ओली की समस्या कैसे सुलझाए भारत
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली लगातार भारत के सामने समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि वह ऐसा चीन के इशारे पर कर रहे हैं। भारत को शर्मशार करने के लिए उन्होंने राम का मसला उठा दिया। प्रधानमंत्री ओली ने दावा किया राम का जन्म ठोरी गांव में हुआ। त्रेता युग से अब तक किसी ने इस पर बात नहीं की थी और मानस में प्रसंग है जिसमें मिथिला और अवध की संस्कृतियों के बारे में राम और सीता के विवाह को लेकर व्याख्या की गई है। इसके अलावा भारत में कई ऐसे स्थल हैं जहां राम के सांस्कृतिक उद्भव के निशान मिलते हैं। यही नहीं, भगवान राम का वन गमन, हनुमान ,बालि, सुग्रीव इत्यादि से मुलाकात और फिर लंका अभियान एवं वहां से वापसी के रोड मैप पर अवधी संस्कृति का स्पष्ट उल्लेख है। ओली ने इन सारी व्याख्या तथा व्यंजनाओं को गलत बताते हुए राम को नेपाल का बाशिंदा बताया। यही नहीं, राम का राजकुमार राम से मर्यादा पुरुषोत्तम में बदलने के हालात के बारे में भी जो व्याख्या भारतीय वांग्मयों में उपलब्ध है उन्हें भी ओली ने स्वीकार नहीं किया और ऐसे मौके पर यह विवाद पैदा किया जब भारत में राम मंदिर के निर्माण की तैयारी हो रही है। इस इलाके में और आसपास के क्षेत्रों में कई मस्जिदें हैं जहां बांग्लादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथी तत्वों का बोलबाला है। डर है कि भविष्य में राम मंदिर को लेकर एक नया आंदोलन आरंभ हो जाय। बात यहीं खत्म हो जाए तब भी गनीमत है। ओली ने वर्षों से कायम भारत- नेपाल सीमा को भी अमान्य करते हुए भारत के 3 गांव पर अपना हक जताया है।शनिवार को भारतीय सीमांत पर स्थित गांव भिखना ठोरी में उनके आगमन के पूर्व काफी तोड़फोड़ हुई। नेपाल प्रशासन के हुक्म से सीमा स्तंभ 436 को उखाड़ दिया गया। इतना ही नहीं सीमा के पंडई नदी का पानी भी भारत में आने से रोक दिया गया। मामला बिगड़े नहीं इसलिए भारतीय सीमा सुरक्षा बल सब जान कर भी अंजान बनी हुई है। उधर, ओली के इस क्षेत्र में आने का उद्देश्य ही है राम को लेकर भारत में आंदोलन शुरू करवाना। ठोरी बीरगंज जिले में एक छोटा सा गांव है और उसी से सटे हुए भारतीय सीमा आरंभ होती है। नेपाल के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस क्षेत्र में धनुषा नदी के किनारों बारा और चितवन के जंगलों में राम के जन्म के सबूत खोजने शुरू कर दिये हैं। आरंभ में तो इस संस्था में साफ कहा था ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे राम के जन्म का प्रमाण माना सके। लेकिन आप उन्होंने प्रधानमंत्री ओली के बयान का समर्थन हो सके। ओली के बयान से भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग क्षुब्ध हैं। यही नहीं ओली ने भारत पर आरोप लगाया है सांस्कृतिक आक्रमण कर रहा है और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ रहा है।
ओली के कुछ सहायकों ने इसे मनगढ़ंत बताया है यहां तक कि कुछ विद्वानों ने तो इसे एक विकृत मस्तिष्क की कसरत बताया है। ओली भारत और नेपाल आपसी रिश्तों को बिगाड़ने में लगे हैं। उन्होंने इन संबंधों को पहले ही बहुत बिगाड़ दिया है। यहां तक कि नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि प्रधानमंत्री की बात राम और रामायण के बारे में और अधिक तथ्य जुटाने के प्रयास स्वरूप यह बात कही है। अगर ऐसा है तो ओली ने भारत पर सांस्कृतिक आक्रमण का आरोप क्यों लगाया? ओली के बॉडी लैंग्वेज, मनोविज्ञान और उनकी कोशिशों देखने से यह पता चलता है वे अपनी कुर्सी बचाने में जी जान से लगे हैं। हालांकि ओली धीरे- धीरे अब मत में आ गए हैं ।अब तक और दहल में 8 बार बातें हो चुकी हैं। ओली फिलहाल पार्टी के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री हैं। वह दोनों में से किसी भी पद को छोड़ना नहीं चाहते। 17 जुलाई को वार्ता के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों को भड़का दिया तथा वह वार्ता स्थल पर प्रदर्शन करने लगे। इससे, पार्टी के अन्य नेता काफी नाराज हो गए। ओली का संसद में बहुमत नहीं है और इसलिए वे राष्ट्रपति का सहयोग चाहते हैं ताकि राष्ट्रपति संसद को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दें। 25 अगस्त को सेंट्रल कमिटी की मीटिंग होने वाली है और अगर संसद को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया तो ओली को इन विरोधियों से थोड़ी निजात मिल जाएगी। वहां कई ऐसे हैं जो चाहते हैं कि महामारी को बेकाबू होने के कारण देश में स्वास्थ्य आपात व्यवस्था लागू हो जाए।
ओली के पक्ष में तीन मामले हैं। पहला की दहल और अन्य सदस्य चाहते हैं कि पार्टी में किसी कीमत पर विभाजन नहीं हो। दूसरा कि, देश के राष्ट्रपति पाऊस में पूर्ण समर्थन है। तीसरा कि चीन से मिलने वाला संकेत जिसमें साथ आ गया है पार्टी को किसी भी कीमत पर टूटने से बचाना होगा। चीन से संबंध बनाए रखना उसकी मजबूरी है क्योंकि भारत से उसके रिश्ते बिगड़ चुके हैं। जो खबरें मिल रही हैं उससे लगता है कि संभवतः सेंट्रल कमेटी की मीटिंग अगस्त में नहीं होगी और ओली को थोड़ा वक्त मिल जाएगा। इसमें एक अच्छी बात दिख रही है कि सभी तरह के उकसावे के बावजूद भारत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर रहा है। भारत को इंतजार करना चाहिए और किसी भी किस्म की प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। ओली की समस्या को सुलझाने का एक मात्र यही विकल्प है।
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