भारत की “चीन” पहेली
भारत में जिस तरह गीता का सम्मान है उसी तरह चीन में प्राचीन पुस्तक आई चिंग का मान है। आई चिंग में बताया गया है कि “अपनी भावनाओं पर काबू रखें अगर ऐसा नहीं करेंगे तो आगे तबाही का सामना करना पड़ेगा। ”चीन पर शासन करने वाले सम्राट समझदारी भरे इस सलाह को बहुत सम्मान देते थे। आज भी आई चिंग चीन में उसी तरह जबरदस्त असर है रखती है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी अभेद्यता के लिए दुनिया में मशहूर है और इसीलिए इसे फोरबिडेन सिटी कहते हैं।चीन इससे कई बार डिगा भी है लेकिन बाद में इसे संभाल लिया है। चीन ने कोविड-19 हो जिस तरह संभाला वह उदाहरण का मुद्दा है। अलग-अलग महा देशों में हजारों लोगों की मौत उससे भी ज्यादा प्रभावित है और उससे कई गुना ज्यादा आजीविका के खत्म होने से छीन के प्रति गुस्सा तो जरूर है और यह वास्तविक है। आगे भी यह गुस्सा कायम रहेगा। चीन का शासक अच्छी तरह समझता है इस गुस्से का व्यापक नतीजा हो सकता है। बेशक दुनिया भर का गुस्सा चीन की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालेगा। यही नहीं इस गुस्से और उसके असर के कारण हो सकता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी योजना और सियासत दोनों खत्म हो जाए। राजनीतिक और आर्थिक रूप से चीन अलग-थलग हो जा सकता है एक आदेश हो सकता है और तब यह वैश्विक ताकत हो जाने की महत्वाकांक्षा नहीं रख सकता। जब से चीन में डेंग जियाओ पिंग का शासन था तब से चीन की सत्ता का लक्ष्य वैश्विक ताकत बनना ही था। चीन की मौज मस्ती खत्म हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की लगाम थाम ली है और सभी देश इस से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन चीन को यह गुमान है कि वह इससे बाहर निकल आएगा और उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो उसने खुद का गलत आकलन किया है। पूरी दुनिया के साथ साथ चीन की अर्थव्यवस्था भी कठिनाई में पड़ी हुई है। आंकड़ों को अगर देखें तो पता चलेगा चीन में बेरोजगारी की दर लगभग 10% है, यानी हर दसवां आदमी बेकार है। कल कारखाने बंद है इसका मतलब है रोजगार में कमी। शी जिनपिंग कभी सोचा ही नहीं होगा और वायरस चीन पर इतना प्रहार करेगा। 2019 की पहली तिमाही के मुकाबले 2020 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 6.8% गिर जाएगी। यही कारण है पिछले हफ्ते चीन की सबसे महत्वपूर्ण बैठक टू सेशन्स बैठक में अर्थव्यवस्था और आगे के सभी राहों पर लंबी चर्चा हुई। इस बैठक में हुई चर्चा में सरकार का मिजाज कैसा था इसकी झलक तो जरूर मिली है। 1990 के बाद से पहली बार चीन ने सालाना जीडीपी लक्ष्य नहीं तय किया है। चीन की सरकार दोबारा वही सोच लगेगी जहां दशकों पहले थी यानी रोजगार का निर्माण लाखों लोगों की नौकरी चली गई और उन्हें फिर से खपाना इसके साथ ही ही 87 लाख ग्रेजुएट के लिए रोजगार पैदा करना, महंगाई से निपटना इत्यादि ऐसी है जो चीन के सामने प्रस्तुत है। चीन का आर्थिक व्यापार पूरी तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। चीन की सरकार या चीनी सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छा समय नहीं है। चीन की देश में आलोचना और विदेशों में निंदा हो रही है तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के चीनी मंसूबे तार-तार हो गए। महामारी के प्रकोप से निपटने के चीनी सरकार के खासकर शी जिनपिंग तरीकों का उल्टा असर पड़ा। शी जिनपिंग के तरीके में मोह, माया, कोमलता, चिंता दया इत्यादि की कमी दिखाई पड़ी। दूर की कौड़ी लाने वाले लोग यह कहते सुने जा रहे हैं चीन की कार्रवाई भारत द्वारा धारा 370 को खत्म करने तथा जम्मू कश्मीर को पुनर्गठित करके तो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बदलने जिसके तहत लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के अधीन आ जाता है। चीन की वर्तमान आक्रमकता का कारण यही है। चीन ने यही कारण है ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया और उसे अमेरिका का कुत्ता कहा। जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन के राष्ट्रपति सनकी कहा। ऐसा करके आई चिंग को नजरअंदाज कर रहा है, जिसमें कहा गया है ऐसा करने से कोई फायदा नहीं होगा केवल तमा ही जाएगी।
भारतीय क्षेत्र के लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बार-बार चीन की घुसपैठ और नेपाल की ओली सरकार द्वारा भारत की छवि जमीन कब्जा करने वाले देश के रूप में पेश करने अभियान को इसी पृष्ठभूमि जाना चाहिए। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन का नियंत्रण अपने हाथ में देंगे के लिए भारत वचनबद्ध है। यह बात समझ से परे है अगर चीन युद्ध नहीं चाहता तो वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के रणनीतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण से गुस्से में क्यों है? वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कार्रवाई के तीन कारण हो सकते हैं पहला की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता देश में बढ़ती दिक्कतों की वजह से लोगों की सरकार विरोधी भावनाओं को भटकाना चाहते हैं। ठीक वैसा ही जिस तरह अरब देशों में जब-जब घरेलू मुद्दों पर असंतोष बढ़ता है और वह सड़कों पर उतरते हैं तो वहां की सरकार हद स्टील के लिए समर्थन का ऐलान कर देती है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में चीन ने अपने दूतावासों को आक्रामक अंदाज में रखा है लेकिन इस हिस्से में अपनी सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भेज कर भारतीय इलाके में शिविर डाल दिया है। दोनों ही चाल कम लागत वाली है। दूसरा कारण हो सकता है कि शी जिनपिंग की सरकार अपने देश की जनता को बताना चाहती है कोविड-19 के लिए उसे जो कीमत चुकानी पड़ रही है उससे चीन भले ही कमजोर हो गया है लेकिन विचलित नहीं हुआ है। शी यह दिखाना चाहते हैं कि वे हर हाल में अपराजेय हैं और दुनिया में चीन की धाक जमाने में लगे हैं। तीसरी बात है कि वह भारत को चेतावनी देना चाहता है कि महामारी की वजह से जो जगह खाली है मुझे भरने की कोशिश ना करें और खुद को सप्लाई लाइन के केंद्र के रूप में पेश न करें। लेकिन यह सब अटकलबाजी है। लड़ाई झगड़े से रोमांच तो जरूर पैदा होता है लेकिन यह मूर्खता पूर्ण है। अटल बिहारी बाजपेई ने कहा था कि कितना भी समतल क्यों न हो हर जगह ढलान है। धौंस जमाने वाले नतीजों की परवाह किए बगैर ढलान में गिर जाते हैं और जिम्मेदार ताकतें ढलान को छोड़ देती हैं।
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