चीन की आक्रामक रणनीति का भारत द्वारा जवाब
चीन को भारत यह समझाने में लगा है कि अगर दोनों देशों में युद्ध होता है तो ज्यादा नुकसान चीन का होगा और भारत ने उस पर आर्थिक वार करना आरंभ कर दिया है। बुधवार को भारत में 5जी नेटवर्क तैयार करने और उसके अनुरूप टेलीफोन या कहें स्मार्ट फोन बनाने के लिए जहां भारत के जिओ नेटवर्क ने गूगल से हाथ मिलाया है वहीं भारत सरकार ने तीनों सेनाओं को रक्षा खरीद की खुली छूट दे दी है और साथ ही कूटनीतिक एवं सैन्य वार्ताओं के माध्यम से भी उसे बताने में लगा है कि जंग ना हो उसी में भलाई है। भारत में 5जी नेटवर्क के लिए गूगल ने 33,737 करोड़ रुपए के निवेश की मंजूरी दे दी है। वहीं भारत चीन गतिरोध के मद्देनजर भारत सरकार ने सेना के तीनों अंगों को 300 करोड़ रुपए तक की पूंजीगत खरीद की मंजूरी दी है। इन सबके बावजूद यहां एक प्रश्न उभरता है क्या यह वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने संबंधी समझौता सचमुच शांति के लिए है या यह नए तरह का युद्ध है। जहां तक वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने संबंधी समझौते की बात है तो उस पर ज्यादा भरोसा करना उचित नहीं होगा क्योंकि पीछे हटने की प्रक्रिया बहुत धीमी है और इसी बीच वार्ताएं भी हो रही हैं। वार्ताओं के बीच चीन ने साफ कर दिया है कि वह फिंगर क्षेत्र को खाली नहीं करेगा। हालांकि वह फिंगर 4 से थोड़ा पीछे हटा है लेकिन वह पूरे फिंगर क्षेत्र को खाली करने को तैयार नहीं है। भारत और चीन में बुधवार को 15 घंटे तक बातचीत चली और 21 या 22 जुलाई को भारत और चीन पीछे हटने की प्रक्रिया को वेरीफाई करेंगे। भारत और चीन के बीच जो वार्ताएं उस का मुख्य आधार था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम किया जाए। इसके अलावा मीटिंग में पैंगोंग त्सोऔर देपसॉन्ग पर भी वार्ताएं हुई । लेकिन चीन की गतिविधि लगता है कि वार्ता के पर्दे में एक नए तरह का युद्ध चला रहा है। गलवान में जो मुठभेड़ हुआ वह चीन की अगली रणनीति की ओर इशारा करता है तथा भारत को भी यह संदेश देता है कि वह आदेश की प्रतीक्षा ना करें और तारक कदम उठाएं।
वैसे आज युद्ध का स्वरूप बदल गया हैऔर अब वह केवल मैदान में ही सीमित नहीं रहा जाता वहां से निकलकर तरह-तरह के रूप बदलकर हमें या कहिए लड़ने वालों को प्रभावित करता है। जहां तक, भारत चीन समरनीतिक रिश्ते हैं हमें उनकी जटिलताओं आकलन करना होगा । अभी जो सैनिक हैं ,हथियार हैं और वार्ताएं हैं वह सब तात्कालिक हैं क्योंकि यह सब चलता रहता है और युद्ध भी स्वरूप बदल कर कायम रहता है जैसे आतंकवाद, कूटनीति गुटबाजी, आर्थिक प्रहार इत्यादि इत्यादि। यह सब युद्ध के बदले हुए स्वरूप हैं। जब से भारत आजाद हुआ चीन से हमारा नरम गरम रिश्ता कायम रहा है। इन सबके बीच चीन हमले भी कर लेता है और मोर्चेबंदियां भी। यह कहने का मतलब है कोई भी समझौता और इस तरह की चीजें ब्रह्मवाद नहीं हैं इन सब का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए। जैसे हमने चीनी आयात पर प्रतिबंध की बात की है तो हमें देखना पड़ेगा कि वर्तमान में चीन और भारत के आर्थिक रिश्ते कितनी दूर तक जुड़े हुए हैं और यदि उन पर प्रहार होता है तो ज्यादा हानि किसकी होगी? हमारे यहां आत्मनिर्भर भारत जबरदस्त चर्चा है लेकिन हमें यह देखना होगा हमारी आत्मनिर्भरता कितनी दूर तक परनिर्भरता से जुड़ी है और हम उससे क्या-क्या लाभ उठा सकते हैं। चीन ने इस तथ्य को अच्छी तरह समझा है। वह यूरोप पर निर्भर रहते हुए आत्मनिर्भर हो गया और फिर उसके पल्ला झाड़ लिया। भारत को भी इस गणित का लाभ उठाना चाहिए। जहां तक कूटनीतिक पैंतरेबाजी का सवाल है तो इसका दिलचस्प उदाहरण हांगकांग है। अभी हाल में चीन ने हांगकांग पर एक नया कानून थोपा जिसके अंतर्गत चीन का विरोध करने वाले प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल भेजा जा सकता है। अमेरिका में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई और अमेरिका ने भी एक नया कानून पारित कर दिया। देखने की बात है दोनों देशों ने जो कानून बनाए हैं वह एक्स्ट्रा टेरिटोरियल है। ना यह कानून चीनी सीमा के भीतर लागू है और ना अमेरिकी सीमा के। यहां एक दिलचस्प मसला सामने आता है हांगकांग पर नई स्थिति का क्या असर होगा और उसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हांगकांग के रास्ते भारत में आयात ज्यादा है। पिछले कुछ वर्षों से चीन से आयात कम हो रहा है और हांगकांग से बढ़ रहा है। इस बीच हमारे देश में आत्मनिर्भरता की बात उठ रही है। आत्मनिर्भरता के लिए सबसे जरूरी है अपने देश के उद्योग धंधों को वैश्विक स्तर पर प्रतियोगितामूलक बनाना। अगर कोई देश हमारे उद्योगों से ज्यादा सस्ता माल बनाता है तो वह हमारे देश में आएगा ही चाहे जिस रास्ते से आए। अगर हमें आत्मनिर्भर बनना है तो अपने देश में बिकने वाले माल को दूसरे देशों से आने वाले उसी माल से सस्ता देना होगा। अगर ऐसा हम नहीं कर पाते हैं तो आत्मनिर्भरता के नारे सिर्फ नारे बनकर रह जाएंगे। अभी चीन के साथ जो कुछ भी चल रहा है वह एक युद्ध है और हमें उस में चीन को पछाड़ने की बात सोचनी चाहिए। हम युद्ध नहीं चाहते हैं लेकिन अपनी भूमि नहीं छोड़ेंगे। अगर हम चीन की योजनाओं के शिकार होते हैं तो हमारा भविष्य हमें नहीं माफ करेगा। हमें हर मोर्चे पर दृढ़ता से अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी होगी चाहे वह प्रत्यक्ष युद्ध का मैदान हो या परोक्ष मोर्चाबंदी।
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