CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, July 6, 2020

चीन ने बदला पैंतरा



चीन ने बदला पैंतरा


अब चीन ने भूटान की पूर्वी सीमा पर दावा करना शुरू किया है और इससे दिल्ली की बेचैनी बढ़ गई है। पूर्वी भूटान के ट्रेसीगैंग इलाके में विकसित किए जाने वाले एक वन्य जीव अभयारण्य पर आपत्ति जताते हुए दावा किया है कि यह क्षेत्र उसका है। भूटान ने इसके लिए 1992 में ग्लोबल एनवायरमेंटल फैसिलिटी (जीईएफ) से समझौता किया था। यह एक अमेरिकी फर्म है। भूटान में चीन के दावे पर आपत्ति जताई है और जीईएफ ने परियोजना को पारित कर दिया है। इस परियोजना की कार्रवाई के बाद प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है चीनी प्रतिनिधि ने इस पर आपत्ति जताई है। पता चला है कि भूटान चीन को अपनी आपत्ति के बारे में बता दिया है ।पता चला है कि भूटान और चीन ने सीमा मामले पर 24 बार बातें की अब अगर अगली सीमा वार्ता में चीन इस मामले को उठाता है तो भूटान इसका प्रतिरोध करेगा। यह वन्यजीव अभयारण्य भूटान के भीतरी भाग में है और इसके अंतर्गत 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। चीन ने इस पर पहले कभी आपत्ति नहीं की थी अब उसने लद्दाख की घटना के बाद शायद भारत पर दबाव बनाने के लिए आपत्ति शुरू कर दी है। यहां भी उसका वही पैंतरा है कि इस क्षेत्र में अभी सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है और पूर्वी तथा पश्चिमी सीमा को लेकर अक्सर विवाद होता रहा है यह कोई नया विवादास्पद क्षेत्र नहीं है। चीन सदा बातचीत के लिए तैयार है। चीन ने कहा है की इस मामले में किसी तीसरे पक्ष को कुछ कहने की जरूरत नहीं है। चीन का इशारा शीशे भारत की ओर है। अब इधर भारतीय विदेश मंत्रालय चीन के दावे पर बहुत बारीकी से नजर रखे हुए। चीन और भूटान के बीच केवल उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र में सीमा को लेकर विवाद है। यह सब कोई जानता है कि चीन और भूटान में 1984 से लेकर 2016 के बीच 24 बार बैठकें हुई हैं। 2017 से दोनों देशों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है। यह बता देना जरूरी है कि 2017 में ही डोकलाम को लेकर भारत से विवाद हुआ था और उसी के बाद दोनों देशों के बीच वार्ता रुक गई। अब इधर भारत नेपाल के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है भूटान की बात एक नया मोर्चा खोल दिया। जानकारों का मानना है कि चीन ने भूटान के साथ विवाद पैदा कर भारत को परेशान करना चाह रहा है।


ध्यान देने की बात है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की फौज में गुत्थम गुत्था 2 महीने हो गए। पहली बार 5- 6 मई को गलवान घाटी में झड़प हुई थी और उसके बाद दोनों देशों के बीच सेना का जमावड़ा हो गया। आज जो दिखाई पड़ रहा है कि यह डोकलाम के संघर्ष से लंबा खींचेगा और उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग ये बीच में समझौतो को निरस्त कर देगा। 30 जून को कोर कमांडर स्तर की वार्ता हुई थी और इससे आवाज नहीं बदले दोनों अपनी अपनी जगह जमे हुए हैं। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक तरफा फैसला ले लिया है और भारत का कहना है कि चीन पीछे लौट जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख में फौजियों को संबोधित किया और कहा कि 1962 की पराजय जैसी हालत नहीं होगी। सैन्य स्तरीय वार्ता से कोई नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है। सेना की तैनाती को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है और अब और सेना वहां जा रही है। कूटनीतिक स्तर पर भी बातचीत कोई नतीजा नहीं दिख रहा है। चीनी एप्स पर पाबंदी और भारत द्वारा उसके खिलाफ उठाए गए कदमों कभी कोई प्रभाव बीजिंग पर पड़ता नहीं दिख रहा है।





दोनों देशों को अपने रणनीतिक आकलन में लग जाना चाहिए। भारत के लिए जरूरी है कि वह अपनी फौज का आकलन कर ले जिससे चीन पर दबाव दिया जा सके और चीन को भी चाहिए कि वह संबंधों के स्थाई तौर पर खराब होने से रोकने के लिए कोई उपाय करे। दोनों देश मैं अगली बातचीत जल्दी होने वाली है और हो सकता है कि कोई न कोई हल निकल आए जिससे दोनों देश की सेना आमने सामने एक दूसरे को डराने के काम से बाज आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत डरने वाला नहीं और चीन विस्तारवाद की अपनी नीति को छोड़ दे। अगर चीन अपनी हरकत से बाज नहीं आता है तो केवल एक ही रास्ता रह जाता है वह है युद्ध का। चीन भी यह बखूबी समझता होगा आज का भारत 1962 वाला नहीं है इसलिए वह भी नहीं चाहेगा जंग हो। शांति एकमात्र रास्ता है जिससे दोनों देश के लोग अपने संबंध को बनाए रखें और विकास की राह पर चलते रहें। अगर चीन अपने परमाणु बम पर ऐंठा हुआ है तो उसकी गलती है।

0 comments: