कोरोना और बाढ़ की त्रासदी झेलती एक बहुत बड़ी आबादी
उत्तर प्रदेश और बिहार में बाढ़ का आना आम बात है। कुछ लोग बाढ़ के कारणों को जानना चाहते हैं तो कुछ उसके लिए मिलने वाले राहत धन में दिलचस्पी रखते हैं। कोई यह नहीं सोचता कि जो आबादी इस त्रासदी से जूझ रही है उसकी क्या गति होगी। कुछ लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों के लोगों को पिछड़ा हुआ और गरीब कहते हैं। कोविड-19 के पहले दौर में लंबे लॉकडाउन के दरमियान बहुत बड़ी आबादी जिसमें अबाल वृद्ध सब शामिल थे उनकी गिनती को लोग आंकड़ों की तरह उपयोग कर रहे हैं। लेकिन कोई कभी यह नहीं सोचता उनके जाने और लौटने की क्या बाध्यता है। इन दिनों खबरों में अक्सर आ रहा है उत्तर प्रदेश के और बिहार के सैकड़ों गांव बाढ़ से ग्रस्त हैं। सरकारी अफसरों को चेतावनी दी जा रही है कि यदि वह उन क्षेत्रों में जाएं तो कोरोना से बचाव का उपाय करके ही जाएं। उधर बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में लापरवाही से कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ने का पूरा खतरा है। उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों के 20 जिलों में लगभग 20% लोग कोरोनावायरस पीड़ित हैं। यही हाल बिहार के 38 जिलों में से बाढ़ प्रभावित 16 जिलों में लगभग 15% लोग कोविड-19 से पीड़ित हैं। इतनी बड़ी आबादी के इलाज का क्या हो रहा है, किसी को कुछ मालूम नहीं। प्रशासन कहता है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, मास्क लगाएं परंतु सच तो यह है क्षेत्रों में ऐसा कुछ होता हुआ नजर नहीं आता है। जो आबादी दो वक्त भरपेट खाना नहीं खा सकती उस आबादी को मास्क खरीदने का सुझाव बड़ा अजीब लग रहा है। सरकार की तरफ से बाढ़ पीड़ितों के लिए मास्क का बंदोबस्त नहीं किया गया है। उत्तर प्रदेश के 20 जिलों में 802 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। इन 20 जिलों में 11 अगस्त तक 28, 871 कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं। इसी तारीख तक संपूर्ण राज्य में 1,31,763 मामले सामने आ चुके हैं। इसका मतलब है कि उत्तर प्रदेश के 20% से ज्यादा मामले बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के हैं। सरकार कहती है कि बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और मास्क पहनें। यह तो सब जानते हैं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में जहां पानी जमा होता है वहां संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए हर साल सरकारी क्षेत्रों में छिड़काव कराती है ताकि कम से कम मच्छर न पैदा हों इस बार तो कोरोनावायरस की भी चुनौती है। बिहार की भी वही हालत है कई गांव में घरों में पानी घुस गया है। बिहार के 14 जिलों के 1223 पंचायतों के लगभग 73 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। राज्य में 11 अगस्त तक कोरोनावायरस के 86,812 मामले आ चुके हैं। यानी बिहार के करीब 15% मामले बाढ़ से ग्रस्त क्षेत्रों के हैं। बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में त्वचा, पेट लीवर से संबंधित बीमारियां, मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियां, पीलिया और सांस से जुड़ी बीमारियां होती हैं।
बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में दवाइयां और मेडिकल हेल्प के सामने भी मुश्किलें आती हैं। जो बाढ़ के पानी के बीच में रहते हैं उन्हें खुजली का और खुजलाने के बाद थोड़ा हो जाने का सबसे बड़ा संकट है क्योंकि इसे इसी अस्पताल में नहीं दिखा सकते। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सोशल डिस्टेंसिंग का नियम खत्म हो जाता है क्योंकि लोगों को घर छोड़कर दूसरी जगह जाना होता है और वहां जितनी जगह मिलती है उतने में ही गुजारा करना होता है। बात यहीं खत्म हो तो कोई बात नहीं लेकिन जब हालात काबू से बाहर होने लगते हैं और सरकार असमर्थ हो जाती है तो बात बिगड़ने लगती है। कोरोना और महंगाई की पीड़ा को बाढ़ असह्य बना देती है और तब और भी पीड़ादायक हो जाती है जब फसलें डूबने लगती हैं । फसल मारी जाती है और मवेशी बाढ़ से खुद मर जाते हैं। मरे हुए मवेशियों के सड़ने से और बीमारियां फैलने लगती हैं। बार-बार चेतावनी दी जा रही है कि सांस लेने में तकलीफ होने पर कोरोना का भय होता है। अविलंब डॉक्टरों से संपर्क करें। लेकिन कैसे? इसका कोई समाधान नहीं होता। एक बहुत बड़ी आबादी जो देश के निर्माण में भागीदार है और आगे भी उसकी भागीदारी रहेगी वह आबादी अपने भविष्य के लिए चिंतित है तनाव में है खास करके जो नौजवान पढ़ लिख लिये और रोजगार विहीन हैं वह अपने भविष्य के बारे में सोचेंगे। सरकार को कोसेंगे लेकिन जैसे उन्हें मदद पहुंचायेगी सरकार? बाढ़ का पानी उतरने के बाद एक नया दौर आरंभ होगा वह है बेरोजगार जनित तनाव और उससे उत्पन्न तरह-तरह के अपराध चाहे वह लूटपाट हों या आत्महत्या। इसके अलावा बीमारियां फैलेंगीं उनमें खसरा, पेचिश और इंसेफेलाइटिस प्रमुख हैं। जब तक बाढ़ के कारणों का निवारण ना हो और संपूर्ण स्वच्छता ना हो तब तक इन बीमारियों और बिगड़ती सामाजिक स्थितियों को रोकना दुश्वार है। बाढ़ को प्राकृतिक आपदा बताकर अपना हाथ झाड़ लेना बड़ा सरल है लेकिन जो उसे भोग रहे हैं उनकी पीड़ा को शेयर करना बेहद कठिन है।
राज्य की सरकारें इस मामले में तब तक कुछ नहीं कर सकतीं जब तक बाढ़ के कारण और जल प्लावन को रोकने तथा उसे खत्म करने के उपाय इमानदारी से ना किए जाएं। अगर ध्यान से देखें तो राजनीति क्षेत्र में बाढ़ भी एक तरह से आमदनी का जरिया है। राहत के पैसे दूसरी तरफ चले जाएंगे और जो लोग इसकी पीड़ा से जूझ रहे हैं उनके हालत नहीं बदलेगी।
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