चीन के मंसूबे ढेर
सभ्यताएं बताती हैं कि आबादी के सोचने का ढंग क्या है। हमारे यहां वेदों में कहा गया है कि जैसी सभ्यता होगी वैसे ही सोचने का तरीका होगा। भारतीय सभ्यता हो अगर कुल मिलाकर देखें तो वह वसुधैव कुटुंबकम की सभ्यता है। इसका मतलब है कि हम भारतीय आक्रमण और प्रसार में भरोसा नहीं रखते जबकि चीन शब्द का मतलब है केंद्र। चीन शब्द की शुरुआत चुंग वा साम्राज्य से आरंभ हुई और इसका मतलब होता है मध्य देश। चीन के सोचने का ढंग भी कुछ ऐसा ही है कि खुद को दुनिया का केंद्र मानता है यानी दुनिया की हर चीज हर ताकत उसके चारों ओर घूमती है और वह स्वयं केंद्र में रहे। चीन खुद के लिए सबसे ज्यादा सोचता है । हम यहीं से अलग हो जाते हैं। दुनिया के दो शक्तिशाली देश जो एक दूसरे के पड़ोस में हैं वहां की आबादी यह सोचने का ढंग अलग अलग है। अतीत में गस्ती हुआ करती थी और कभी कभार दोनों देशों की सेना भी आमने-सामने आ जाती, लेकिन सैनिकों की संख्या बहुत कम होती थी , 40, 50या 100 के आसपास। परंतु इस बार पूर्वी लद्दाख में बड़ी संख्या में फौज उतर गई। चीनी सेना ने इसके लिए तैयारी की थी। यही कारण है कि हमारी सरकार कह रही है कि चीनी फौजों की यह मोर्चाबंदी सोची समझी गई थी। पूर्वी लद्दाख में फौज उतारी गई और उसे भी सीमा पर तैनात ना कर के भारतीय सीमा के थोड़ा भीतर किया गया। ऐसा रातो रात हो नहीं सकता है,इसके लिए पहले से तैयारी करनी होगी और चीन ने अप्रैल के आरंभ से ही यहां युद्धाभ्यास करने की योजना बनाई और आनन-फानन में पूर्वी क्षेत्र में सेना भेज दी गई।
चीनी सेना मोर्चे पर एकदम तैयार होकर और योजना बना कर आई थी यह अचानक नहीं हुआ था। इसे सेना की दो टुकड़ियों के बीच अचानक “फेस ऑफ” नहीं कहा जा सकता है।इसलिये हमें खुद से एक सवाल पूछना होगा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और इसका संदेश क्या है? अब लगता है इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला रणनीतिक जिसे सब कोई कह सकता है यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर। अब यहां यह याद करना होगा वास्तविक नियंत्रण रेखा खुद में विवादास्पद है और इसे लेकर दोनों देशों के बीच भारी वैचारिक मतभेद है। अब ऐसा लगता है कि चीन खुद एक तरफा वास्तविक नियंत्रण रेखा करना चाहता है। समरनीतिक दृष्टिकोण से देखें सचिन सीमा पर शांति चाहता है क्योंकि संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए यह पहली जरूरत है इसलिए वह भारत को धोखे में रखना चाहता है और यह बताना चाहता है कि उसका देश एशिया में महाशक्ति है। लेकिन भारत उसे यह नहीं करने दे रहा है। गलवान घाटी में भारतीय सेना में उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर रोक दिया। दोनों देशों में वार्ता के दौरान भारत की ज़िद थी कि चीन पूर्ववर्ती यथास्थिति कायम रखें इसका मतलब है कि चीन पीछे लौटे और वहां जाए जहां आरंभ में थी।
गलवान घाटी में झड़प के दौरान भारतीय सेना के 20 जवान मारे गए लेकिन कितने सैनिक मारे गए इसके बारे में कोई सही खबर नहीं है यह बात खुलेगी भी नहीं, यह उनकी आदत है। इससे साफ जाहिर होता है कि चीनी प्रशासन पारदर्शी नहीं है। चीन में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है अर्थव्यवस्था का। अगर, हम 1980 के दशक में देखते हैं पता चलेगा कि भारत और चीन की जीडीपी बराबर है परंतु आज चीन की जीडीपी लगभग 4.5 गुना ज्यादा है। 1980 के दशक में चीन डेंग जियाओ पिंग की कहावत पर चलता था चीन को अपनी ताकत को छुपाना चाहिए और अपने को बढ़ाना चाहिए। अब इस घटना के चार दशक हो गए और इस अवधि में चीन में काफी विकास हुआ लगभग 10% प्रतिवर्ष और अब उस पर शी जिनपिंग का शासन है जो उनके चीन के राष्ट्रपति होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि वाह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव भी हैं। अब चीनियों को लगता है उनका समय आ गया है तथा यह दिखाना होगा में कितनी ताकत है। वह दक्षिण चीन सागर में भी कुछ ऐसा ही कर रहा है। हांगकांग में भी उसके यही करतूत हैं। इसका साफ मतलब है कि चीन में दो तरह की शासन पद्धति चल रही है एक तो वह अपने देश में संप्रभुता की बात करता है और दूसरे हांगकांग की संप्रभुता का हनन कर रहा है। ताइवान को चेतावनियां दे रहा है और अमेरिका के साथ एक तरह से तकनीकी युद्ध आरंभ कर चुका है साथ ही भारत के साथ मामला गर्म हो ही रहा है। लेकिन उसके मंसूबों पर पानी उस समय फिर गया जब भारत में खुलकर मुकाबला किया। चीन को यह उम्मीद नहीं थी। वह आज के भारत को भी 1962 का भारत समझ रहा था। लेकिन उसे क्या मालूम कि आज का भारत नरेंद्र मोदी का भारत है जिसका सूत्र वाक्य है कि शांति भंग करने वालों हम भंग कर देंगे।आज का भारत कबूतरों वाली शांति के पक्ष में नहीं है वह सोए हुए शेर की शांति का समर्थक है।
हमने लौटाए सिकंदर सिर झुकाए मात खाए
हम से भिड़ते हैं वे जिनका मन धरा से भर गया है
सिंह के दांतो से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या अजब है क्या नया है
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