धोरों में बवंडर
धोरों की धरती राजस्थान में इन दिनों सियासी बवंडर चल रहा है। स्थापित शासन संकट में आ गया है और आरोपों-प्रत्यारोपों झड़ी लगी हुई है। 2 दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उनकी सरकार को गिराने में लगी है । उनका कहना है कि फिलहाल वे तीन तीन मोर्चों पर जूझ रहे हैं। एक तरफ तो कोरोना से दो-दो हाथ कर रहे हैं दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए लड़ रहे हैं और अब यह तीसरा सियासी मोर्चा खुल गया है। भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगी है। इस खरीद-फरोख्त को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप जांच में भी लगी है। पुलिस के इस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मुख्य सचेतक को भी जांच के लिए बुलाया था। लेकिन अब बात बदल चुकी है। अब राजस्थान की यह सियासी जंग अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की हो गई है। ठीक उसी तरह जैसे मध्यप्रदेश में कमलनाथ बदाम ज्योतिरादित्य सिंधिया की हो गई थी और वहां से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा। सचिन पायलट का कहना है कि गहलोत की सरकार अल्पमत में आ गई है। उधर कांग्रेस का कहना है गहलोत के साथ 109 विधायक हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया है कि “ क्या हम तभी जागेंगे जब सारे घोड़े अस्तबल से निकल जाएंगे। ” राजस्थान की यह खींचतान 2018 में उस समय से शुरू होती है जब यहां कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट में रस्साकशी शुरू हो गई। हालांकि, गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद रस्साकशी खत्म हो गई। लेकिन अब करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर से राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों शीर्ष नेताओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। तनाव का चरित्र और भारतीय राजनीतिक आचरण को देखते हुए ऐसा लग रहा है अब राजस्थान में भी वही होने जा रहा है जो मार्च में मध्यप्रदेश में हुआ। मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने के माध्यम से सचिन पायलट के लिए समर्थन जताया है और कहा है कि कांग्रेस में प्रतिभा और काबिलियत के लिए बहुत कम जगह है। अब यहां जो पहला सवाल उठता है वह कि क्या सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा क्योंकि अक्षर कांग्रेस के पुनरुत्थान की बात करते हैं और अभी भी उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या होने वाला है।
अगर मामला इतना लचीला है तो फिर कांग्रेस में युवा नेता और पुराने क्षेत्रीय नेताओं में तालमेल का इतना अभाव क्यों? मध्यप्रदेश में आज जो कुछ हुआ है वह तो अच्छे से दिख रहा था और अब राजस्थान में भी दिखने लगा है कि क्या होने वाला है और क्या हो रहा है। इस सारे सियासी खेल में समय और आरोपों का शौक था महत्वपूर्ण है। यह कैसे वक्त में आया जब सरकार महामारी से जूझ रही है, लॉक डाउन चल रहा है और अधिकांश राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक गतिविधियों को खुलकर नहीं चला पा रहे हैं और ना इसमें कोई बाहरी कारक हैं। लेकिन इसमें कांग्रेस के आंतरिक डायनामिक्स का सबसे ज्यादा साबका है।
भारत की राजनीति में पायलट की है दूसरी पीढ़ी है लेकिन राजनीतिक स्टाइल में यह उससे यानी पहली पीढ़ी से बिल्कुल अलग है। आज पायलट को राजस्थान के सबसे प्रभावशाली जाति समूह गुर्जरों का समर्थन प्राप्त है। सचिन पायलट ने ऊपमुख्यमंत्री पद के लिए कठोर संघर्ष किया इससे साफ जाहिर होता है पायलट में सियासत की भूख है और महत्वाकांक्षा है साथ ही वे समझते हैं कि इस विद्रोह की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए, कहा जा सकता है कि इस बार मोर्चाबंदी जरा कठोर है और वह जानते हैं इस बार यह पहले की तरह कारोबार नहीं है तथा पार्टी नेतृत्व उनकी बात सुनना चाहता है।
गहलोत एक ही पत्थर से दो शिकार करना चाहते हैं और इसलिए उन्होंने कदम थोड़ा आगे बढ़ा दिया है। गहलोत ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह पार्टी को तोड़ना चाहती है और इसके लिए उन्होंने एक दिखावटी जांच बैठा दी।वह थोड़ा आगे बढ़ गए उन्होंने यह नहीं समझा पालक इसका जवाब देंगे। पायलट ने इस पर गहलोत की उम्मीद से तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की । अतीत में भी दोनों में कहासुनी हो चुकी है। विभागों के बंटवारे से लेकर गहलोत द्वारा अपने बेटे वैभव को लोकसभा चुनाव में खड़ा किए जाने की इच्छा को लेकर दोनों भिड़ गए थे। कोटा हे अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर भी दोनों में कहासुनी हो चुकी है। इस बार गहलोत और पायलट के बीच रस्साकशी का एक कारण को छोड़कर कोई जाहिर कारण नहीं है। लेकिन जो भी हो यह बवंडर राजस्थान में पार्टी के भविष्य को तय करेगा।
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