ममता और पवार का अनुकरण क्यों नहीं किया पायलट ने
ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट एकदम नौजवान नेता हैं और यकीनन एक नई पार्टी बनाकर कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के रूप में एक राजनीतिक संगठन प्रस्तुत कर सकते थे। जैसा कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस से टूटकर किया था। हालांकि, सिंधिया ने तो भाजपा का दामन पकड़ दिया है लेकिन पायलट कहां जाएंगे यह अभी तक साफ नहीं हुआ है और ना ही उनकी तरफ से कोई ऐसा संकेत मिला है जिससे पता चले किधर जा रहे हैं या फिर कोई नई पार्टी बनाना चाह रहे हैं। पायलट ममता बनर्जी नहीं हैं की उम्र में ममता जी की तरह संघर्ष की क्षमता हो और आम मतदाताओं को यह विश्वास दिला सकें कि उनमें लड़ने की ताकत है। ममता जी ने अपनी इसी क्षमता के कारण कामयाबी पाई और आज प्रदेश की गद्दी पर हैं। पायलट ने आखिर यह साहस क्यों नहीं दिखाया जबकि उनका दावा है राजस्थान की जनता उन्हें पसंद करती है। संभवतः उनकी तरह धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील विचारों वाले नेता बहुसंख्यक वादी राजस्थान में कितना सफल हो पाएंगे इसकी गणना उनके पास भी नहीं है। पायलट पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह अपने समर्थकों को लेकर भाजपा में जा रहे हैं। यह आरोप ही अपने आप में उत्तर है। इससे पता चलता है पायलट मेहनत करने की बजाय मौजूदा समय में स्थापित पार्टी में शामिल हो जाना सही समझते हैं। जिन लोगों ने ममता बनर्जी को पार्टी खड़ी करते देखा है वह उनकी मेहनत से वाकिफ होंगे। सचमुच एक नई पार्टी खड़ी करने में जो जटिलताएं सामने आती हैं और जितनी मेहनत करनी पड़ती है वह सोचा जा सकता है। एक नई पार्टी बनाने के लिए एक व्यापक जनाधार, समय, शक्ति, धनबल और बाहुबल के साथ-साथ व्यापक तजुर्बे की भी जरूरत होती है। ऐसे विचार को करने की आवश्यकता होती है जो बाध्यकारी हो साथ ही नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने की क्षमता के बीच वोटरों का मनोभाव समझने का भी आत्मविश्वास होना चाहिए। या तो आज के समय में नई पार्टी बनाने वाले को अरविंद केजरीवाल की तरह होना चाहिए जो भयानक विद्रोहियों तथा मान्य व्यवस्थाओं को मटियामेट करने की क्षमता रखता हो। अथवा, ममता बनर्जी की तरह युद्ध के मैदान में केवल अपने समर्थकों के बल पर निहत्थे खड़ा होने का साहस होना चाहिए। जिन्होंने सीपीआईएम के काल में ममता बनर्जी के साथ हुए सितम को देखा होगा और महसूस किया होगा वही इसे समझ सकते हैं। पायलट में ऐसा साहस और गुण नहीं है।
किसी भी नई पार्टी के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में खड़े होने के लिए राजनीतिक व्यवस्था की कमजोरियों के कारण एक उपयुक्त राजनीतिक वातावरण का होना जरूरी है। संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान इंदिरा जी के आपातकाल और राजीव गांधी के काल में बोफोर्स दलाली से लेकर आज के अरविंद केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार के नारों ने यह वातावरण मुहैया कराया। लेकिन आज हालात दूसरे हैं। मोदी और अमित शाह किसी भी मूल्य पर किसी भी विपक्षी विकल्प को भरने का मौका नहीं देते। इसलिए पायलट या सिंधिया के लिए नए सिरे से शुरुआत करने का कोई स्कोप नहीं है। यहां तक कि अरविंद केजरीवाल ने भी मोदी शाह के युग के पहले यह सब किया था। सिंधिया और पायलट एक बात समान है वह कि दोनों को यह मुगालता था कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें अपने-अपने राज्यों का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन जो उनसे सीनियर थे उनके इगो के आगे उनकी एक नहीं चली। पायलट अपने 18 समर्थक विधायकों को लेकर अलग हुए और अगर उनमें इतना ही साहस था उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए तो उन्हें अपनी अलग पार्टी बनानी चाहिए थी। हालांकि पायलट ने मुख्यमंत्री बनने का अपना सपना कभी किसी से गोपनीय नहीं रखा और सदा शिकायत करते हैं कि उन्हें गलत तरीके से मुख्यमंत्री पद से अलग रखा गया है। उनका मानना था यह गलत है और ज्यादा थी भरा है। कांग्रेस के नौजवान नेताओं के साथ हर जगह यानी हर राज्य में ऐसा ही हो रहा है और अगर पायलट में इतनी क्षमता थी तो उन्हें सभी राज्यों के ऐसे नेताओं को जोड़ने के लिए कदम आगे बढ़ाना चाहिए था। पायलट को यह मालूम है एक स्थापित मंच पर जगह बनाना आसान है स्टार्टअप के मुकाबले। अगर आनन फानन में ताकत एकत्र करनी है तो नई पार्टी नहीं चलेगी। वोट बैंक बनाने के लिए कठोर मेहनत की जरूरत पड़ती है और लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहना पड़ता है तथा इस अवधि में धैर्य जरूरी है। यही नहीं इसके लिए धन जुटाना भी बहुत कठिन काम है।
शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी से नाता तोड़ लिया था और कांग्रेस छोड़ दीजिए तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। इन 21 वर्षों में उन्होंने महाराष्ट्र के बिग बॉस का मुकाम हासिल किया। ममता बनर्जी 1997 में कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई और पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक जड़े जमाने की कोशिश करने लगीं।लेकिन इलीट गाइडेड पश्चिम बंगाल की राजनीति में किसी नई पार्टी को जड़े जमाना बड़ा कठिन है। यही नहीं पश्चिम बंगाल की राजनीति वामपंथियों के कारण बेहद हिंसक और और स्पष्ट थी। लेकिन उन्होंने वाम मोर्चे की सत्ता को उखाड़ फेंका। आज पायलट के बारे में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है या फिर चाहते क्या हैं? अगर आसानी से जगह बनानी है तो भाजपा मुफीद है और अगर एक पहचान कायम करनी है तो उन्हें एक नई राजनीतिक विरासत की नींव रखनी होगी और खुद को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश करना होगा। उनका कंफ्यूजन भारतीय राजनीति को नुकसान पहुंचाएगा।
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