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Monday, July 13, 2020

चीन के तंबू उखड़े



चीन के तंबू उखड़े


अगर समरनीतिक भाषा में कहें तो चीन के तंबू नहीं पैर उखड़ गए हैं। 15 तारीख के हमले के बाद 61 दिन के दरमियान चीन बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था कभी नेपाल के मुंह माध्यम से, कभी पाकिस्तान के माध्यम से और कभी भूटान के माध्यम से। हालांकि चीन का मनोविज्ञान देखते हुए इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि चीन इन बड़ी-बड़ी बातों पर कायम रहेगा। क्योंकि आरंभ से ही एक व्यापारिक देश है। चीन जितनी तरक्की कर सकता था उसने व्यापार के माध्यम से ही किया। भारत ने खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। उसके डिजिटल पैंतेरे को चारों खाने चित कर दिया तथा अन्य व्यापारिक उद्देश्यों के आगे अवरोध खड़े कर दिए। चीन की आवाज बदल गई। रविवार को भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी प्रतिनिधि वांग ई में टेलीफोन पर लंबी बातचीत के बाद चीन गलवान घाटी से अपनी फौज हटाने को तैयार हो गया। हालांकि भारतीय सेना को पूरी तरह सचेत रहने के लिए कहा गया है और ज्यादा आशावादी नहीं बनने के लिए कहा गया है। चीनी सेना भारतीय सीमा में लगभग 8 किलोमीटर घुस आयी थी और उसे लौटते हुए देखा गया है। फौजें पीछे हटाने के मसले पर यह दूसरे दौर की बातचीत थी। पहले दौर की वार्ता 6 जून को हुई थी और उसके बाद 15 जून को चीन की सेना ने भारत पर हमला कर दिया। इस हमले को नाकाम बनाने की कोशिश में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। पूरी प्रक्रिया काफी लंबी चली। चीन का चरित्र कुछ ऐसा है अभी उसके पीछे हटने पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है और 15 जून की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी। भारत और चीन 3 दिनों के बाद इसकी जांच करेंगे कि समझौतों पर पूरी तरह अमल हुआ है या नहीं


लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा का पश्चिमी हिस्सा पड़ता है और गलवान से लेकर हॉट स्प्रिंग तक कई ऐसे स्थल जहां से चीन अप्रैल-मई में भारतीय सीमा में घुसपैठ कर चुका है। अभी जो फौज हटाने का सिलसिला चालू हुआ है उसके अंतर्गत चीन 1.5 से लेकर 2 किलोमीटर पीछे लौटेगा जबकि भारत को इतना पीछे नहीं लौटना होगा क्योंकि भारतीय सेना अपनी ही भूमि पर थी। दोनों देश की सेना बफर जोन के लिए तैयार है। इस जोन में कोई भी पक्ष नया ढांचा नहीं बनाएगा या गश्त नहीं लगाएगा। इससे जाहिर होता है चीनी सेना भारत के मुकाबले वास्तविक नियंत्रण रेखा के ज्यादा करीब है। इस समझौते में एक विवाद का बिंदु दिख रहा है वह की इस बात पर कोई समझौता नहीं हुआ है बफर जोन कब तक रहेगा। विशेषज्ञों का मानना है यह विश्वास बहाली का एक उपाय है और अप्रैल के आरंभ की स्थिति पर आने के लिए एक समय है। लेकिन एक दिलचस्प बात यह है या पीछे लौटना उस समय हुआ है जब गलवान घाटी में पानी का बहाव तेज हो गया है। अभी वहां बर्फ पिघल रही है उससे पानी के बहाव में दीजिए जिसके फलस्वरूप दोनों देशों इस सेना के लिए वहां रह पाना कठिन है। इस पूरी स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि इसमें चीन का एक गेम प्लान है। वह चाहता है कि शायोक गलवान नदी के आसपास भारत कोई निर्माण नहीं कर सके क्योंकि नदी की तेज धार के कारण ऐसा करना फिलहाल मुश्किल है।





सीमा समस्या को हल करने की गरज से भारत और चीन में मई से ही कूटनीतिक तथा सैन्य वार्ताएं चल रही हैं। रविवार को टेलीफोन पर डोभाल और वांग में बातचीत हुई। इसमें जो सबसे बड़ी बात तय हुई वह थी आंखे दिखाने के बदले रणनीतिक आकलन किया जाए और दोनों देश एक दूसरे को विकसित होने का अवसर प्रदान करें। लेकिन चीन अक्सर जो बोलता है वह करता नहीं है। 1962 में जो जंग हुई उसके पहले वह लगातार हिंदी चीनी भाई भाई कहता रहा था इसलिए भारत को हमेशा सतर्क रहना होगा और सीमा की नई वास्तविकता से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। दोनों देशों में कमांडर स्तर की वार्ता के बाद पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी लेकिन 15 जून को हिंसक झड़प हो गई। गलवान घाटी में जो खून बहा उसका घाव अभी ताजा है और उसे भरने में वक्त लगेगा। तनाव कम करने की इस प्रक्रिया में भारत को बहुत ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा और पूरी प्रक्रिया में काफी समय लगेगा। चिंता इस बात की भी है कि उल्टी दिशा में चल सकता है और इसलिए भारत को अपनी फौज कम करने के बारे में सोचना नहीं चाहिए। बेशक, समझौते की शर्तों के अनुसार सेना की संख्या और भारी हथियार हटाने होंगे लेकिन तुलनात्मक तौर पर यह भी देखना होगा उसने कितना हटाया है। डोभाल और वांग 2018 और 19 में मिल चुके हैं उस समय भी ऐसे ही समझौते हुए लेकिन चीन ने उसे भंग कर दिया और 20 भारतीय सैनिकों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी। इसके बाद 17 जून को विदेश मंत्री एस जयशंकर की भी वांग ई से बातचीत हुई थी। अभी हाल के समझौते के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष चरणबद्ध तरीके से पीछे हटेंगे वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करेंगे। भविष्य में कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जिससे यथास्थिति बदले। लेकिन, चीन पर पूरी तरह भरोसा करना उचित नहीं होगा।

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