बात  का खंडन करना पड़ा यह सारी  जानकारियां गलत हैं और  संदेश फर्जी हैं।

        न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार बड़ी संख्या में संदिग्ध  टि्वटर हैंडल बड़ी संख्या में चेन्नई और समाचार संगठनों के टि्वट को  रिट्वीट करने में लगे हैं।  कुछ तो ऐसा कर रहा है मानो शेयरिंग प्लेटफॉर्म नहीं लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो रहा है।  एक तिहाई टि्वटर हैंडल 15 महीनों में सामने आए। अमेरिका के खिलाफ यह भयानक सूचना युद्ध अमेरिका को विशेषकर डॉनल्ड ट्रंप को बदनाम करना है और उसकी क्षमता को कम करना है। गलत स्वास्थ सूचना और दुष्प्रचार का यह संगठित अभियान चला दी जाने का मकसद यह है के इस महामारी  की तरफ से लोगों का ध्यान हट  जाए और बार-बार चीन का नाम ना आए। इतना ही नहीं विदेशों में खुद की छवि मजबूत कर ले चीन।  लेकिन यह दुष्प्रचार एक तरफा नहीं है। पॉलीटिको एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करने में कसम नहीं उठा रखा है।  गलत जानकारी या दुष्प्रचार उतना ही पुराना है जितना पुराना हमारा इतिहास है हां इसमें नई चीज यह है कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया सॉफ्टवेयर के रूप में तकनीकी आ जाने के कारण इसका प्रसार तेजी से हो रहा है।

       भारत में ही देखें तो सामाजिक  विखंडन को लेकर कितनी तरह की बातें हैं उठ रही हैं। कई जगह इसका उपयोग सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए तो कई जगह इसे धार्मिक प्रचार के लिए उपयोग किया जा  रहा है।  राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर एक तरफ धार्मिकता का  ज्वार पैदा करने की कोशिश की गई दूसरी तरफ  छद्म उदारवाद के नाम से  इसके खिलाफ धार्मिक उपनिवेशवाद फैलाने की बात कहीं गई।  कहीं नहीं इन खबरों से या कहें इन सूचनाओं से प्रभावित तो होते ही हैं।  ऐसी अभिक्रिया में हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक  पूर्व ग्रह को नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ने का मार्ग मिलता है।  इससे निपटना एक बड़ी परियोजना है जिसमें समाज को खुद शिक्षा और जागरूकता के जरिए मुख्य भूमिका निभानी चाहिए।  गलत जानकारी बेहद घातक होती है और इस मामले में पहले से ही  लहूलुहान हमारे समाज की जीवन पद्धति बदलने लगती है।  विश्वसनीय सूचना के प्रवाह को जब बड़वा मिलेगा तो हमारे भीतर दुष्प्रचार के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा होगी। इसलिए जरूरी है  दुष्प्रचार पर ध्यान ना दें।


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